रिपोर्ट में उल्लेख किया गया है कि जल चक्र अब और अधिक अस्थिर एवं चरम होता जा रहा है, जो कभी बाढ़ तो कभी सूखे के रूप में सामने आ रहा है।
रिपोर्ट के मुख्य बिंदुओं पर एक नजर:
- ग्लेशियर का पिघलना: लगातार तीसरे साल, दुनिया भर के सभी ग्लेशियर क्षेत्रों में ग्लेशियरों के पिघलने के कारण नुकसान दर्ज किया गया है।
- कई छोटे-छोटे ग्लेशियर क्षेत्र पहले ही "पीक वाटर पॉइंट" तक पहुंच चुके हैं या पहुंचने की कगार हैं। यह वह स्थिति है, जब किसी ग्लेशियर का पिघलना अपने अधिकतम वार्षिक अपवाह तक पहुंच जाता है, जिसके बाद ग्लेशियर के सिकुड़ने के कारण यह अपवाह कम हो जाता है।
- अनियमित जल चक्र: दुनिया के दो-तिहाई नदी जलग्रहण क्षेत्रों में या तो बहुत ज्यादा पानी है या बहुत कम पानी है।
- यह बढ़ती हुई चरम घटनाओं का कारण बन रहा है, जैसे - अफ्रीका के उष्णकटिबंधीय क्षेत्र में असामान्य रूप से भारी वर्षा, यूरोप और एशिया में बड़े पैमाने पर बाढ़, अमेजन बेसिन में सूखा, आदि।
जल चक्र
- जल चक्र पृथ्वी और वायुमंडल के भीतर जल की निरंतर गति का वर्णन करता है, जिसमें पूल एवं फ्लक्स शामिल होते हैं।
- पूल उन विभिन्न रूपों और स्थानों को संदर्भित करता है, जहां पानी जमा होता है, जैसे झील, ग्लेशियर, वायुमंडल, आदि।
- फ्लक्स जल के पूल्स के बीच जाने के तरीकों को कहते हैं, जिसमें वाष्पीकरण या संघनन जैसे अवस्था परिवर्तन शामिल हैं।
- जलवायु परिवर्तन का प्रभाव: वैश्विक जलवायु का गर्म होना जल चक्र को तेज करता है, क्योंकि यह वाष्पीकरण की दर को बढ़ाता है।
- इससे वायुमंडल में जल का जमाव अधिक होता है, जिससे सूखा, भारी वर्षा और तूफान जैसी चरम मौसम की घटनाएं बढ़ जाती हैं।
- यह ग्लेशियरों के पिघलने और समुद्री जल के विस्तार के कारण समुद्र के जलस्तर को बढ़ा रहा है, जिससे तटीय क्षेत्रों में बाढ़ आ रही है।
