भारत का विनिर्माण क्षेत्रक | Current Affairs | Vision IAS
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कम उत्पादकता, अनौपचारिक रोजगार, सीमित स्वचालन और उपभोग-आधारित विकास पर निर्भरता के कारण भारत की विनिर्माण वृद्धि अपने समकक्षों से पिछड़ रही है; रणनीतिक प्रौद्योगिकी और नीतिगत सुधारों की आवश्यकता है।

In Summary

भारत की विकास गाथा चीन और दक्षिण कोरिया जैसे देशों से बिल्कुल अलग है, क्योंकि भारत का विनिर्माण क्षेत्रक संरचनात्मक परिवर्तन के एक मजबूत चालक के रूप में उभरने में विफल रहा है।

  • भारत के विनिर्माण क्षेत्रक में ठहराव को 'डच डिजीज' (Dutch disease) के नजरिए से भी समझा जा सकता है, जहां सार्वजनिक क्षेत्रक में बढ़ते वेतन ने औद्योगिक प्रतिस्पर्धा को प्रभावित किया है।
    • डच डिजीज: यह एक आर्थिक स्थिति है, जहां प्राकृतिक संसाधनों में उछाल के कारण विनिर्माण और अन्य व्यापार योग्य क्षेत्रक कमजोर हो जाते हैं। इससे "वि-औद्योगिकीकरण" (Deindustrialization) होने लगता है।

भारत का विनिर्माण क्षेत्रक

  • जीडीपी में योगदान: भारत की जीडीपी में विनिर्माण का योगदान लगभग 17% है, जबकि चीन (25-29%), दक्षिण कोरिया (27%) और वियतनाम (24%) में यह काफी अधिक है।
  • रोजगार: भारत में कार्यबल का केवल 11.4% विनिर्माण क्षेत्रक में संलग्न है, जबकि कृषि में 45% और सेवा क्षेत्रक में लगभग 29% लोग कार्यरत हैं।

 

विनिर्माण क्षेत्रक में ठहराव के लिए उत्तरदायी अन्य कारक

  • अनौपचारिकता और कम उत्पादकता: रोजगार का एक बड़ा हिस्सा अनौपचारिक है। इससे प्रशिक्षण, तकनीक के प्रसार, गुणवत्ता सुधार तथा स्थिर औद्योगिक संबंधों में बाधा आती है।
  • प्रतिस्पर्धी बनने की क्षमता का अभाव: औद्योगिक परिदृश्य में सूक्ष्म उद्यमों की अधिकता है। ऐसे उद्यमों में वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्धी बनने के लिए आवश्यक आर्थिक व तकनीकी क्षमता का अभाव होता है। 
  • नवाचार और उत्पादकता में कमी: अनुसंधान और विकास (R&D) पर भारत का कुल व्यय जीडीपी का मात्र 0.6-0.7% है, जो चीन और संयुक्त राज्य अमेरिका जैसे देशों की तुलना में बहुत कम है।
  • विकास के भिन्न मॉडल: भारत ने मुख्य रूप से उपभोग-आधारित विकास मॉडल अपनाया है, जबकि चीन ने निवेश और निर्यात-आधारित विकास मॉडल का पालन किया है।
  • अन्य कारक: सीमित स्वचालन और तकनीक को अपनाने में कमी, उच्च लॉजिस्टिक्स लागत आदि।

आगे की राह

  • रणनीतिक तकनीक का उपयोग: भारत को "अग्रणी प्रौद्योगिकियों" जैसे कि कृत्रिम बुद्धिमत्ता/ मशीन लर्निंग (AI/ML), उन्नत सामग्री और रोबोटिक्स को बड़े पैमाने पर अपनाने को प्राथमिकता देनी चाहिए।
  • R&D निवेश में वृद्धि: नीति आयोग के अनुसार निजी क्षेत्रक को प्रोत्साहित किया जाना चाहिए तथा केंद्रीय अनुसंधान केंद्र और 'प्रौद्योगिकी हस्तांतरण कार्यालयों' (TTOs) को विकसित किया जाना चाहिए।
  • कार्यबल का कौशल विकास: तकनीकी शिक्षा पाठ्यक्रम (ITI, पॉलिटेक्निक आदि) को आधुनिक बनाया जाना चाहिए।
  • औद्योगिक क्लस्टर का विकास: "प्लग एंड प्ले" अग्रणी तकनीक से सुसज्जित औद्योगिक पार्क विकसित करने चाहिए, जो साझा अनुसंधान, 5G नेटवर्क और परीक्षण प्रयोगशालाएं प्रदान करें।
  • संरचनात्मक और विनियामक बाधाओं को दूर करना: नई फर्मों के लिए नौकरशाही बाधाओं को समाप्त करना, कच्चे माल पर आयात शुल्क कम करना और औद्योगिक उद्देश्यों के लिए भूमि की उपलब्धता को सुव्यवस्थित करना चाहिए।
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