फैशन में सांस्कृतिक विनियोग
प्राडा को हाल ही में आलोचना का सामना करना पड़ा जब उसने पारंपरिक भारतीय कोल्हापुरी चप्पलों जैसी दिखने वाली महंगी ‘टो रिंग सैंडल्स’ बेचना शुरू किया, लेकिन महाराष्ट्र के कारीगरों को कोई श्रेय नहीं दिया। ये कारीगर सदियों से इन चप्पलों को हाथ से बनाते आ रहे हैं, जिनमें टैन भैंस की खाल, बबूल की छाल और हरड़ (मायरोबालन) का उपयोग किया जाता है।
सांस्कृतिक विनियोग का मुद्दा
- विशेष रूप से पूर्वी बाजारों के उदय के साथ विश्व भर में, सांस्कृतिक विनियोग (cultural appropriation) एक विवादास्पद विषय है।
- स्टेला मेकार्टनी, गुच्ची और अन्य पश्चिमी फैशन ब्रांडों पर सांस्कृतिक तत्वों को हड़पने का आरोप लगाया गया है।
- यह बहस अक्सर उच्च बनाम निम्न संस्कृति या फर्स्ट बनाम थर्ड वर्ल्ड की बाइनरी में बदल जाती है, जिससे लक्जरी ब्रांडों को लाभ होता है।
बौद्धिक संपदा और वैश्विक मान्यता
- कमजोर GI विनियमनों और अप्रभावी बौद्धिक संपदा कानूनों के कारण भारत अपने सांस्कृतिक उत्पादों की सुरक्षा के लिए संघर्ष कर रहा है।
- 1990 के बाद से भारत को बौद्धिक सम्पदा प्राप्तियों में 90 बिलियन डॉलर का शुद्ध घाटा हुआ है।
- चिली, स्कॉटलैंड और फ्रांस जैसे अन्य देश अपने सांस्कृतिक उत्पादों को प्रभावी ढंग से संरक्षित और मार्केटिंग करते हैं, जिससे उनकी वैश्विक स्थिति बढ़ती है।
सकारात्मक सांस्कृतिक आदान-प्रदान के प्रयास और उदाहरण
- प्रादा ने भारतीय कारीगरों के साथ सहयोग करने की मंशा व्यक्त की है।
- डियोर और गुच्ची जैसे ब्रांडों ने भारत में स्थानीय कारीगरों के साथ सफलतापूर्वक जुड़कर उन्हें मान्यता प्रदान की है और आय को साझा किया है।
- सांस्कृतिक संरक्षण के उदाहरणों में रोम के प्रतिष्ठित स्थलों के जीर्णोद्धार में फेंडी और बुलगरी का योगदान शामिल है।
अपनी सांस्कृतिक विरासत के प्रति भारत का दृष्टिकोण
- भारत अक्सर अपने पारंपरिक शिल्पों को कम महत्व देता है तथा उनकी सराहना करने से पहले वैश्विक मान्यता का इंतजार करता है।
- ऐतिहासिक उदाहरणों में सत्यजीत रे की अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त करने से पहले प्रारंभ में स्थानीय तौर पर उन्हें मिली अस्वीकृति शामिल है।
- सैली होलकर और जॉन बिसेल जैसे विदेशियों ने भारतीय शिल्प को पुनर्जीवित करने और वैश्विक ब्रांड बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
अपनी सांस्कृतिक विरासत को संरक्षित करने के लिए भारत को बाहरी मान्यता की प्रतीक्षा करने के बजाय अपनी मूल्य श्रृंखलाओं को बढ़ावा देना और विकसित करना होगा।