मतदाता सूची संशोधन पर सर्वोच्च न्यायालय के निर्देश
सुप्रीम कोर्ट ने बिहार में मतदाता सूची की विशेष गहन पुनरीक्षण (Special Intensive Revision - SIR) प्रक्रिया के दौरान आधार कार्ड, मतदाता पहचान पत्र (Voter ID) और राशन कार्ड को स्वीकार्य दस्तावेज के रूप में मानने के लिए चुनाव आयोग (EC) को निर्देश दिया है। यह निर्णय भारत की लोकतांत्रिक व्यवस्था में 'मतदान के अधिकार' को एक मौलिक आधार के रूप में रेखांकित करता है।
भारत में सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार
- पश्चिमी लोकतंत्रों में देखी गई क्रमिकता की तुलना में सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार (UAS) के प्रति भारत की प्रतिबद्धता महत्वपूर्ण है।
- भारतीय संविधान का अनुच्छेद 326 प्रत्येक वयस्क नागरिक को मतदान का अधिकार प्रदान करता है, जिसे 1989 में 61वें संविधान संशोधन द्वारा 21 वर्ष से घटाकर 18 वर्ष कर दिया गया।
कानूनी ढांचा और सर्वोच्च न्यायालय के फैसले
- लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1950 मतदाता सूची की तैयारी और संशोधन से संबंधित है।
- लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 चुनाव आचरण, उम्मीदवारी और चुनावी अपराधों को नियंत्रित करता है।
- कुलदीप नायर बनाम भारत संघ (2006) मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने माना कि 'चुनाव का अधिकार' एक वैधानिक अधिकार है, न कि मौलिक या संवैधानिक अधिकार।
- न्यायमूर्ति अजय रस्तोगी ने अनूप बरनवाल बनाम भारत संघ (2023) मामले में असहमति जताते हुए 'मतदान के अधिकार' को अनुच्छेद 19(1)(ए) और 21 की अभिव्यक्ति के रूप में देखा, हालांकि यह अल्पमत की राय है।
मतदाता सूची की अखंडता और विसंगतियां
- स्वतंत्र एवं निष्पक्ष चुनाव सटीक मतदाता सूची पर निर्भर करते हैं।
- चूक, अयोग्य समावेशन और डुप्लिकेट जैसे मुद्दे "एक व्यक्ति, एक वोट" सिद्धांत को कमजोर कर सकते हैं।
- चुनाव परिणामों को प्रभावित करने वाली बड़ी एवं प्रणालीगत त्रुटियां छोटी-मोटी गलतियों की तुलना में महत्वपूर्ण होती हैं।
- सर्वोच्च न्यायालय ने नामांकन पुनरीक्षण प्रक्रिया में बाधा डालने के बजाय उसे बेहतर बनाने पर जोर दिया है।
राजनीतिक दलों और चुनावी पंजीकरण की भूमिका
- यद्यपि राजनीतिक दल मतदाता सूची के लिए सीधे तौर पर जिम्मेदार नहीं हैं, फिर भी उन्हें यह सुनिश्चित करने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है कि पात्र मतदाताओं को इसमें शामिल किया जाए।
- अनुच्छेद 324 के तहत चुनाव आयोग सटीक मतदाता सूची की तैयारी सुनिश्चित करता है।
- मतदाता पंजीकरण निर्धारित करने में "सामान्य निवासी" शब्द महत्वपूर्ण है, जिसका अर्थ है किसी निर्वाचन क्षेत्र में वास्तविक, निरंतर उपस्थिति, जैसा कि मनमोहन सिंह मामले (1991) में दर्शाया गया है।
डाक मतपत्र और ग़ैर-निवासी मतदाता
- निर्वाचन संचालन नियम, 1961 के नियम 18 के अंतर्गत सशस्त्र बलों के कार्मिकों जैसे सेवारत मतदाताओं के लिए डाक मतपत्र उपलब्ध हैं।
- ग़ैर-निवासी मतदाता लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1950 की धारा 20ए के अंतर्गत पंजीकरण करा सकते हैं, लेकिन उन्हें व्यक्तिगत रूप से मतदान करना होगा।
विवाद और नागरिकता सत्यापन
'नागरिकता सत्यापन' पर बहस विवादास्पद है, जैसा कि लाल बाबू हुसैन बनाम ERO (1995) मामले में देखा गया, जहां सर्वोच्च न्यायालय ने मतदाता सूचियों के संचालन में उचित प्रक्रिया और प्राकृतिक न्याय पर जोर दिया।
निष्कर्ष
चुनावी अखंडता के लिए सतर्क संस्थाओं और जागरूक नागरिकों सहित सभी हितधारकों की सक्रिय भागीदारी आवश्यक है।