1 अक्टूबर से ब्रांडेड या पेटेंट वाली दवाओं के अमेरिका में आयात पर 100% टैरिफ लगाया जाएगा। हालांकि, यदि कंपनी संयुक्त राज्य अमेरिका में अपनी उत्पादन इकाई स्थापित कर लेती है या कर रही है, तो यह टैरिफ नहीं लगाया जाएगा।
- भारत, जिसे अक्सर "दुनिया की फार्मेसी" कहा जाता है, विश्व के सबसे बड़े दवा निर्यातक देशों में से एक है। इसकी वैश्विक दवा बाजार में हिस्सेदारी लगभग 5.71% है।
भारत के दवा निर्यात पर टैरिफ का प्रभाव
- जेनेरिक दवाओं को बाहर रखा गया है: भारत सबसे अधिक दवाओं का निर्यात संयुक्त राज्य अमेरिका को ही करता है। वित्त वर्ष 2025 में लगभग 10 बिलियन डॉलर मूल्य का निर्यात किया गया था, जो दवाओं के कुल निर्यात का लगभग 35% हिस्सा है।
- हालांकि, भारत का निर्यात मुख्यतः कम लागत वाली जेनेरिक दवाओं और सक्रिय औषध सामग्री (APIs) का है, जो टैरिफ के दायरे से बाहर हैं।
- टैरिफ की परिभाषा में अस्पष्टता: जेनेरिक दवाओं पर भी निर्माता का लेबल होता है। अगर अमेरिकी अधिकारी “ब्रांडेड फार्मास्युटिकल दवा” की परिभाषा को बहुत व्यापक या असंगत रूप से लागू करते हैं, तो भारतीय शिपमेंट में देरी, अतिरिक्त जांच और अधिक लागत का खतरा बढ़ सकता है।
- दवा निर्माण पर प्रभाव: अमेरिका के बाहर भारत में यूएस फ़ूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन (USFDA) द्वारा अनुमोदित विनिर्माण संयंत्रों की संख्या सबसे अधिक है।
- यदि इनमें से कुछ कंपनियां अमेरिका चली जाती हैं, तो भारत के दवा उत्पादन पर नकारात्मक असर पड़ सकता है।
- अल्पकालिक लाभ: टैरिफ की वजह से ब्रांडेड दवाएं महंगी हो जाएंगी। इससे सस्ती जेनेरिक दवाओं की मांग बढ़ सकती है और भारतीय कंपनियों को लाभ हो सकता है।
भारत का फार्मास्युटिकल क्षेत्रक
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