भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) ने बैंकिंग प्रणाली के लिए तरलता समावेशन (Liquidity Infusion) के उपायों की घोषणा की | Current Affairs | Vision IAS
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भारतीय रिज़र्व बैंक बाज़ार की ज़रूरतों को पूरा करने के लिए 2 लाख करोड़ रुपये के जी-सेक खरीद और 10 अरब अमेरिकी डॉलर के USD/INR स्वैप नीलामी के माध्यम से तरलता बढ़ाएगा। इसमें खुले बाज़ार संचालन और विदेशी मुद्रा हस्तक्षेप शामिल हैं।

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RBI खुले बाजार की संक्रियाओं (OMO) के तहत ₹2 लाख करोड़ की सरकारी प्रतिभूतियों (G-Sec) की खुली बाजार खरीद आयोजित करेगा। साथ ही, 10 बिलियन अमेरिकी डॉलर की 3-वर्षीय अमेरिकी डॉलर (USD)/ भारतीय रुपया (INR) 'क्रय/विक्रय विनिमय' (Buy/Sell Swap) नीलामी आयोजित करेगा।

  • खुले बाजार की संक्रियाओं (OMO) के तहत RBI बाजार में सरकारी प्रतिभूतियों (G-Secs) की बिक्री या खरीद करता है। इसका उद्देश्य बाजार में रुपये की तरलता की स्थिति को समायोजित करना होता है।
    • उदाहरण के लिए: बाजार में अतिरिक्त तरलता (Excess Liquidity) होने पर, RBI प्रतिभूतियों की बिक्री करता है। इससे बाजार से रुपये की तरलता कम हो जाती है।
  • अमेरिकी डॉलर (USD)/ भारतीय रुपया (INR) 'क्रय/ विक्रय विनिमय': इसके तहत केंद्रीय बैंक बैंकों से भारतीय रुपये (INR) के बदले अमेरिकी डॉलर (USD) खरीदता है। साथ ही, बैंकों के साथ भावी तारीख में डॉलर बेचने का एक विपरीत समझौता भी करता है।
    • अधिकृत डीलर (ADs) श्रेणी-1 के बैंक इस नीलामी में भाग लेने के लिए पात्र होते हैं।

तरलता समावेशन की आवश्यकता क्यों है?

  • RBI का विदेशी मुद्रा बाजार में हस्तक्षेप: जब रुपये के मूल्य में भारी गिरावट आती है, तो RBI अपने विदेशी मुद्रा भंडार से अमेरिकी डॉलर बेचता है। 
    • डॉलर खरीदने के लिए बैंक RBI को रुपये का भुगतान करते हैं। इससे बैंकिंग प्रणाली में तरलता कम हो जाती है।
  • मजबूत ऋण वृद्धि: जब बैंक अधिक ऋण देते हैं, तो उनके पास मौजूद अधिशेष भंडार कम हो जाता है।
  • अन्य कारण: जैसे कि अग्रिम कर का भुगतान; भारतीय इक्विटी बाजार में विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों (FPI) द्वारा बड़े पैमाने पर भारतीय शेयरों की बिक्री आदि।

तरलता बढ़ाने के अन्य साधन

  • मात्रात्मक साधन: तरलता समायोजन सुविधा (रेपो एवं रिवर्स रेपो); नकद आरक्षित अनुपात (CRR); वैधानिक तरलता अनुपात (SLR); बैंक दर आदि।
  • गुणात्मक साधन: क्रेडिट राशनिंग; नैतिक प्रोत्साहन; चयनात्मक साख नियंत्रण (SCC); मार्जिन आवश्यकता आदि।

 

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