यह रिपोर्ट आर्थिक सहयोग एवं विकास संगठन (OECD) ने जारी की है।
रिपोर्ट के मुख्य बिंदुओं पर एक नजर
- सूखे की गंभीरता में वृद्धि: दुनिया का लगभग 40% भूमि क्षेत्र सूखे की बार-बार और गंभीर स्थिति का सामना कर रहा है।
- गंभीर सूखे के कुछ हालिया उदाहरणों में 2022 का यूरोप में पड़ने वाला सूखा, 2021 का कैलिफोर्निया सूखा, और हॉर्न ऑफ अफ्रीका (विशेष रूप से सोमालिया) में सूखा शामिल हैं।
- आर्थिक प्रभाव: सूखे की औसत अवधि से आर्थिक हानि हर साल 3% से 7.5% तक बढ़ रही है।
- भारत, ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों में जल से जुड़ी समस्याओं के कारण जलविद्युत ऊर्जा संयंत्रों का संचालन बाधित हो सकता है।
- अंतर्देशीय नदी परिवहन प्रणाली पर प्रभाव पड़ता है (जैसे हाल ही में पनामा नहर में सूखे के कारण समस्याएं हुई थी)।
- फसल की पैदावार में 22% तक की गिरावट आ सकती है।
- पारिस्थितिक प्रभाव:
- मृदा की नमी में गिरावट: 1980 के बाद से, वैश्विक भूमि के 37% हिस्से में मृदा की नमी में उल्लेखनीय गिरावट देखी गई है।
- भूजल स्तर में गिरावट: पूरी दुनिया में भूजल स्तर नीचे जा रहा है, और 62% निगरानी किए गए जलभृतों (aquifers) में लगातार गिरावट दर्ज की गई है।
- अन्य प्रभाव:
- विश्व मौसम विज्ञान संगठन (WMO), 2021 के अनुसार सभी आपदाओं से होने वाली मौतों में से 34% मौतें सूखे की वजह से होती हैं। इसके अलावा, सूखा गरीबी, असमानता और लोगों के पलायन की समस्याओं को और भी ज़्यादा बढ़ा देता है।

सूखे की रोकथाम के लिए शुरू की गई प्रमुख पहलेंवैश्विक स्तर पर शुरू की गई पहलें:
भारत में आरंभ की गई पहलें:
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