यह वारफेयर ग्लोबल कनेक्टिविटी के लिए खतरा है तथा भू-राजनीतिक परिदृश्य को नया रूप दे सकता है।
सीबेड वारफेयर के बारे में
- इसमें जलमग्न समुद्री अवसंरचना को नुकसान पहुंचाने या उनकी सुरक्षा करने के लिए समुद्र नितल (सीबेड) पर या वहां से या उसे लक्षित करके सैन्य अभियान शामिल हैं।
- इस वारफेयर में उपयोग किए जाने वाले साधनों में मानव-रहित अंडरवाटर व्हीकल (UUV), रिमोटली आपरेटेड व्हीकल (ROV), सबमर्सिबल्स आदि शामिल हैं।
इस वारफेयर की बढ़ती अवधारण के लिए उत्तरदायी कारक
- समुद्र में जलमग्न अवसंरचना पर बढ़ती निर्भरता: इसमें कम्युनिकेशन केबल्स, एनर्जी पाइपलाइन्स, आदि शामिल हैं।
- गहरे समुद्र से जुड़ी प्रौद्योगिकी की उन्नति: इससे सीबेड वारफेयर का दायरा बढ़ा है। पहले यह केवल कम्युनिकेशन केबल्स को क्षति पहुंचाने और ग्लोबल कनेक्टिविटी को बाधित करने तक सीमित था, लेकर अब निगरानी, टोही और साइबर वारफेयर जैसे जटिल कार्यों तक बढ़ गया है।
- महासागरीय अर्थव्यवस्था की बढ़ती क्षमता: आर्थिक सहयोग एवं विकास संगठन (OECD) के अनुसार इसकी क्षमता 2030 तक 3,000 बिलियन डॉलर तक पहुंच सकती है।
- इसमें तेल व गैस अन्वेषण, फाइबर ऑप्टिक कम्युनिकेशन के लिए जलमग्न केबल्स जैसी कई गतिविधियों में भविष्य की अपार संभावनाएं हैं।

सीबेड वारफेयर में क्षमता निर्माण की आवश्यकता क्यों है?
- बढ़ते भू-राजनीतिक हित: फ्रांसीसी नौसेना ने 2022 में अपने सामरिक सीबेड वारफेयर सिद्धांत को जारी किया था। इसमें संयुक्त राज्य अमेरिका, यूनाइटेड किंगडम, चीन जैसे अन्य देश भी समान रूप से रुचि दिखा रहे हैं।
- हिंद-प्रशांत क्षेत्र की सुरक्षा: इस क्षेत्र में महत्वपूर्ण समुद्री जलमग्न कम्युनिकेशन केबल्स, आवश्यक पाइपलाइन्स, एनर्जी रूट्स (पाइपलाइन इत्यादि) आदि मौजूद हैं।
- इस क्षेत्र में चीन के बढ़ते प्रभाव के कारण इनकी सुरक्षा को लेकर चिंताएं बढ़ गई हैं।
- बढ़ता तनाव: हालिया घटनाओं जैसे नॉर्ड स्ट्रीम-1 और नॉर्ड स्ट्रीम-2 गैस पाइपलाइनों में विस्फोट (2022), बाल्टिक सागर में जलमग्न कम्युनिकेशन केबल्स को क्षति पहुंचाने की घटनाएं (2023 व 2024) आदि के रूप में यह स्पष्ट है।
- समुद्र नितल आधारित निगरानी का निर्माण करना: पनडुब्बियों की गतिविधियों पर नज़र रखने के लिए आधुनिक नौसैनिक रणनीति का निर्माण करना जरूरी है।