भारत की खाद्य सुरक्षा और मृदा स्वास्थ्य
1960 के दशक में अमेरिकी PL-480 प्रोग्राम के तहत खाद्य सहायता पर अत्यधिक निर्भर रहने से लेकर दुनिया का सबसे बड़ा चावल निर्यातक बनने तक, भारत ने एक उल्लेखनीय बदलाव हासिल किया है। 2024-25 (वित्त वर्ष 25) में, भारत ने 61 मिलियन टन के वैश्विक बाजार में से 20.2 मिलियन टन चावल का निर्यात किया। भारत दुनिया के सबसे बड़े खाद्य वितरण कार्यक्रम, पीएम-गरीब कल्याण योजना (PMGKY) का भी संचालन करता है, जिसके तहत 800 मिलियन से अधिक लोगों को मासिक रूप से मुफ्त चावल या गेहूं उपलब्ध कराया जाता है।
गरीबी में कमी और शेष चुनौतियाँ
- अत्यधिक गरीबी में उल्लेखनीय कमी आई है तथा इसकी संख्या 2011 के 27.1% से घटकर 2022 में 5.3% हो गई है।
- इन उपलब्धियों के बावजूद, कुपोषण एक बड़ी चुनौती बनी हुई है। इसमें पांच वर्ष से कम आयु के 35.5% बच्चे स्टंटेड हैं, 32.1% अंडरवेट हैं, तथा 19.3% वेस्टेड हैं।
- ध्यान कैलोरी पर्याप्तता से हटकर पोषण सुरक्षा पर केंद्रित होना चाहिए।
मृदा स्वास्थ्य और कृषि उत्पादकता
- मृदा में सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी से कृषि उत्पादकता और फसलों की पोषण गुणवत्ता में कमी आती है।
- मृदा में जिंक की कमी के कारण अनाज में जिंक की मात्रा कम हो जाती है, जिससे बच्चों का विकास अवरुद्ध हो जाता है।
- मृदा स्वास्थ्य कार्ड योजना के अनुसार, 2024 में परीक्षण किए गए 8.8 मिलियन से अधिक मृदा नमूनों में से:
- 5% से भी कम में पर्याप्त नाइट्रोजन था।
- 40% में पर्याप्त मात्रा में फॉस्फेट पाया गया था।
- 32% में पर्याप्त पोटाश था।
- 20% में पर्याप्त मृदा कार्बनिक कार्बन (SOC) था।
- कई मृदाओं में सल्फर तथा सूक्ष्म पोषक तत्वों, जैसे- लोहा, जस्ता और बोरोन की कमी होती है।
- उर्वरकों का असंतुलित उपयोग: पंजाब और तेलंगाना जैसे राज्यों में नाइट्रोजन (N) का अधिक उपयोग तथा फास्फोरस (P) और पोटेशियम (K) का कम उपयोग।
उर्वरक असंतुलन के प्रभाव
- उर्वरक-से-अनाज प्रतिक्रिया अनुपात 1970 के दशक के 1:10 से घटकर 2015 में 1:2.7 रह गया है।
- दानेदार यूरिया के कारण नाइट्रोजन की काफी हानि होती है तथा फसलों द्वारा केवल 35-40% ही अवशोषित किया जाता है।
- अतिरिक्त नाइट्रोजन वायुमंडलीय ग्रीनहाउस गैसों और भूजल प्रदूषण में योगदान देता है।
- यूरिया को अक्सर गैर-कृषि कार्यों में इस्तेमाल किया जाता है या अवैध रूप से निर्यात किया जाता है।
मृदा स्वास्थ्य में सुधार के समाधान
- भारत को अंधाधुंध उर्वरक उपयोग से अनुकूलित, विज्ञान-आधारित मृदा पोषण प्रबंधन की ओर ट्रांजीशन की आवश्यकता है।
- इसमें सटीक, क्षेत्र-विशिष्ट, डेटा-आधारित मृदा पोषण रणनीतियों को शामिल किया जा सकता है, जो कठोर मृदा परीक्षण से प्राप्त जानकारी पर आधारित हों।
सहयोगात्मक प्रयास
भारतीय अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक संबंध अनुसंधान परिषद (ICRIER) और OCP न्यूट्रीक्रॉप्स ने मृदा स्वास्थ्य में सुधार के लिए साझेदारी की है। इनका सहयोग फसल उत्पादकता और पोषण संबंधी विशेषताओं को बढ़ाने के लिए समाधान विकसित करने और उनका विस्तार करने पर केंद्रित है, जिसका उद्देश्य सतत खाद्य उत्पादन सुनिश्चित करना है। यह पहल इस बात पर ज़ोर देती है कि मृदा स्वास्थ्य का समाधान केवल एक कृषि समस्या नहीं है, बल्कि एक जन स्वास्थ्य अनिवार्यता है, जो भारत की आबादी को प्रभावी ढंग से पोषण प्रदान करने के लिए आवश्यक है।