कर जांच में वर्चुअल डिजिटल स्पेस तक पहुंच का प्रस्ताव
वित्त मंत्री ने आयकर विधेयक, 2025 में एक प्रावधान प्रस्तावित किया है, जिससे कर अधिकारियों को तलाशी और जब्ती कार्रवाई के दौरान किसी व्यक्ति के "वर्चुअल डिजिटल स्पेस" तक पहुंच की अनुमति मिल सकेगी। इस कदम का उद्देश्य ऑनलाइन वित्तीय गतिविधियों के बदलाव के लिए प्रवर्तन को अनुकूल बनाना है।
वर्तमान कानूनी फ्रेमवर्क
- आयकर अधिनियम, 1961 की धारा 132 भौतिक स्थानों पर तलाशी और जब्ती की अनुमति देती है।
- प्रस्तावित विधेयक इन शक्तियों को डिजिटल स्थानों तक विस्तारित करता है, जिससे गोपनीयता और संभावित अतिक्रमण पर चिंताएं उत्पन्न होती हैं।
चिंताएं और निहितार्थ
- डिजिटल स्पेस में प्रासंगिक कर जांच डेटा से कहीं अधिक शामिल है, जिसमें अनेक हितधारक शामिल हैं।
- सोशल मीडिया जैसे डिजिटल स्थानों तक पहुंच से परिवार, मित्रों और व्यावसायिक संपर्कों के बारे में जानकारी उजागर हो सकती है।
- विधेयक में 'वर्चुअल डिजिटल स्पेस' की व्यापक परिभाषा में ईमेल, क्लाउड ड्राइव और सोशल मीडिया अकाउंट शामिल हैं।
परिचालन संबंधी चुनौतियां
- विधेयक कर अधिकारियों को एक्सेस कोड को बायपास करने का अधिकार देता है, हालांकि एन्क्रिप्टेड ऐप्स से संबंधित मामलों में इसमें अनिश्चितताएं हैं।
- पत्रकारों जैसे पेशेवरों को गोपनीयता और निजता के जोखिम का सामना करना पड़ता है।
न्यायिक निगरानी और गोपनीयता संबंधी मानक
- सुप्रीम कोर्ट ने 2023 में डिजिटल डिवाइस जब्ती के लिए अंतरिम दिशा-निर्देश जारी किए।
- वैश्विक मानक तलाशी और जब्ती के लिए वैधानिक सुरक्षा और प्रक्रियात्मक सुरक्षा पर जोर देते हैं।
- कनाडा और अमेरिका ने अनुचित तलाशी के विरुद्ध अधिकार लागू किए हैं, जिसके लिए वारंट और उचित आधार की आवश्यकता होती है।
प्रस्तावित भारतीय प्रावधान बनाम वैश्विक मानक
- यह विधेयक न्यायमूर्ति के.एस. पुट्टस्वामी मामले में आनुपातिकता परीक्षण के विपरीत है, जिसमें न्यायिक निगरानी का अभाव है।
- सुरक्षा उपायों के बिना व्यक्तिगत डिजिटल डेटा तक बेरोकटोक पहुंच गोपनीयता संरक्षण मानकों को विफल करती है।
आगे की राह
- प्रवर्तन में आनुपातिकता, वैधानिकता और पारदर्शिता के सिद्धांतों का पालन किया जाना चाहिए।
- विधेयक की समीक्षा करने वाली प्रवर समिति से 'वर्चुअल डिजिटल स्पेस' की परिभाषा को परिष्कृत करने की अपेक्षा की जाती है।
- सिफारिशों में न्यायिक वारंट की आवश्यकता और व्यक्तियों के लिए निवारण तंत्र स्थापित करना शामिल है।
इसका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि विनियामक कार्रवाइयों से गोपनीयता के अधिकार का हनन न हो, तथा अनुपालन के नाम पर अनियंत्रित निगरानी से बचा जा सके।