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कारागार सुधार (Prison Reforms)

12 Nov 2025
1 min

In Summary

एनसीआरबी की 2023 की रिपोर्ट में भारत की जेलों से जुड़ी समस्याओं पर प्रकाश डाला गया है, जिनमें अत्यधिक भीड़भाड़, पुराने कानून, तथा मॉडल अधिनियम, खुली जेलें, प्रौद्योगिकी का उपयोग और मानवीय उपचार एवं पुनर्वास के लिए न्यायिक सहायता जैसे सुधार शामिल हैं।

In Summary

सुर्ख़ियों में क्यों? 

हाल ही में, राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) ने 'भारतीय कारागार सांख्यिकी (PSI) 2023' रिपोर्ट जारी की है। 

भारत में कारागारों या जेलों का प्रशासन 

  • कारागार एवं उनमें निरुद्ध व्यक्तियों से संबंधित विषय को संविधान की अनुसूची VII के अंतर्गत 'राज्य सूची' की प्रविष्टि 4 में शामिल किया गया है। इसलिए, कारागारों और कैदियों का प्रशासन एवं प्रबंधन संबंधित राज्य सरकारों/ संघ राज्यक्षेत्रों के प्रशासन की जिम्मेदारी होती है। 
    • केंद्रीय गृह मंत्रालय द्वारा भी राज्यों एवं संघ राज्यक्षेत्रों को कारागार प्रशासन से संबंधित विभिन्न मुद्दों पर नियमित मार्गदर्शन और सहायता प्रदान की जाती है। 
  • इससे पहले, कारागारों का प्रशासन कारागार अधिनियम, 1894 और संबंधित राज्य सरकारों की कारागार नियमावली के माध्यम से किया जाता था। 
  • गृह मंत्रालय ने आदर्श कारागार एवं सुधार सेवा अधिनियम, 2023 तैयार किया है। यह अधिनियम ब्रिटिश कालीन कानूनों में सुधार हेतु राज्यों के लिए एक "मार्गदर्शक दस्तावेज" के रूप में कार्य कर सकता है। 
  • आदर्श कारागार अधिनियम, 2023 के अंतर्गत बंदी अधिनियम, 1900 और बंदी अंतरण अधिनियम, 1950 के प्रासंगिक प्रावधानों को शामिल किया गया है। 

कारागारों से संबंधित न्यायिक निर्णय

  • सुहास चकमा बनाम भारत संघ एवं अन्य वाद (2024): सुप्रीम कोर्ट ने माना कि खुली जेलों (Open Prisons) की स्थापना जेलों में कैदियों की अधिक संख्या की समस्या का एक समाधान है। साथ ही, इससे कैदियों के पुनर्वास को भी प्रोत्साहन मिलता है। 
    • खुली जेल एक ऐसी दंडात्मक व्यवस्था है, जहां कैदियों को न्यूनतम निगरानी और सुरक्षा परिधि के साथ सजा काटने की अनुमति होती है। साथ ही, यहां कैदियों को कारागार कक्षों में बंद नहीं किया जाता है। यह मॉडल राजस्थान में अपनाया गया है। 
  • हुसैनारा खातून बनाम बिहार राज्य वाद (1979): सुप्रीम कोर्ट ने निर्णय दिया कि त्वरित सुनवाई का अधिकार अनुच्छेद 21 के तहत एक मूल अधिकार है। इस निर्णय के परिणामस्वरूप हजारों विचाराधीन कैदियों को रिहा किया गया। 

कारागार या जेल सुधारों के लिए किए गए उपाय 

  • गृह मंत्रालय ने आदर्श कारागार नियमावली, 2016 के नियमों और आदर्श कारागार एवं सुधार सेवा अधिनियम, 2023 में संशोधन किया है। इस संशोधन का उद्देश्य देश भर की जेलों में जाति-आधारित भेदभाव को दूर करना है। 
    • ये संशोधन सुकन्या शांता बनाम भारत संघ और अन्य वाद में, कैदियों के बीच जाति-आधारित भेदभाव के उन्मूलन पर सुप्रीम कोर्ट के आदेश के अनुपालन में किए गए हैं। 
    • आदर्श कारागार नियमावली, 2016 का उद्देश्य देश भर में कारागारों के प्रशासन और कैदियों के प्रबंधन से संबंधित कानूनों, नियमों और विनियमों में बुनियादी एकरूपता लाना है। 
  • गरीब कैदियों को सहायता योजना: इस योजना के तहत राज्यों/ संघ राज्यक्षेत्रों के लिए वित्तीय सहायता का प्रावधान किया गया है। इस वित्तीय सहायता का उद्देश्य उन गरीब कैदियों को राहत प्रदान करना है, जो आर्थिक तंगी की वजह से जुर्माना न चुका पाने के कारण जमानत प्राप्त करने या जेल से रिहाई पाने में असमर्थ हैं। 
  • ई-कारागार परियोजना: यह राष्ट्रीय सूचना विज्ञान केंद्र द्वारा विकसित कैदी सूचना प्रबंधन प्रणाली का पूरक है। यह कैदियों से संबंधित सूचनाओं की रिकॉर्डिंग एवं प्रबंधन के लिए केंद्रीकृत दृष्टिकोण प्रदान करती है। साथ ही, यह विभिन्न प्रकार की रिपोर्ट तैयार करने में सहायता प्रदान करती है। 
  • कारागार आधुनिकीकरण परियोजना: इसका उद्देश्य कारागारों की सुरक्षा से संबंधित अवसंरचनाओं में विद्यमान कमियों को दूर करना तथा आधुनिक तकनीकों के अनुरूप कारागारों को नए सुरक्षा उपकरण उपलब्ध कराना है। 
  • सुप्रीम कोर्ट की फास्टर (FASTER) (FASTER-फास्ट एंड सिक्योर्ड ट्रांसमिशन ऑफ इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड्स/FASTER-Fast and Secured Transmission of Electronic Records) प्रणाली: इसका उद्देश्य न्यायालयों से कारागार प्राधिकारियों तक जमानत आदेशों के संचार में होने वाली देरी को दूर करना है। 

आगे की राह/ सिफारिशें

  • कारावास और हिरासत के संबंध में सुप्रीम कोर्ट के तीन सिद्धांतों का अनुपालन किया जाना चाहिए:
    • पहला, कारागार में बंद कोई व्यक्ति भी मानव ही होता है, अर्थात बंदी बनने पर वह अपनी मानवीय पहचान नहीं खोता है। 
    • दूसरा, कारागार में बंद व्यक्ति को कारावास की सीमाओं के भीतर सभी मानवाधिकार प्राप्त हैं। 
    • तीसरा, कारावास की प्रक्रिया में निहित कष्टों को बढ़ाने का कोई औचित्य नहीं है। 
  • गृह कार्य संबंधी संसदीय समिति की सिफारिशें: 
    • जमानत पर रिहा कैदियों की निगरानी हेतु ट्रेकेबल ब्रेसलेट जैसी तकनीक का उपयोग किया जाना चाहिए। 
    • औपनिवेशिक कालीन कारागारों का जीर्णोद्धार किया जाना चाहिए, ताकि उनकी विरासत को संरक्षित किया जा सके और पर्यटन को बढ़ावा देकर राजस्व अर्जित किया जा सके। 
    • राज्य सरकारें कैदियों के लिए कल्याणकारी कार्यों को बढ़ावा देने हेतु एक कारागार विकास कोष का गठन कर सकती हैं।
  • न्यायमूर्ति ए.एन. मुल्ला समिति की सिफारिशें:
    • भारतीय कारागार एवं सुधार सेवा नामक एक अखिल भारतीय सेवा की स्थापना की जानी चाहिए। 
    • जेल से रिहा होने के बाद की देखभाल (After-care), पुनर्वास और परिवीक्षा को कारागार सेवा का अभिन्न अंग बनाया जाना चाहिए। 
    • प्रेस और आम जनता को समय-समय पर कारागारों एवं संबद्ध सुधार संस्थानों में जाने की अनुमति दी जानी चाहिए। 
    • विचाराधीन कैदियों की संख्या न्यूनतम की जानी चाहिए और उन्हें दोषसिद्ध कैदियों से अलग रखा जाना चाहिए। 
  • न्यायमूर्ति अमिताव रॉय समिति की सिफारिशें:
    • छोटे अपराधों और 5 वर्षों से अधिक समय से लंबित मामलों को निपटाने के लिए विशेष फास्ट-ट्रैक कोर्ट की स्थापना की जानी चाहिए।  
    • न्यायालयों में वरिष्ठ नागरिकों और बीमार कैदियों की पेशी के लिए वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग का उपयोग किया जाना चाहिए। 
    • महिला कैदियों के लिए विशेष महिला कारागार और चिकित्सा वार्ड की स्थापना की जानी चाहिए। साथ ही, ट्रांसजेंडर कैदियों के लिए कल्याणकारी योजनाएं शुरू की जानी चाहिए। 
    • कारागार में हिंसा को कम करने के लिए कारागारों के भीतर विचाराधीन कैदियों, दोषसिद्ध कैदियों और पहली बार अपराध करने वाले कैदियों को अनिवार्य रूप से अलग-अलग रखा जाना चाहिए। 

निष्कर्ष 

आदर्श कारागार एवं सुधार सेवा अधिनियम, 2023 और हालिया न्यायिक निर्णय इस बढ़ती हुई राष्ट्रीय चेतना को दर्शाते हैं कि न्याय का उद्देश्य केवल दंड तक सीमित नहीं होना चाहिए। इसमें गरिमा, सुधार और पुनर्वास का समावेश भी आवश्यक है। प्रौद्योगिकी का उपयोग करके, मानव संसाधनों को सुदृढ़ करके और समानुभूति-आधारित सुधारात्मक प्रथाओं को बढ़ावा देकर, कारागारों को वास्तविक सुधारात्मक संस्थानों के रूप में विकसित किया जा सकता है। ये उपाय कैदियों को समाज में पुनः रचनात्मक रूप से घुलने-मिलने के लिए तैयार कर सकते हैं। 

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