विदेश मामलों पर संसदीय स्थायी समिति ने लोकसभा में ‘भारत–बांग्लादेश संबंधों का भविष्य’ शीर्षक से रिपोर्ट प्रस्तुत की | Current Affairs | Vision IAS
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रिपोर्ट में भारत-बांग्लादेश के बीच राजनीतिक अस्थिरता, सुरक्षा खतरे, व्यापारिक मुद्दे, जल विवाद, चीन का प्रभाव सहित कई चुनौतियों पर प्रकाश डाला गया है और भविष्य में सहयोग के लिए राजनयिक, सीमा, आर्थिक और पर्यावरणीय रणनीतियों का प्रस्ताव दिया गया है।

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रिपोर्ट में रेखांकित प्रमुख चुनौतियां

  • रणनीति के पुनर्निर्माण की आवश्यकता: अगस्त 2024 में बांग्लादेश की शेख हसीना सरकार के पतन से राजनीतिक अनिश्चितता उत्पन्न हुई है। अब बांग्लादेश के भारत से दूर जाने के रणनीतिक बदलाव के संकेत मिल रहे हैं।  
  • सुरक्षा संबंधी खतरे: भारत के लिए प्रमुख चिंताओं में बांग्लादेश से अवैध प्रवासन और सीमा-पार आतंकवाद शामिल हैं। गौरतलब है कि दोनों देशों की सीमाओं पर नदी बेसिन और पर्वतीय भू-भाग होने की वजह से 864 किलोमीटर क्षेत्र में बाड़बंदी (फेंसिंग) नहीं हुई है।  इससे उपर्युक्त चिंताएं और अधिक गंभीर हो जाती हैं।  
  • आर्थिक बाधाएं और व्यापार में असंतुलन: दोनों देशों के बीच 2024–25 में 13.46 अरब अमेरिकी डॉलर का द्विपक्षीय व्यापार हुआ। व्यापार संतुलन भारत के पक्ष में है। इससे बांग्लादेश में चिंताएं उत्पन्न होती हैं।  
    • अन्य आर्थिक चुनौतियों में शामिल हैं:
      • भूमि-पत्तनों (Land ports) पर अवसंरचनाओं का पर्याप्त विकास नहीं होना, 
      • भूमि-पत्तनों पर अधिक यातायात, तथा 
      • भारत-बांग्लादेश तरजीही व्यापार के प्रावधानों का फायदा उठाकर चीन जैसे किसी तीसरे देश की वस्तुओं (जैसे-चीनी वस्त्र) का बांग्लादेश के माध्यम से भारत में प्रवेश।  
  • नदी-जल-बंटवारा और पर्यावरण से संबंधित संकट: दोनों देशों के बीच गंगा जल बंटवारा संधि (1996) की अवधि दिसंबर 2026 में समाप्त हो रही है। इसके नवीनीकरण पर अभी तक कोई औपचारिक वार्ता शुरू नहीं हुई है। 
    • उपर्युक्त के अलावा, दोनों देशों से होकर बहने वाली तीस्ता सहित 53 नदियों के जल के बंटवारे पर समझौते लंबित हैं। 
    • दोनों देशों में स्थित सुंदरबन डेल्टा जलवायु परिवर्तन जनित समुद्री जल स्तर में वृद्धि जैसे गंभीर खतरे का सामना कर रहा है। इस संकट से निपटने के लिए सहयोग नहीं हो पा रहा है।  
  • अन्य चिंताएं: बांग्लादेश में चीन का बढ़ता प्रभाव (जैसे-मोंगला बंदरगाह पर अवसंरचना विकास, पेकुआ में सबमरीन अड्डा के निर्माण में सहयोग) भारत में सिलीगुड़ी कॉरिडोर (चिकन नेक) के लिए खतरा उत्पन्न कर रहा है। 
    • बांग्लादेश में धार्मिक अल्पसंख्यक समुदाय पर हमले भी चिंता का विषय हैं।  

भविष्य के लिए रणनीतिक सुझाव

  • निरंतर कूटनीतिक संलग्नता: भारत को ट्रैक-II और ट्रैक-1.5 कूटनीति का उपयोग करते हुए बांग्लादेश में स्वतंत्र, निष्पक्ष और समावेशी चुनाव कराने पर जोर देना चाहिए। 
  • सीमा प्रबंधन का आधुनिकीकरण:  सीमा बाड़बंदी का कार्य प्राथमिकता के आधार पर पूरा करना चाहिए। ड्रोन,  मोशन सेंसर और लेज़र जैसी आधुनिक प्रौद्योगिकियों का उपयोग करके सीमा पर अवैध घुसपैठ पर नजर रखनी चाहिए।  
  • आर्थिक सुरक्षा और एकीकरण: बांग्लादेश के साथ ‘व्यापक आर्थिक साझेदारी समझौता (CEPA)’ पर वार्ताओं को आगे बढ़ाना चाहिए। इस समझौता में ‘रूल्स ऑफ ओरिजिन’ (वस्तु के मूल देश) के सत्यापन का प्रावधान होना चाहिए ताकि किसी अन्य देश की वस्तुओं के भारत में प्रवेश को रोका जा सके। 
    • ‘रूल्स ऑफ ओरिजिन’ प्रावधान का इस्तेमाल यह तय करने के लिए किया जाता है कि क्या कोई उत्पाद मुक्त व्यापार समझौता के नियमों के तहत शुल्क-मुक्त या कम शुल्क के लिए पात्र है या नहीं।  
  • सक्रिय जल और जलवायु कूटनीति का उपयोग करना: नदी में जल-प्रवाह की मात्रा और जलवायु से संबंधित आँकड़ों के आधार पर गंगा जल संधि के नवीनीकरण पर वार्ता आगे बढ़ानी चाहिए। साथ ही, सुंदरबन के लिए ‘संयुक्त अनुकूलन (joint adaptation) उपाय’ पर विचार करना चाहिए।   
  • अन्य सुझाव: 
    • भारत के विदेश मंत्रालय में अलग से ‘रणनीतिक संचार और धारणा प्रबंधन इकाई” (Strategic Communication and Perception Management Unit) की स्थापना करनी चाहिए; 
    • सार्क (SAARC) संगठन के विकल्प के रूप में बिम्सटेक जैसे क्षेत्रीय सगठनों को बढ़ावा देना चाहिए; तथा 
    • दोनों देशों के लोगों के बीच संपर्क बढ़ाने पर जोर देना चाहिए,  जैसे कि वीजा सेवाओं को पहले की तरह बहाल करना।  
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