इस समझौते का उद्देश्य दोनों देशों के बीच रक्षा सहयोग के विभिन्न पहलुओं को विकसित करना तथा किसी भी आक्रमण के विरुद्ध संयुक्त प्रतिरोध को मजबूत करना है।
- इसमें कहा गया है कि "दोनों में से किसी भी देश के खिलाफ किसी भी आक्रमण को दोनों के विरुद्ध आक्रमण माना जाएगा।”
इस समझौते के प्रभाव
- क्षेत्रीय सुरक्षा: सऊदी अरब के लिए यह ईरान, यमन के हूती विद्रोहियों और इजरायल से संबंधित खतरों के खिलाफ सुरक्षा को मजबूत करता है।
- परमाणु युद्ध: समझौते के तहत पाकिस्तान द्वारा सऊदी अरब को अपनी परमाणु सुरक्षा देना भी शामिल है, परमाणु युद्ध की चिंताओं को और बढ़ाता है, जबकि इस क्षेत्र में पहले से ही तनावपूर्ण माहौल बना हुआ है।
- सत्ता के समीकरण में बदलाव: यह क्षेत्र में सुरक्षा की गारंटी देने वाले संयुक्त राज्य अमेरिका की पारंपरिक भूमिका को कम करता है, क्योंकि अमेरिका का सहयोगी इजरायल गाजा और अन्य क्षेत्रीय पड़ोसी देशों पर हमले कर रहा है।
- इससे क्षेत्र में उत्पन्न रणनीतिक शून्य का फायदा चीन अपने प्रभाव को बढ़ाने के लिए कर सकता है।
- भारत के लिए निहितार्थ: सीमा-पार आतंकवाद के खिलाफ भारत की जवाबी कार्रवाई के आलोक में पाकिस्तान इस समझौते को भविष्य में भारत के साथ सैन्य टकराव की स्थिति में सामरिक प्रतिरोध के रूप में इस्तेमाल कर सकता है।
भारत-सऊदी अरब संबंध
- दोनों देशों के मध्य रणनीतिक साझेदारी को 2010 में रियाद घोषणा के माध्यम से औपचारिक रूप दिया गया था।
- आर्थिक: भारत, सऊदी अरब का दूसरा सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार है, जबकि सऊदी अरब भारत का पांचवां सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार है।
- 2023 में द्विपक्षीय व्यापार 42.98 बिलियन था और भारत निवल आयातक बना रहा।
- 2024 में भारत में आने वाले कुल विप्रेषण (रेमिटेंस) में लगभग 6.7% सऊदी अरब से आया था।
- ऊर्जा साझेदारी: सऊदी अरब भारत का तीसरा सबसे बड़ा कच्चा तेल आपूर्तिकर्ता है।