सुप्रीम कोर्ट ने झुडपी के जंगलों को वन भूमि घोषित किया, हालांकि यहां 1996 से पहले निर्मित संरचनाओं को इससे छूट दी है। यह फैसला पर्यावरण की सुरक्षा और आजीविका के अधिकार के बीच संतुलन स्थापित करता है।
सुप्रीम कोर्ट के फैसले के मुख्य बिंदुओं पर एक नजर
- झुडपी जंगल (महाराष्ट्र): इस निर्णय के बाद, झुडपी के जंगल की भूमि को कोर्ट के 1996 के फैसले के अनुरूप वन भूमि के रूप में माना जाएगा।
- टी. एन. गोदावर्मन तिरुमुलपाद बनाम संघ सरकार (1996) वाद में, कोर्ट ने वन (संरक्षण) अधिनियम, 1980 के तहत 'वन भूमि’ की परिभाषा का विस्तार किया था। साथ ही, यह भी स्पष्ट किया था कि यह अधिनियम सभी वनों पर लागू होना चाहिए, चाहे उनके स्वामित्व की प्रकृति या वर्गीकरण कुछ भी हो।
- 1996 से पहले के भूमि आवंटनों को छूट: यह अपवाद जनहित को ध्यान में रखते हुए शामिल किया गया है, क्योंकि उन भूमियों पर अब सरकारी भवन, घर, स्कूल आदि निर्मित हो चुके हैं।
- हालांकि, कोर्ट ने राज्य सरकार को केंद्र से वन (संरक्षण) अधिनियम के तहत मंजूरी लेने का आदेश दिया है।
- साथ ही, यह भी कहा है कि भूमि उपयोग में बदलाव नहीं किया जा सकता और इसका हस्तांतरण केवल विरासत के माध्यम से ही अनुमत है।
- 1996 के बाद के आवंटनों के लिए जवाबदेही: 1996 के बाद के भूमि आवंटनों के लिए, राज्य सरकार को कारण बताना होगा और इसके लिए जिम्मेदार अधिकारियों के नाम भी बताने होंगे।
- केंद्र तभी इन प्रस्तावों पर कार्यवाही करेगा, जब उन अधिकारियों के खिलाफ वन अधिनियम के तहत कार्रवाई की जाएगी।
- गैर-आवंटित भूमियों की सुरक्षा: सभी खंडित भू-खंडों (जिनका क्षेत्रफल तीन हेक्टेयर से कम है और वे किसी भी वन क्षेत्र से सटे हुए नहीं हैं) को संरक्षित वन घोषित किया जाएगा।
- गैर-वन उपयोग के लिए वन (संरक्षण) अधिनियम के तहत अनुमोदन की आवश्यकता होती है, और ऐसी भूमि को किसी भी गैर-सरकारी इकाई को आवंटित नहीं किया जा सकता है।
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