ग्रामीण स्थानीय निकायों (RLBs) को निधियों का अंतरण केंद्रीय वित्त आयोग की सिफारिशों के आधार पर किया जाता है। केंद्रीय वित्त आयोग को संविधान के अनुच्छेद 280 के तहत शक्तियां प्रदान की गई हैं।
संसदीय रिपोर्ट में उठाई गई मुख्य चिंताएं:

- RLBs को मिलने वाली निधियों में लगातार कमी: इससे 73वें संविधान संशोधन के तहत वित्तीय विकेंद्रीकरण की नींव कमजोर होती है।
- बिना शर्त और योजना आधारित निधियों में कमी (बॉक्स देखें): इससे विकास में पंचायतों (PRIs) की भूमिका सीमित हो जाती है। साथ ही, एक स्वशासी संस्था के रूप में उनकी विश्वसनीयता में कमी होने लगती है।
- पंचायतों को 3Fs (कार्य, निधि और पदाधिकारी) का हस्तांतरण: यह अभी भी अधूरा, बिखरा हुआ और राज्यों के स्तर पर असमान बना हुआ है।
- राज्य वित्त आयोगों (SFCs) के गठन में देरी: उदाहरण के लिए- कुछ राज्यों ने तो अभी तक तीसरे, चौथे और पांचवें राज्य वित्त आयोग का गठन भी नहीं किया है।
- कुछ राज्य समय पर लेखा परीक्षण और कार्रवाई की रिपोर्ट (ATR) प्रस्तुत नहीं करते हैं। उदाहरण के लिए: अरुणाचल प्रदेश और छत्तीसगढ़।
रिपोर्ट में की गई प्रमुख सिफारिशें
- पंचायती राज संस्थाओं (PRIs) को पर्याप्त, बिना शर्त और प्रदर्शन आधारित निधियां सुनिश्चित की जानी चाहिए। साथ ही, ऐसी व्यवस्था बनाई जानी चाहिए, जिससे निधियों की सुरक्षा हो, उनका गलत उपयोग न हो और पारदर्शिता बनी रहे।
- केंद्र सरकार को चाहिए कि वह राज्य सरकारों पर राज्य वित्त आयोगों (SFCs) का समय पर गठन करने का दबाव बनाए, ताकि केंद्र से मिलने वाले अनुदान में कोई रुकावट न आए।
- प्रत्येक राज्य द्वारा PRIs को अधिकारों के हस्तांतरण के लिए एक स्पष्ट और समयबद्ध योजना तैयार करनी चाहिए तथा उसे सार्वजनिक करना चाहिए।
15वें वित्त आयोग के तहत ग्रामीण स्थानीय निकायों (RLBs) को दिए जाने वाले अनुदान दो भागों में बांटे गए हैं:
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