भारत के इनकार के कारण यह बैठक संयुक्त घोषणा को अपनाए बिना ही संपन्न हो गई, क्योंकि SCO के नियमों के अनुसार संयुक्त घोषणा के लिए पूर्ण सहमति की आवश्यकता होती है।
- भारत के रक्षा मंत्री ने दोहराया कि भारत हमेशा ‘वन अर्थ, वन फैमिली, वन फ्यूचर’ के सिद्धांत पर वैश्विक चुनौतियों का समाधान करने के लिए आम सहमति बनाने का पक्षधर रहा है। यह भारत की प्राचीन सोच ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ पर आधारित है।
- उन्होंने यह भी बताया कि SCO दुनिया की 30% GDP और 40% जनसंख्या का प्रतिनिधित्व करता है।

भारत के लिए SCO का महत्त्व
- क्षेत्रीय सुरक्षा को बढ़ावा: SCO का रीजनल एंटी-टेररिस्ट स्ट्रक्चर (RATS) आतंकवाद से निपटने में मदद कर सकता है।
- सामाजिक और आर्थिक संबंधों को बढ़ावा: SCO यंग साइंटिस्ट्स कॉन्क्लेव और इनोवेशन व स्टार्ट-अप्स पर विशेष कार्य समूह जैसे कार्यक्रमों के जरिए सहयोग को बढ़ावा देता है।
- उल्लेखनीय है कि इनोवेशन व स्टार्ट-अप्स पर विशेष कार्य समूह को भारत ने प्रस्तावित किया था।
- क्षेत्रीय संपर्क को मजबूत करना: अंतर्राष्ट्रीय उत्तर-दक्षिण परिवहन गलियारे (INSTC) में SCO सदस्य शामिल हैं। इसलिए, इन देशों का समर्थन भारत के लिए फायदेमंद हो सकता है।
- ऐसी परियोजनाएं चीन की बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) को प्रतिसंतुलित करने के लिए भी जरूरी हैं।
- पश्चिमी देशों के प्रभुत्वाधीन प्रभावशाली संस्थाओं का प्रतिसंतुलन: SCO ने व्यापार के लिए डॉलर की बजाय राष्ट्रीय मुद्राओं के उपयोग का प्रस्ताव दिया है। इससे पश्चिमी दबदबे वाली संस्थाओं का प्रभाव कम किया जा सकता है।
भारत को SCO में जिन प्रमुख चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है, वे हैं: चीन-पाकिस्तान की नजदीकी; चीन का पाकिस्तान द्वारा प्रायोजित सीमा-पार आतंकवाद को लेकर नरम रुख; SCO को एक पश्चिम-विरोधी समूह के रूप में देखा जाना, आदि।