अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) के एक नए पेपर ने स्टेबलकॉइन्स की तेजी से हो रही वृद्धि, उनसे जुड़े जोखिमों और निहितार्थों का विश्लेषण किया है।
स्टेबलकॉइन्स के बारे में
- परिचय: ये ऐसी क्रिप्टो परिसंपत्तियां (Crypto Assets) हैं, जिनका मूल्य किसी फ़िएट मुद्रा (जैसे- डॉलर) के मुकाबले स्थिर होता है। यह विशेषता उन्हें बिटकॉइन (Bitcoin) जैसी अत्यधिक अस्थिर व गैर-समर्थित (unbacked) क्रिप्टो परिसंपत्तियों से अलग करती है।
- जारीकर्ता: इन्हें आमतौर पर क्रिप्टो फर्मों या वित्तीय संस्थाओं जैसी केंद्रीकृत संस्थाओं द्वारा जारी व संचालित किया जाता है।
- उपयोग:
- इन्हें मूल रूप से क्रिप्टो ट्रेडिंग के लिए एक सेतु के रूप में डिज़ाइन किया गया था। अब इनका उपयोग सीमा-पार भुगतान और विप्रेषण (Remittances) में भी बढ़ रहा है।
- स्टेबलकॉइन्स एसेट टोकनाइजेशन की व्यापक प्रवृत्ति का हिस्सा हैं। एसेट टोकनाइजेशन का अर्थ है एक प्रोग्रामेबल लेज़र पर परिसंपत्ति का प्रतिनिधित्व करना।
- इनमें भुगतान प्रणालियों को कुशल बनाने की क्षमता है।
स्टेबलकॉइन्स से जुड़े जोखिम
- रन जोखिम: यदि उपयोगकर्ताओं का विश्वास गिरता है, तो इन्हें बड़े पैमाने पर भुनाया (Redemption) जाएगा। इससे आरक्षित परिसंपत्तियों (जैसे अमेरिकी ट्रेजरी बिल) की फायर सेल्स (बहुत कम कीमतों पर तुरंत बिक्री) हो सकती है। इसके कारण बाजार की व्यापक कार्य-प्रणाली प्रभावित हो सकती है।
- मुद्रा प्रतिस्थापन: जिन देशों में उच्च मुद्रास्फीति या कमजोर संस्थान हैं, वहां विदेशी-मूल्यवर्ग के स्टेबलकॉइन्स को व्यापक रूप से अपनाने से मौद्रिक संप्रभुता कम हो सकती है। साथ ही, घरेलू मौद्रिक नीति की प्रभावशीलता कमजोर हो सकती है।
- मध्यवर्तियों के रूप में बैंकों की भूमिका घटना: ये बैंकों के स्थिर वित्त-पोषण स्रोतों को कम कर सकते हैं। इससे उनकी ऋण देने की क्षमता प्रभावित हो सकती है।
- वित्तीय अखंडता: ब्लॉकचेन लेन-देन की छद्म-नाम प्रकृति (Pseudonymity) धन शोधन (money laundering) और आतंकवाद के वित्त-पोषण जैसे जोखिम पैदा करती है।
आगे की राह
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