आसियान के साथ भारत के मुक्त व्यापार समझौते का विश्लेषण
भारतीय उद्योग अधिक संरक्षणवादी नीतियों की वकालत कर रहे हैं तथा सरकार से दक्षिण-पूर्व एशियाई राष्ट्रों के संगठन (आसियान) के साथ मुक्त व्यापार समझौते (FTA) पर पुनर्विचार करने या उसे त्यागने का आग्रह कर रहे हैं, जो 2010 से प्रभावी है। हालांकि, इस संरक्षणवादी रुख को पिछड़ा नजरिया माना जा रहा है, क्योंकि एशियाई बाजारों के साथ गहन एकीकरण से भारत को अधिक लाभ होगा।
चिंताएँ और चुनौतियाँ
- चीनी सामानों की डंपिंग: दक्षिण-पूर्व एशिया के रास्ते भारत में चीनी सामानों की डंपिंग एक गंभीर चिंता का विषय है। यह समस्या पूरे दक्षिण-पूर्व एशिया में व्याप्त है, जहाँ वियतनाम जैसे देश चीन के खिलाफ एंटी-डंपिंग उपाय लागू कर रहे हैं।
- रूल ऑफ ओरिजिन: यह सुनिश्चित करना आवश्यक है कि रूल ऑफ ओरिजिन व्यापार दक्षता को प्रभावित किए बिना पारदर्शिता को बढ़ावा दें। पहले के दौर में विकसित मौजूदा नियमों को आधुनिक विनिर्माण की जटिलताओं और बढ़ी हुई सेवा सामग्री को प्रतिबिंबित करने के लिए अपडेट करने की आवश्यकता है।
रणनीतिक और आर्थिक दृष्टिकोण
- वैश्विक मूल्य श्रृंखलाओं के साथ एकीकरण: भारत को ऐसे समझौतों पर आगे बढ़ना होगा, जो वैश्विक मूल्य श्रृंखलाओं में एकीकरण को सुगम बनाएँ और प्रतिस्पर्धात्मकता बढ़ाएँ। व्यापार समझौतों से पीछे हटने के बजाय उन्हें उन्नत और गहन बनाने का प्रयास होना चाहिए।
- हितधारकों पर प्रभाव: मुक्त व्यापार समझौता (FTA) न केवल बड़े, डोमेस्टिक क्षेत्र में केंद्रित व्यवसायों को प्रभावित करता है, बल्कि निर्यातकों और उपभोक्ताओं को भी प्रभावित करता है। उदाहरण के लिए, आसियान से अलगाव भारत में खाद्य तेल की कीमतों में उतार-चढ़ाव को प्रभावित कर सकता है।
- कृषि निर्यात: भारत द्वारा आसियान को किए जा रहे कृषि निर्यात में गिरावट (विशेष रूप से गोजातीय मांस) अंतर्राष्ट्रीय व्यापार नीति की तुलना में घरेलू नीति के कारण अधिक है।
भू-राजनीतिक विचार
आसियान इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण रणनीतिक साझेदार है। भारत को यह सुनिश्चित करने की दिशा में काम करना चाहिए कि यह क्षेत्र उसकी रणनीतिक दृष्टि के अनुरूप हो और उसका समर्थन करे, न कि आसियान को चीन के साथ जुड़ा हुआ मानकर उसे नज़रअंदाज़ कर दिया जाए।