इस अधिनियम का उद्देश्य पत्नी या महिला लिव-इन पार्टनर को पति या पुरुष लिव-इन पार्टनर या उसके रिश्तेदारों द्वारा की जाने वाली हिंसा से सुरक्षा प्रदान करना है।
- राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) की "भारत में अपराध रिपोर्ट, 2022" के अनुसार, 2022 में महिलाओं के खिलाफ अपराधों के लगभग 4.45 लाख मामले दर्ज किए गए थे। इनमें से अधिकांश मामले 'पति या उसके रिश्तेदारों द्वारा क्रूरता' से जुड़े थे।
अधिनियम के प्रमुख पहलुओं पर एक नजर
- घरेलू हिंसा की परिभाषा: इसमें वास्तविक उत्पीड़न या उत्पीड़न की धमकी शामिल है, चाहे वह शारीरिक, यौन, मौखिक, भावनात्मक, या आर्थिक हो। इनमें दहेज की मांग के माध्यम से किया उत्पीड़न भी शामिल है।
- संस्थागत तंत्र: इसके तहत राज्य सरकार द्वारा संरक्षण अधिकारी नियुक्त करना, सेवा प्रदाताओं को पंजीकृत करना तथा आश्रय गृहों एवं चिकित्सा सुविधाओं को अधिसूचित करना शामिल हैं।
- संरक्षण अधिकारी मजिस्ट्रेट को घरेलू हिंसा की घटना की रिपोर्ट देते हैं, पीड़ित महिला को कानूनी सहायता सुनिश्चित करते हैं, और एक सुरक्षित आश्रय गृह उपलब्ध कराते हैं।
- सेवा प्रदाता पीड़ित महिला को कानूनी सहायता, चिकित्सा, वित्तीय या अन्य सहायता प्रदान करते हैं।
- राहत: पीड़ित महिला विभिन्न प्रकार की राहतों की मांग कर सकती है, जैसे सुरक्षा आदेश, निवास आदेश, अभिरक्षा आदेश, मौद्रिक राहत, आश्रय, और चिकित्सा सुविधाएं।
- निवास का अधिकार: यह अधिनियम घरेलू संबंध में रहने वाली प्रत्येक महिला को साझे घर में रहने का अधिकार प्रदान करता है।
घरेलू हिंसा से संरक्षण अधिनियम से संबंधित चिंताएं
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