उच्चतम न्यायालय ने एम. के. रंजीतसिंह और अन्य बनाम भारत संघ मामले में यह निर्णय दिया है। न्यायालय के अनुसार CSR में स्वाभाविक रूप से पर्यावरण संरक्षण भी शामिल है। न्यायालय ने CSR दायित्वों को संवैधानिक कर्तव्यों और जैव विविधता संरक्षण से जोड़ा है।
न्यायालय द्वारा की गई मुख्य टिप्पणियां
- संवैधानिक अभिकर्ताओं के रूप में निगम (Corporations): निगम, कानूनी व्यक्ति और समाज के प्रमुख अंग होने के नाते, संविधान के अनुच्छेद 51A(g) के तहत पर्यावरण एवं वन्यजीवों की रक्षा करने के अपने मौलिक कर्तव्य से बंधे हैं।
- अनुच्छेद 51A(g): भारत के प्रत्येक नागरिक का यह कर्तव्य होगा कि वह प्राकृतिक पर्यावरण (जिसके अंतर्गत वन, झील, नदी और वन्यजीव हैं) की रक्षा करे और उसका संवर्धन करे तथा प्राणि मात्र के प्रति दयाभाव रखे।
- CSR एक दायित्व है, दान नहीं: पर्यावरण संरक्षण के लिए CSR निधि का आवंटन एक संवैधानिक कर्तव्य है, न कि कोई स्वैच्छिक परोपकारी कार्य।
- प्रजातियों की पुनर्प्राप्ति के लिए 'प्रदूषक द्वारा भुगतान' (Polluter Pays) सिद्धांत: जहां कॉर्पोरेट गतिविधियों से लुप्तप्राय प्रजातियों को खतरा होता है, वहां कंपनियों को उनके स्व-स्थाने (in-situ) और बाह्य-स्थाने (ex-situ) संरक्षण का खर्च वहन करना होगा।

कॉर्पोरेट सामाजिक उत्तरदायित्व (CSR) के बारे में
- कानूनी प्रावधान: CSR, कंपनी अधिनियम, 2013 की धारा 135 के तहत कुछ निश्चित कंपनियों के लिए एक अनिवार्य आवश्यकता है। यह उन्हें ऐसी गतिविधियों को करने के लिए बाध्य करता है, जो देश के सामाजिक, पर्यावरणीय और आर्थिक विकास में योगदान देती हैं।
- निधि आवंटन: कंपनियों को पिछले तीन वर्षों के अपने औसत निवल लाभ का 2 प्रतिशत CSR गतिविधियों पर व्यय करना होता है।
- CSR के अंतर्गत आने वाली गतिविधियां: भुखमरी, गरीबी और कुपोषण को समाप्त करना; लैंगिक समानता को बढ़ावा देना; पर्यावरणीय संधारणीयता सुनिश्चित करना आदि।