यह निर्णय संविधान के अनुच्छेद 21 की अधिकार-आधारित व्याख्या को पुष्ट करता है। इससे दैहिक स्वतंत्रता एवं मानवीय गरिमा पर कानूनी स्थिति और मजबूत हुई है।
लिव-इन रिलेशनशिप पर न्यायालय की मुख्य टिप्पणियां
- वैधता: न्यायालय ने स्पष्ट किया कि परस्पर सहमत वयस्कों के बीच लिव-इन रिलेशनशिप भारतीय कानून के तहत न तो अपराध है और न ही यह प्रतिबंधित है।
- स्वायत्तता: न्यायालय ने पुनर्पुष्टि की कि वयस्क अपने निजी जीवन के लिए विकल्प चुनने हेतु स्वतंत्र हैं।सामाजिक या पारिवारिक असहमति के आधार पर इस स्वायत्तता को प्रतिबंधित नहीं किया जा सकता।
- राज्य का कर्तव्य: निर्णय में इस पर बल दिया गया कि ऐसे मामलों में पुलिस सुरक्षा देने से इनकार करना, जीवन और स्वतंत्रता की रक्षा करने के राज्य के संवैधानिक दायित्व की विफलता है।
- सामाजिक नैतिकता: न्यायालय ने माना कि "सामाजिक ताने-बाने" से संबंधित चिंताएं संविधान द्वारा गारंटीकृत मूल अधिकारों से ऊपर नहीं हो सकतीं।
- साक्ष्य संबंधी धारणा: न्यायालय ने इंडियन एविडेंस एक्ट की धारा 114 / भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 2023 की धारा 119(1) का उल्लेख किया। इन धाराओं के आधार पर, यदि कोई युगल पति-पत्नी की तरह लंबे समय तक साथ रहता है, तो उन्हें विवाहित माना जाएगा।
- न्यायालय इस धारणा का उपयोग लिव-इन रिलेशनशिप में शामिल पक्षों (विशेष रूप से महिलाओं) और ऐसे संबंधों से पैदा हुए बच्चों के अधिकारों की रक्षा के लिए करेंगे।
लिव-इन रिलेशनशिप के मामले में उच्चतम न्यायालय के निर्णय
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