भारत का डिजिटल प्रतिस्पर्धा कानून: एक अवलोकन
भारत में कॉरपोरेट कार्य मंत्रालय (MCA) ने 2024 में एक मसौदा पूर्व-प्रतिस्पर्धा डिजिटल कानून (ex-ante digital competition law) जारी किया, जो यूरोपीय संघ के डिजिटल मार्केट्स अधिनियम (DMA) से प्रेरित है। इससे यह सवाल उठता है कि क्या भारत को वास्तव में इस नए कानून की आवश्यकता है या फिर उसका मौजूदा प्रतिस्पर्धा ढांचा ही पर्याप्त है।
मौजूदा प्रतिस्पर्धा कानून ढांचा
- प्रतिस्पर्धा अधिनियम 2002: यह डिजिटल अर्थव्यवस्था में प्रतिस्पर्धा-विरोधी व्यवहार से निपटने के लिए एक व्यापक ढांचा प्रदान करता है।
- 2023 संशोधन: इसके तहत बिना किसी पूर्वाग्रह के भारी छूट, बंडलिंग और डेटा दुरुपयोग जैसी डिजिटल चिंताओं को दूर करने के लिए लचीलापन बढ़ाया गया।
- CCI द्वारा प्रवर्तन: भारतीय प्रतिस्पर्धा आयोग (CCI) ने गूगल, मेटा, व्हाट्सएप, मेकमायट्रिप, फ्लिपकार्ट और उबर के विरुद्ध मामलों में इन प्रावधानों को प्रभावी ढंग से लागू किया है।
मसौदा पूर्व-प्रतिस्पर्धा कानून
- कुछ क्षेत्रों ने इन कानूनों को अपना लिया है, जो प्रायः पूर्ण प्रतिबन्ध और संरचनात्मक पूर्वधारणाएं लागू करते हैं।
भारत का दृष्टिकोण
- मसौदा डिजिटल प्रतिस्पर्धा विधेयक (DCB) 2024: इसमें पूर्व-निर्धारित दायित्वों का प्रस्ताव रखा गया, लेकिन इस पर आलोचना हुई तथा नवाचार को बाधित न करने के उद्देश्य से फिलहाल इसे रोक दिया गया है।
- न्यायिक संयम: Matrimony.com बनाम गूगल जैसे मामलों में CCI का दृष्टिकोण डिजिटल बाजारों की सूक्ष्म समझ को दर्शाता है।
- प्रवर्तन चुनौतियाँ: प्रवर्तन में देरी में देरी देखने को मिली है जैसा कि CCI बनाम सेल मामले में उजागर हुआ है। इस समस्या का समाधान करने की आवश्यकता है।
आगे की राह
- मामलों के त्वरित समाधान और CCI के लिए बेहतर संसाधनों के साथ वर्तमान प्रणाली में सुधार पर ध्यान केन्द्रित करना।
- लचीलापन बनाए रखते हुए क्षेत्र पर आधारित दिशानिर्देश जारी करना।
- प्रवर्तन कर्मियों के प्रशिक्षण एवं कौशल उन्नयन पर जोर देना।
- सिद्धांत-आधारित, साक्ष्य-संचालित नियामक दृष्टिकोण को बढ़ावा देना।
भारत सरकार को संस्थागत क्षमता निर्माण और समयबद्ध प्रवर्तन को प्राथमिकता देनी चाहिए, ताकि नियमन में एक ऐसा सिद्धांत-आधारित और व्यावहारिक दृष्टिकोण बना रहे, जो डिजिटल बाजारों सहित विभिन्न क्षेत्रों में आर्थिक विश्लेषण को बनाए रखे।