नीति आयोग ने कार्यस्थल पर लैंगिक समानता हेतु अच्छी कार्य प्रणालियों पर रिपोर्ट जारी की | Current Affairs | Vision IAS
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In Summary

  • नीति आयोग और सीआईआई की 'फ्रॉम इंटेंट टू इम्पैक्ट' रिपोर्ट में भारतीय कार्यस्थलों में लैंगिक समानता के लिए एक रोडमैप की रूपरेखा प्रस्तुत की गई है, जिसका लक्ष्य 2047 तक 30 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था का लक्ष्य हासिल करना है।
  • बाधाओं में अचेतन पूर्वाग्रह, मातृत्व के कारण होने वाला नुकसान, नेटवर्क की कमी और विश्व स्तर पर महिलाओं द्वारा किया जाने वाला 76% अवैतनिक देखभाल कार्य शामिल हैं।
  • आगे बढ़ने का रास्ता लिंग-तटस्थ भर्ती, समावेशी पितृत्व अवकाश, लचीला कार्य, नेतृत्व कार्यक्रम और समावेशी संस्कृति का निर्माण करना है।

In Summary

यह रिपोर्ट “फ्रॉम इंटेंट टू इम्पैक्ट” संकलन शीर्षक से जारी की गई है। यह संकलन नीति आयोग और CII की संयुक्त पहल है। यह संकलन भारत में कार्यस्थलों पर लैंगिक समानता सुनिश्चित करने के लिए एक रणनीतिक रोडमैप प्रदान करता है। इसका उद्देश्य निम्नलिखित लक्ष्यों को प्राप्त करना है:

  • भारत को वर्ष 2047 तक 30 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था बनाना: इसके लिए लगभग 14.5 करोड़ महिलाओं को कार्यबल में शामिल करना आवश्यक है;
  • सतत विकास लक्ष्य (SDG)-5: लैंगिक समानता सुनिश्चित करना; और
  • SDG-8: सम्मानजनक कार्य और आर्थिक संवृद्धि सुनिश्चित करना। 

लैंगिक समानता सुनिश्चित करने में बाधा बनने वाले संरचनात्मक एवं सामाजिक अवरोध

  • कार्यबल में शामिल होने से संबंधित बाधाएं: भर्ती के दौरान पूर्वाग्रह, कुछ नौकरियों को केवल पुरुषों का कार्य मानने की रूढ़िवादी सोच, आदि। 
    • उदाहरण के लिए: STEM (विज्ञान, प्रौद्योगिकी, इंजीनियरिंग और गणित) क्षेत्रक में भारत में कुल स्नातकों में 43% स्नातक महिलाएं हैं। हालांकि, इस क्षेत्रक के कार्यबल में उनकी भागीदारी केवल 27% है
  • नौकरी जारी रखने से जुड़ी बाधाएं: मातृत्व के समय महिलाओं को अक्सर “मातृत्व के कारण दंड (Maternity Penalty)” का सामना करना पड़ता है। लगभग 75% कामकाजी माताओं को मातृत्व कार्य की वजह से अपने करियर में रोजगार छूटने की समस्या झेलनी पड़ती हैं।
  • विकास में बाधाएं: महिलाओं को अनौपचारिक “ओल्ड बॉयज़ क्लब” नेटवर्क से बाहर रखा जाता है। उन्हें व्यवस्थित रूप से नेतृत्व विकास के अवसर कम मिलते हैं। 
  • व्यवस्था से संबंधित समस्याएं: वैश्विक स्तर पर 76% अवैतनिक देखभाल कार्य (Unpaid care work) महिलाएं करती हैं। इससे आर्थिक विकास में उनकी भागीदारी सीमित हो जाती है। 

आगे की राह: लैंगिक समानता सुनिश्चित करने हेतु संपूर्ण जीवन-चक्र दृष्टिकोण

  • रोजगार में महिलाओं के प्रवेश को प्रोत्साहित करना: 
    • भर्ती के क्रम में लैंगिक-भेदभाव मुक्त वाली प्रक्रियाएं अपनानी चाहिए। 
    • ब्लाइंड स्क्रीनिंग पद्धति अपनानी चाहिए, अर्थात भर्ती करते समय नाम, लिंग, उम्र उजागर नहीं करना चाहिए और कौशल को आधार बनाना चाहिए। 
      • उदाहरण के लिए: कैपजेमिनी और यूनिलीवर जैसी कंपनियां नौकरी का विवरण देते समय AI टूल्स का उपयोग कर अलग-अलग क्षेत्रकों की प्रतिभाओं को आकर्षित करती हैं।
    • रोजगार में महिलाओं की भर्ती के लिए विशेष अभियान चलाए जाने चाहिए।
  • महिलाओं को नौकरी जारी रखने के लिये उपाय करना:  समावेशी पितृत्व/मातृत्व अवकाश (पैरेंटल लीव), लचीले कार्य घंटे और बच्चों की देखरेख हेतु प्रावधान जैसे उपाय किए जा सकते हैं।
    • उदाहरण के लिए- नेटफ्लिक्स असीमित पितृत्व/मातृत्व अवकाश नीति का अनुपालन करता है।
  • विकास और प्रगति सुनिश्चित करना: उदाहरण के लिए-PropelHER और SheLeads जैसे कार्यक्रम महिलाओं को समझौता-वार्ता कौशल और रणनीतिक सोच के विकास हेतु प्रशिक्षण देते हैं।
  • समावेशी कार्य-संस्कृति की स्थापना: उदाहरण के लिए- टेक महिंद्रा और जेनपैक्ट जैसी कंपनियां अपने निदेशक मंडलों में महिलाओं की पर्याप्त भागीदारी सुनिश्चित करती हैं। 

केस स्टडी: वैश्विक एवं भारतीय सर्वोत्तम प्रणालियां (बेस्ट प्रैक्टिसेज)

  • समान वेतन एवं विधिक संरक्षण
    • जर्मनी: पारिश्रमिक पारदर्शिता अधिनियम कर्मचारियों को वेतन संबंधी डेटा मांगने का अधिकार देता है।
    • न्यूजीलैंड: समान वेतन संशोधन अधिनियम विभिन्न क्षेत्रकों में वेतन समानता सुनिश्चित करता है।
  • साझा देखभाल एवं मातृत्व/पितृत्व अवकाश:
    • नॉर्वे: पिता के लिए अनिवार्य पितृत्व अवकाश कोटा लागू किया गया है।
    • स्पेन: माता-पिता, दोनों को 16-16 सप्ताह के मातृत्व/पितृत्व अवकाश की सुविधा प्रदान की गई हैं
  • लचीले कार्य-घंटे एवं रोजगार में वापसी कार्यक्रम:
    • यूनाइटेड किंगडम: कर्मचारियों को लचीले कार्य घंटे का विधिक अधिकार प्रदान किया गया है।
    • भारत: टाटा और एक्सेंचर जैसी कंपनियां प्रसव के बाद महिलाओं के लिए रोजगार में वापस आने का कार्यक्रम संचालित करती हैं।
  • संरचनात्मक एवं संस्थागत सहायक तंत्र:
    • डेनमार्क: सब्सिडी युक्त सार्वभौमिक बाल-देखभाल की गारंटी प्रदान की गई है।
    • फ्रांस: कार्यस्थल पर बालकों की देखभाल हेतु सार्वजनिक क्रेच और कर-प्रोत्साहन जैसी सुविधाएं प्रदान की गई हैं।
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सार्वभौमिक बाल-देखभाल

एक ऐसी प्रणाली जहाँ सभी बच्चों को किफायती और उच्च-गुणवत्ता वाली बाल-देखभाल सेवाओं तक पहुँच सुनिश्चित की जाती है, अक्सर सरकार द्वारा सब्सिडी या प्रत्यक्ष प्रावधान के माध्यम से।

पारिश्रमिक पारदर्शिता अधिनियम

एक प्रकार का कानून जो कर्मचारियों को अपने वेतन संबंधी जानकारी मांगने का अधिकार देता है, जिसका उद्देश्य वेतन में लैंगिक असमानता को दूर करना है।

पितृत्व/मातृत्व अवकाश (पैरेंटल लीव)

माता-पिता दोनों को बच्चे के जन्म या गोद लेने के बाद मिलने वाली छुट्टी, जिसका उद्देश्य उन्हें बच्चे की देखभाल के लिए समय देना और काम और परिवार के बीच संतुलन बनाने में मदद करना है।

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