भारत में बढ़ते शहरीकरण के मद्देनजर शहरी बाढ़ के बढ़ते मामलों से स्थानीय अवसंरचना , व्यवसायों और मानव जीवन को भारी नुकसान हुआ है। इसका असर स्थानीय, उप-राष्ट्रीय और राष्ट्रीय अर्थव्यवस्थाओं पर पड़ता है।
शहरी बाढ़ की बढ़ती घटनाओं के लिए जिम्मेदार कारक
- क्षेत्रीय स्थलाकृति: उदाहरण के लिए- बेंगलुरु लगभग समुद्र जल-स्तर से 900 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है और यहां अतिरिक्त जल की निकासी के लिए कोई बड़ी नदी भी नहीं है।
- अतिक्रमण और कंक्रीटीकरण: बेंगलुरु में पहले मौजूद रही झील को भर दिया गया है और उसकी पारिस्थितिकी प्रणालियां सीमित हो गई हैं।
- शासन प्रणाली की कमजोरी: उदाहरण के लिए- बेंगलुरु में जल का प्रबंधन बेंगलुरु जल आपूर्ति और सीवरेज बोर्ड द्वारा किया जाता है तथा इसका नियोजन मुख्य रूप से बेंगलुरु विकास प्राधिकरण द्वारा किया जाता है। इन दोनों निकायों के मध्य समन्वय और तालमेल का अभाव देखने को मिलता है।
- मौजूदा अवसंरचना की अक्षमता: पहले से बनाई गई वर्षा जल निकासी प्रणाली का या तो उचित रखरखाव नहीं किया गया है या वे अत्यधिक वर्षा को संभालने में सक्षम नहीं हैं। उदाहरण के लिए- चेन्नई (2023), केरल (2019) आदि।
- जलवायु परिवर्तन: तापमान में वृद्धि के कारण वर्षा की तीव्रता और आवृत्ति बढ़ गई है ।
शहरी बाढ़ की समस्या से निपटने के लिए प्रमुख उपाय
- राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (NDMA) द्वारा जारी शहरी बाढ़ प्रबंधन संबंधी दिशा-निर्देश: इसमें पर्यावरण, अर्थव्यवस्था और विकास के मध्य परस्पर संबंध को उजागर किया गया है।
- संशोधित शासन तंत्र: इस समस्या से संबंधित किसी पेशेवर की अध्यक्षता में बहु-हितधारक और अंतर-विभागीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण का गठन करना।
- शहर स्तरीय योजना: इसमें बाढ़ शमन योजना; शहरों की जलवायु कार्य योजना आदि शामिल हैं।
- विश्व के अन्य हिस्सों की सर्वोत्तम व्यवस्था: हांगकांग की विशाल भूमिगत जल भंडारण योजना की क्षमता 100,000 घन मीटर है। इसे ताई हैंग स्टॉर्मवाटर स्टोरेज टैंक कहा जाता है।