भारत में शहरी क्षेत्र की परिभाषा: गवर्नेंस संबंधी कमियों का विश्लेषण और सुधार की जरूरत | Current Affairs | Vision IAS
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भारत की शहरी परिभाषा पुराने पुरुष कार्यबल मानदंडों पर निर्भर करती है, जिससे गलत वर्गीकरण की समस्या उत्पन्न होती है; सटीक शहरी शासन और नियोजन के लिए लिंग-तटस्थ मानकों और नई विधियों के साथ सुधार आवश्यक हैं।

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भारत के रजिस्ट्रार जनरल और जनगणना आयुक्त ने यह प्रस्ताव किया है कि 2027 की जनगणना में शहरी क्षेत्र की परिभाषा वही रखी जानी चाहिए, जो 2011 की जनगणना में लागू थी।

  • इसका उद्देश्य पिछली जनगणनाओं से तुलनात्मक अध्ययन करना और देश में शहरीकरण की प्रवृत्तियों का विश्लेषण करने का आधार उपलब्ध कराना है।

भारत में "शहरी क्षेत्र" की आधिकारिक परिभाषा

  • भारत की जनगणना किसी बस्ती को निम्नलिखित दो तरीकों से "शहरी" के रूप में वर्गीकृत करती है:-
    • वैधानिक कस्बे: वे सभी प्रशासनिक इकाइयां, जिन्हें कानून द्वारा शहरी के रूप में परिभाषित किया गया है, जैसे- नगर निगम, नगर पालिका, छावनी परिषद (Cantonment Board), अधिसूचित नगर क्षेत्र समिति (Notified Town Area Committee), टाउन पंचायत, नगर पालिका आदि।
      • जिन वैधानिक कस्बों की जनसंख्या 1,00,000 या उससे अधिक होती है उन्हें "शहर" (City) की श्रेणी में रखा जाता है।
    • जनगणना कस्बे (Census Town):  ऐसे कस्बे जो वैधानिक कस्बे नहीं है, लेकिन निम्नलिखित तीन विशिष्ट जनसांख्यिकीय और आर्थिक मानदंडों को एक साथ पूरा करते हैं:-
      • न्यूनतम जनसंख्या 5,000 हो।
      • जनसंख्या घनत्व कम-से-कम 400 व्यक्ति प्रति वर्ग किलोमीटर हो।
      • मुख्य कामकाजी पुरुष आबादी में से कम-से-कम 75% गैर-कृषि कार्यों में संलग्न हों।

वर्तमान परिभाषा के उपयोग से जुड़े मुद्दे

  • पुरुष कार्यबल पर ज्यादा ध्यान: जनगणना कस्बे की परिभाषा केवल “मुख्य कामकाजी पुरुष आबादी” पर आधारित है, इसमें महिलाओं के योगदान को नजरअंदाज किया गया है।
  • पुराना मानक: यह मानदंड लगभग 50 साल से अपरिवर्तित है और आधुनिक आर्थिक एवं सामाजिक वास्तविकताओं को नहीं दर्शाता है।
  • शहरी दर्जा न मिलना: बहुत-सी बस्तियां, जिनका कामकाज और चरित्र शहरी है, उन्हें आधिकारिक रूप से ग्रामीण ही माना जाता है क्योंकि शहरी क्षेत्र के दर्जा में महिला कार्यबल को ध्यान में नहीं रखा जाता।
  • प्रशासन में असंगति: शहरी विशेषताओं वाले जनगणना कस्बे अब भी ग्रामीण पंचायतों द्वारा प्रशासित होते हैं। इनके पास शहरी स्थानीय निकायों (ULBs) जैसी योजना बनाने की क्षमता, विशेष वित्तीय संसाधन और प्रशासनिक ढांचा नहीं होता।
  • अवसंरचना की कमी: अपशिष्ट प्रबंधन, स्वच्छता, सड़कें और आवास जैसी जरूरी शहरी सुविधाओं का उचित नियोजन एवं कार्यान्वयन ग्रामीण शासन तंत्र के तहत संभव नहीं हो पाता।

कार्यबल संबंधी मानदंड में महिला कार्यबल को शामिल करने और संयुक्त राष्ट्र सांख्यिकीय आयोग द्वारा समर्थित डिग्री ऑफ अर्बनाइज़ेशन (DEGURBA) पद्धति का उपयोग करने से उपर्युक्त मुद्दों का समाधान किया जा सकता है। 

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