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हाल ही में, CCI ने बाजार में प्रभुत्व के संभावित दुरुपयोग की जांच के लिए इंडिगो की उड़ानों में आई बाधाओं का संज्ञान लिया।

भारतीय प्रतिस्पर्धा आयोग (CCI) के बारे में 

  • उत्पत्ति: इसे प्रतिस्पर्धा अधिनियम, 2002 के तहत एक वैधानिक निकाय के रूप में स्थापित किया गया है।
    • प्रतिस्पर्धा अधिनियम, 2002 में प्रतिस्पर्धा (संशोधन) अधिनियम, 2007 द्वारा संशोधन किया गया है।
  • मंत्रालय: कॉरपोरेट कार्य मंत्रालय।
  • संरचना: CCI में केंद्र सरकार द्वारा नियुक्त एक अध्यक्ष और न्यूनतम 2 व अधिकतम 6 सदस्य होते हैं।
  • कार्य: 
    • यह प्रतिस्पर्धा-रोधी समझौतों और उद्यमों द्वारा प्रभुत्वशाली स्थिति के दुरुपयोग पर रोक लगाता है;
    • उन संयोजनों (अधिग्रहण, नियंत्रण का अधिग्रहण और विलय एवं अधिग्रहण) को विनियमित करता है, जो भारत में प्रतिस्पर्धा पर उल्लेखनीय प्रतिकूल प्रभाव डालते हैं या डालने की क्षमता रखते हैं।
    • किसी भी कानून के तहत स्थापित वैधानिक प्राधिकरण से प्राप्त संदर्भ पर प्रतिस्पर्धा संबंधी मुद्दों पर राय देता है।
    • उपभोक्ताओं के हितों की रक्षा करता है और भारत के बाजारों में व्यापार की स्वतंत्रता सुनिश्चित करता है।

कोयला नियंत्रक संगठन (CCO) ने दक्षता बढ़ाने और अनुपालन में सुगमता के लिए वॉशरी अपशिष्ट (Washery-reject) के निपटान की प्रक्रिया को सरल बनाया।

कोयला नियंत्रक संगठन (CCO) के बारे में 

  • मंत्रालय: कोयला मंत्रालय के अधीन एक कार्यालय।
  • उद्देश्य: कोयला क्षेत्रक में पारदर्शिता, दक्षता और उपभोक्ता संरक्षण सुनिश्चित करना।
  • अधिदेश (मैंडेट): कोयला खान नियंत्रण नियमों के तहत कोयले की गुणवत्ता, ग्रेडिंग और नमूनाकरण को विनियमित करना।
  • कार्य: कोयला उत्पादन के आंकड़े एकत्र करना; कोयले के प्रेषण और आपूर्ति की निगरानी करना आदि।
  • विनियामक भूमिका: खानों के खुलने, बंद होने और वॉशरी अपशिष्ट के निपटान की देखरेख करना।
    • यह खान और खनिज (विकास और विनियमन) (MMDR) अधिनियम 1957 के तहत खनन योजना तथा खदान बंद करने की योजना पर अनुमोदन प्रदान करता है। 

भारत ने चीन से आयात होने वाले कुछ इस्पात पर एंटी-डंपिंग ड्यूटी आरोपित की है।

एंटी-डंपिंग ड्यूटी के बारे में

  • एंटी-डंपिंग ड्यूटी एक व्यापारिक उपाय है। इसे कोई देश तब लागू करता है, जब कोई देश किसी वस्तु को अपने घरेलू बाजार मूल्य से कम मूल्य पर किसी अन्य देश को निर्यात करता है।
    • यदि कोई कंपनी किसी उत्पाद का निर्यात उस कीमत से कम मूल्य पर करती है, जो वह सामान्य रूप से अपने घरेलू बाजार में वसूलती है, तो इसे उस उत्पाद की "डंपिंग" कहा जाता है।
  • घरेलू उद्योग को सस्ते आयात से बचाने के लिए एंटी-डंपिंग प्रशुल्क लगाए जाते हैं।
  • निष्पक्ष प्रतिस्पर्धा सुनिश्चित करने के लिए WTO एंटी-डंपिंग समझौते के तहत एंटी-डंपिंग उपाय करने की अनुमति दी गई है।

हाल ही में, CAQM ने दिल्ली और एनसीआर राज्यों में नगरपालिका ठोस अपशिष्ट प्रबंधन की समीक्षा की।

CAQM के बारे में

  • स्थापना: यह राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र और आसपास के क्षेत्रों में वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग अधिनियम, 2021 के तहत एक वैधानिक निकाय है।
    • इसने पर्यावरण प्रदूषण रोकथाम एवं नियंत्रण प्राधिकरण (EPCA) का स्थान लिया है।
  • मंत्रालय: पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय। 
  • क्षेत्राधिकार: राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (एनसीआर) और आसपास के क्षेत्र (हरियाणा, पंजाब, राजस्थान व उत्तर प्रदेश)।
  • शक्तियां: इसे प्रदूषणकारी गतिविधियों को प्रतिबंधित करने, मुआवजे का आदेश देने, जांच करने, निर्देश जारी करने, दिशा-निर्देश तैयार करने आदि की बाध्यकारी शक्तियां प्राप्त हैं।

भारतीय वैज्ञानिकों के एक हालिया अध्ययन ने धातु प्रदूषण से निपटने में स्पंज से जुड़े सूक्ष्मजीवों (microbes) के महत्त्व को उजागर किया।

  • स्पंज: स्पंज सरल, जलीय अकशेरुकी (Invertebrates) जीव होते हैं। इनका शरीर छिद्रपूर्ण (Porous) होता है। ये भोजन और ऑक्सीजन प्राप्त करने के लिए जल को छानते हैं, और जलीय पारिस्थितिकी-तंत्र में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। उदाहरण: बाथ स्पंज (युस्पोंजिया/ Euspongia), नाजुक वीनस फ्लावर बास्केट (यूप्लेक्टेला/ Euplectella) आदि।

अध्ययन के मुख्य बिंदुओं पर एक नजर

  • यह पाया गया है कि मीठे पानी के स्पंज विविध सूक्ष्मजीव समुदायों का आश्रय होते हैं। ये सूक्ष्मजीव भारी धातुओं का प्रतिरोध करने में सक्षम होते हैं।
    • ये स्पंज अपने भीतर आर्सेनिक, सीसा और कैडमियम को उच्च स्तर पर जमा कर लेते हैं।
  • ये प्रदूषित मीठे पानी के पारिस्थितिकी-तंत्र में जैव-संकेतकों (Bio-Indicators) के रूप में कार्य कर सकते हैं और जैवोपचार (Bioremediation) में मदद कर सकते हैं।

कर्नाटक विधान सभा ने 'कर्नाटक हेट स्पीच और हेट क्राइम (रोकथाम) विधेयक 2025' पारित किया। 

हेट स्पीच (घृणास्पद वाक्) के बारे में

  • इस विधेयक के अनुसार, 'हेट स्पीच' की परिभाषा इस प्रकार है: सार्वजनिक रूप से व्यक्त की गई ऐसी अभिव्यक्ति, जिसका उद्देश्य धर्म, नस्ल, जाति, लिंग, लैंगिक रुझान, भाषा या जनजाति के आधार पर किसी व्यक्ति, समूह या समुदाय के खिलाफ चोट, वैमनस्य, शत्रुता, घृणा या दुर्भावना पैदा करना हो।
  • संवैधानिक प्रावधान:
    • अनुच्छेद 19(1)(a): यह सभी नागरिकों को 'वाक् और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता' का अधिकार प्रदान करता है।
    • अनुच्छेद 19(2): यह सरकार को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर "उचित प्रतिबंध" लगाने की अनुमति देता है। ये प्रतिबंध निम्नलिखित आधारों पर लगाए जा सकते हैं: लोक व्यवस्था, राष्ट्रीय सुरक्षा, शिष्टाचार या सदाचार, मानहानि, अपराध के लिए उकसाना आदि।

शोधकर्ताओं ने स्वभोजिता की प्रक्रिया में एक “लापता कड़ी” की खोज की है। यह कड़ी अल्जाइमर, पार्किंसंस और कैंसर जैसी बीमारियों के इलाज के लिए नई संभावनाएं पैदा करती है।

स्वभोजिता के बारे में

  • स्वभोजिता एक प्राकृतिक कोशिकीय प्रक्रिया है, जिसमें कोशिकाएं अपने स्वास्थ्य और समस्थिति (homeostasis) को बनाए रखने के लिए क्षतिग्रस्त या खराब हो चुके घटकों को हटाती हैं और उन्हें पुनर्चक्रित करती हैं।
  • यह प्रक्रिया विषाक्त प्रोटीन को बाहर निकालती है और कोशिकीय मरम्मत व ऊर्जा संतुलन को समर्थन प्रदान करती है तथा तनाव की स्थिति में कोशिकाओं को जीवित रहने में मदद करती है।
  • स्वभोजिता को तंत्रिका-क्षयकारी (neurodegenerative) रोगों और कैंसर से सुरक्षा प्रदान करने वाली प्रक्रिया के रूप में देखा जाता है। वर्तमान में इसके चिकित्सीय लाभों पर शोध किया जा रहा है।
  • योशिनोरी ओसुमी (Yoshinori Ohsumi) को स्वभोजिता के तंत्र की खोज के लिए 2016 में फिजियोलॉजी या चिकित्सा में नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया था।

भारत सरकार परमाणु ऊर्जा मिशन के तहत 2033 तक कम-से-कम 5 स्वदेशी रूप से डिजाइन किए गए SMRs को परिचालित करने की योजना बना रही है।

SMRs की मुख्य विशेषताएं

  • क्षमता: इनकी विद्युत उत्पादन क्षमता 300 मेगावाट (MW) प्रति यूनिट तक होती है। यह पारंपरिक परमाणु ऊर्जा रिएक्टर्स की उत्पादन क्षमता का लगभग एक तिहाई है।
  • मॉड्यूलर: इसके घटकों को कारखाने में ही असेंबल किया जा सकता है और स्थापना के लिए एक इकाई के रूप में वांछित स्थान पर ले जाया जा सकता है।
  • पोर्टेबिलिटी और स्केलेबिलिटी: अपने मॉड्यूलर डिजाइन और छोटे आकार के कारण, इन्हें आसानी से स्थानांतरित एवं विस्तारित किया जा सकता है।
  • महत्व:
    • यह 2047 तक परमाणु ऊर्जा क्षमता को वर्तमान 8.78 गीगावाट (GW) से बढ़ाकर 100 GW के लक्ष्य को प्राप्त करने में मदद कर सकते हैं।
  • चुनौतियां:
    • प्रति किलोवाट-घंटा विद्युत की लागत पारंपरिक ऊर्जा स्रोतों की तुलना में अधिक होती है।
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