परमाणु ऊर्जा के लिए भारत के नए प्रयास
भारत की परमाणु ऊर्जा की नई खोज राजनीतिक प्रेरणाओं से प्रेरित है, जिसके लिए निजी क्षेत्र की भागीदारी की अनुमति देने और दायित्व संबंधी चिंताओं को कम करने हेतु कानूनी संशोधन आवश्यक हैं। यह बदलाव एक नए इकोसिस्टम के निर्माण की दिशा में है, जो केवल परमाणु प्रतिरोध पर केंद्रित रहने के बजाय अब बिजली उत्पादन को एक रणनीतिक लक्ष्य बनाने का प्रयास करता है।
रणनीतिक लक्ष्य और वर्तमान स्थिति
- भारत का लक्ष्य 2047 तक कुल विद्युत क्षमता 1,800 गीगावाट तक पहुंचाना है, जिसमें 250 गीगावाट परमाणु स्रोतों से प्राप्त होगी।
- वर्तमान में भारत का परमाणु ऊर्जा उत्पादन 8 गीगावाट से थोड़ा अधिक है, जो पर्याप्त वृद्धि की आवश्यकता को दर्शाता है।
चुनौतियाँ और आवश्यकताएँ
- परमाणु ऊर्जा विभाग (DAE) द्वारा प्रबंधित मौजूदा व्यवस्था सभी परमाणु गतिविधियों को नियंत्रित करती है, जिससे विस्तार में बाधा उत्पन्न होती है।
- दूरसंचार क्षेत्र में कार्यरत ट्राई के समान ही एक नए स्वतंत्र नियामक ढांचे का सुझाव दिया गया है, ताकि इस क्षेत्र का प्रभावी ढंग से प्रबंधन किया जा सके।
- सिफारिशों में परिवर्तन को सुगम बनाने के लिए कैबिनेट सचिव के नेतृत्व में एक परमाणु ऊर्जा मिशन की स्थापना करना शामिल है।
अंतर्राष्ट्रीय संदर्भ और अमेरिका-भारत संबंध
- अमेरिकी सीनेट की विदेश संबंध समिति ने अमेरिकी परमाणु प्रौद्योगिकी निर्यात को बढ़ावा देने के लिए अंतर्राष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा अधिनियम, 2025 पारित किया है। इसमें विशेष रूप से भारत को "साझेदार" राष्ट्र के रूप में उल्लेख किया गया।
- यह अधिनियम चीन, रूस और ईरान जैसे देशों को छोड़कर सहयोग को बढ़ावा देता है।
- इस सहयोग से लाभ उठाने के लिए भारत को दायित्व, अपशिष्ट प्रबंधन और लाइसेंसिंग प्रणालियों के लिए स्वीकार्य ढांचा स्थापित करना होगा।
निष्कर्ष
भारत के परमाणु ऊर्जा विस्तार के लिए महत्वपूर्ण संरचनात्मक परिवर्तन, संस्थागत समर्थन और अंतर्राष्ट्रीय भागीदारी की आवश्यकता है। इसका लक्ष्य परमाणु विकास के लिए अनुकूल वातावरण तैयार करना है। यह एक ऐसा दृष्टिकोण है जिसकी शुरुआत पिछले परमाणु समझौते से हुई थी, लेकिन यह अधूरा था।