केरल में राजनीतिक प्रतीक चिन्हों पर विवाद
केरल के राज्यपाल राजेंद्र विश्वनाथ आर्लेकर के हालिया कदमों ने राज्य सरकार के साथ एक बड़े टकराव को जन्म दिया है। विवादास्पद राजनीतिक प्रतीकों के इस्तेमाल ने उनके कार्यकाल के शुरुआती दौर में राज्य सरकार के साथ बनी सद्भावना को बिगाड़ दिया है।
राज्य मंत्रियों द्वारा विरोध प्रदर्शन
- यह विरोध प्रदर्शन भगवा ध्वज और अखंड भारत के मानचित्र के साथ भारत माता के चित्र के विरोध में किया गया था।
भारत माता की आकृति की उत्पत्ति
- इसका मूल भाव बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय द्वारा 19वीं शताब्दी के उत्तरार्ध में लिखे गए उपन्यास आनंदमठ से लिया गया है।
- 20वीं सदी के आरंभ में अबनिन्द्रनाथ टैगोर द्वारा बनाए गए चित्र में भारत माता को एक पुस्तक और मोतियों जैसी प्रतीकात्मक वस्तुओं के साथ दिखाया गया था।
प्रतीकवाद और सांस्कृतिक प्रभाव
- भारत माता को परम्परा की दिव्य संरक्षक के रूप में चित्रित किया जाता है, जो प्रायः हिन्दू प्रतिमा-विज्ञान से प्रेरित होती है।
- विभिन्न चित्रणों में उनके झंडे को तिरंगे और भगवा झंडे के साथ बदलकर दिखाया जाता है, जो विभिन्न राजनीतिक एजेंडों को दर्शाता है।
- मदर इंडिया औरदेवी जैसी फिल्मों ने अलग-अलग कथानकों को उजागर करते हुए जनधारणा को प्रभावित किया है।
धर्मनिरपेक्ष और राष्ट्रवादी चित्रण
- धार्मिक राष्ट्रवादियों ने इस छवि का उपयोग एकजुट हिंदू राष्ट्र को बढ़ावा देने के लिए किया है।
- M.F. हुसैन जैसे धर्मनिरपेक्ष कलाकार भी इस अवधारणा से जुड़े और सामूहिक चेतना में इसकी जगह पक्की की।
निष्कर्ष
भारत माता की विभिन्न व्याख्याओं को देखते हुए, इसके चित्रण को लेकर विवाद टाला जा सकता था। राज्यपालों को राजनीतिक टकराव से बचने के लिए इस जटिल प्रतीक के हिंदू बहुसंख्यकवादी दृष्टिकोण का उपयोग करने से बचना चाहिए।