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भारत को व्यापक राष्ट्रीय अंतरिक्ष कानून की तत्काल आवश्यकता है | Current Affairs | Vision IAS
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भारत को व्यापक राष्ट्रीय अंतरिक्ष कानून की तत्काल आवश्यकता है

Posted 22 Aug 2025

1 min read

अंतर्राष्ट्रीय प्रतिबद्धताओं को लागू करने और अपने तेजी से बढ़ते अंतरिक्ष क्षेत्रक के लिए स्थिर, भरोसेमंद एवं कानूनी रूप से स्पष्ट परिवेश बनाने के लिए भारत को व्यापक घरेलू कानूनों की जरूरत है।

  • उल्लेखनीय है कि भारत के अंतरिक्ष क्षेत्रक में अब निजी कंपनियां भी शामिल होने लगी हैं।

अंतरिक्ष क्षेत्रक में भारत की महत्वाकांक्षाएं और हालिया उपलब्धियां

  • तीव्र प्रगति: भारत ने अंतरिक्ष अनुसंधान और प्रौद्योगिकी में अभूतपूर्व प्रगति की है तथा स्वयं को अमेरिका और रूस जैसे विकसित देशों के बराबर खड़ा किया है।
    • प्रमुख उपलब्धियों में कम खर्च वाला मंगलयान मिशन, चंद्रयान-3 की चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव के पास सफल सॉफ्ट-लैंडिंग आदि शामिल हैं। 
  • भविष्य के मिशन: गगनयान मिशन, भारतीय अंतरिक्ष स्टेशन आदि।

भारत का मौजूदा विनियामक ढांचा: व्यवस्थित और क्रमिक दृष्टिकोण

  • अंतरिक्ष उद्योग के लिए मानकों की सूची (2023) अभियानों की सुरक्षा सुनिश्चित करती है।
  • भारतीय अंतरिक्ष नीति (2023) गैर-सरकारी संस्थाओं के लिए प्रोत्साहित की जाने वाली गतिविधियों का विवरण प्रदान करती है।
  • IN-SPACe ने 2024 में भारतीय अंतरिक्ष नीति (ISP), 2023 को लागू करने के लिए मानदंड, दिशा-निर्देश और प्रक्रियाएं (NGP) जारी की थी। इसका उद्देश्य कुछ जमीनी गतिविधियों का समाधान करना और उपग्रहों को कक्षा में स्थापित करना था।

राष्ट्रीय अंतरिक्ष कानून की आवश्यकता क्यों है?

  • अंतर्राष्ट्रीय प्रतिबद्धताओं को लागू करना: भारत ने बाह्य अंतरिक्ष संधि (1967) जैसी प्रमुख अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष संधियों पर हस्ताक्षर किए हैं, लेकिन ये समझौते अपने आप लागू नहीं होते। इन्हें व्यावहारिक रूप से लागू करने के लिए घरेलू कानूनों की जरूरत होती है।
  • कानूनी स्पष्टता और पूर्वानुमेयता: नीतियां मार्गदर्शन और प्रेरणा दे सकती हैं, लेकिन केवल वैधानिक कानून ही अनुपालन को अनिवार्य बना सकते हैं तथा कानूनी स्पष्टता प्रदान कर सकते हैं।
  • परिचालन संबंधी चुनौतियां: विनियामकीय बदलाव अंतरिक्ष उद्योग के समक्ष परिचालन संबंधी गंभीर चुनौतियां पेश करते हैं। इससे बेवजह देरी होती है और अलग-अलग मंत्रालयों से अनुमति लेने के कारण अनावश्यक भ्रम की स्थिति निर्मित होती है।
  • उद्योग का दृष्टिकोण: अंतरिक्ष संबंधी तकनीक के दोहरे-उपयोग (dual-use) की प्रकृति के कारण विशेष प्रकार की जटिलताएं निर्मित होती हैं। जैसे – देरी होना; बिना अधिक सरकारी नियंत्रण के बौद्धिक संपदा अधिकार (IPRs) सुरक्षित करने की ज़रूरत; हितों के टकराव से बचने के लिए स्वतंत्र अपीलीय निकाय की आवश्यकता आदि।

निष्कर्ष

यदि एक व्यापक राष्ट्रीय अंतरिक्ष कानून बनाया जाए और IN-SPACe जैसी विनियामक संस्थाओं को कानूनी अधिकार दिए जाएं, तो इससे सरकार व निजी क्षेत्र दोनों को जरूरी कानूनी स्पष्टता, पूर्वानुमेयता तथा परिचालन में निश्चितता मिलेगी। इससे नवाचार को बढ़ावा मिलेगा, निवेश आकर्षित होगा और बाह्य अंतरिक्ष में भारत की जिम्मेदारीपूर्ण भागीदारी सुनिश्चित होगी।

  • Tags :
  • National Space Legislation
  • Outer Space Treaty (1967)
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