केंद्रीय उपभोक्ता संरक्षण प्राधिकरण (CCPA) ने रैपिडो के उन विज्ञापनों पर संज्ञान लिया है, जिनमें उपभोक्ताओं से “5 मिनट में ऑटो, नहीं तो ₹50 पाएं” और “गारंटीड ऑटो” का वादा किया गया था। जांच के बाद, ये विज्ञापन झूठे, भ्रामक और उपभोक्ताओं के प्रति अनुचित पाए गए।
भ्रामक विज्ञापनों से जुड़े नैतिक मुद्दे
- अधिकार-आधारित दृष्टिकोण का उल्लंघन: इसके कारण सूचित करने के अधिकार, चुनने के अधिकार और सुरक्षा के अधिकार का उल्लंघन होता है।
- उदाहरण के लिए- रेड बुल गिव्स यू विंग्स अभियान, जिसमें झूठे फ़ंक्शनल फायदे दिखाए गए थे, उस पर ग़लत प्रस्तुतीकरण के लिए जुर्माना लगाया गया था।
- उपयोगितावाद के खिलाफ: भ्रामक विज्ञापन पर्यावरण को नुकसान पहुंचा सकते हैं, जिससे समाज को लंबे समय में हानि हो सकती है।
- उदाहरण के लिए- वोक्सवैगन के "क्लीन डीजल" अभियान का ग्रीनवाशिंग मामला, जिसमें किसी वाहन को पर्यावरण के अनुकूल बताकर उसका गलत विज्ञापन किया गया था।
- कांट के निरपवाद कर्तव्यादेश (Categorical imperative) का उल्लंघन: भ्रामक विज्ञापन मनुष्यों को केवल मुनाफ़ा कमाने के साधन के रूप में देखते हैं।
- हानिकारक सामाजिक पूर्वाग्रहों को बढ़ावा देना: जैसे फेयर एंड लवली का विज्ञापन, जिसमें गोरे रंग को सुंदरता से जोड़ दिया गया। इससे नस्लीय पूर्वाग्रहों को बढ़ावा मिलता है।
- स्वास्थ्य और सुरक्षा का खतरा: उदाहरण के लिए- जॉनसन बेबी पाउडर का विज्ञापन तब भी किया गया जब इसके संभावित स्वास्थ्य जोखिम सामने आए थे।
- जे. एस. मिल का ‘हानि सिद्धांत’: व्यक्तिगत अभिव्यक्ति और व्यापार की स्वतंत्रता तब तक स्वीकार्य है, जब तक उससे दूसरों को कोई हानि न पहुंचे।
भ्रामक विज्ञापनों से निपटने के लिए कानूनी ढांचे
|