भारत पर अमेरिकी दबाव: बाज़ार पहुंच की माँग
अमेरिका भारत पर दबाव बना रहा है कि वह अमेरिकी जेनेटिकली मोडिफाइड (GM) सोयाबीन और मक्का के लिए अपने बाज़ार खोले। यह माँग अमेरिका के लिए आर्थिक और राजनीतिक रूप से महत्वपूर्ण है।
अमेरिका के लिए आर्थिक दांव
- अमेरिका ने 2024 में 24.5 बिलियन डॉलर मूल्य का कच्चा सोयाबीन और 13.7 बिलियन डॉलर मूल्य का मक्का निर्यात किया था।
- सोयाबीन खली, मक्के से प्राप्त इथेनॉल और सूखे डिस्टिलर अनाजों को शामिल करते हुए कुल निर्यात लगभग 52 बिलियन डॉलर का था।
भारत की दुविधा
भारत एक ऐसी दुविधा का सामना कर रहा है, जो कम आर्थिक लेकिन राजनीतिक अधिक है।
- अमेरिकी सोयाबीन की पैदावार भारत की तुलना में 3.5 गुना अधिक है, जिससे अमेरिकी उत्पादन अधिक लागत-प्रतिस्पर्धी हो जाता है।
- भारत हर साल लगभग 50 लाख टन सोयाबीन तेल का आयात करता है और कच्चे सोयाबीन का आयात तेल निष्कर्षण और खली (मील) उत्पादन के लिए आर्थिक रूप से लाभकारी हो सकता है।
- भारतीय मक्का की पैदावार अमेरिका के करीब है, लेकिन चारे और इथेनॉल जैव ईंधन की आवश्यकता के कारण मक्के की घरेलू मांग बढ़ रही है।
राजनीतिक और तकनीकी चुनौतियाँ
भारत में सोयाबीन और मक्के की खेती बड़े पैमाने पर होती है, जिसमें कई किसान शामिल हैं। इनके हितों को नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता है। नीतिगत मुद्दों से चुनौती और भी जटिल हो जाती है:
- अमेरिकी किसान उन्नत कीट और खरपतवार नियंत्रण के माध्यम से उच्च उपज प्राप्त करने के लिए GM प्रौद्योगिकी का उपयोग करते हैं।
- भारतीय किसानों के पास समान GM प्रौद्योगिकी तक पहुंच का अभाव है। इसके कारण उनकी प्रतिस्पर्धात्मकता कम हो रही है तथा वे कपास जैसी कुछ फसलों के शुद्ध निर्यातक से आयातक बन रहे हैं।
- स्वदेशी की आड़ में प्रौद्योगिकी को अवरुद्ध करने वाले नीतिगत निर्णय प्रतिकूल परिणाम दे सकते हैं।
अमेरिका का दबाव भारत की मौजूदा कृषि नीति के लिए एक अतिरिक्त चुनौती है।