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ग्लेशियरों के पिघलने से ज्वालामुखी विस्फोटों में वृद्धि हो सकती है | Current Affairs | Vision IAS

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ग्लेशियरों के पिघलने से ज्वालामुखी विस्फोटों में वृद्धि हो सकती है

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ज्वालामुखी विस्फोटों पर पिघलते ग्लेशियरों का प्रभाव 

एक हालिया अध्ययन ग्लेशियरों और हिमखंडों के पिघलने और ज्वालामुखी विस्फोटों में वृद्धि के बीच संबंध पर प्रकाश डालता है। अध्ययन से पता चलता है कि यह घटना, विशेष रूप से पश्चिमी अंटार्कटिका में एक बड़ा खतरा पैदा करती है, जहाँ वर्तमान में लगभग 100 ज्वालामुखी मोटी बर्फ के नीचे दबे हुए हैं। बढ़ते वैश्विक तापमान के कारण आने वाले दशकों में इस बर्फ के पिघलने की आशंका है। 

अनुसंधान और निष्कर्ष 

  • उत्तरी अमेरिका, न्यूजीलैंड और रूस जैसे क्षेत्रों में भी ज्वालामुखीय गतिविधि बढ़ सकती है।
  • जलवायु परिवर्तन ज्वालामुखीय गतिविधि को प्रभावित करता है, क्योंकि बर्फ पिघलने पर मैग्मा कक्षों पर दबाव कम हो जाता है, जिससे गैसों और मैग्मा का विस्तार होता है। इससे अंततः विस्फोट होता है।
  • आइसलैंड से प्राप्त ऐतिहासिक साक्ष्यों से पता चलता है कि एक प्रमुख गेल्शियर के पिघलने (15,000 से 10,000 वर्ष पूर्व) के दौरान, विस्फोट की दर काफी अधिक थी। 
  • बर्फ के कम होने से उत्पन्न दबाव के कारण चट्टानें कम तापमान पर पिघल सकती हैं, जिससे मैग्मा की मात्रा बढ़ सकता है।

वर्षा की भूमिका  

  • जलवायु परिवर्तन से प्रभावित वर्षा में परिवर्तन, भूमिगत स्तर तक पहुंच सकता है तथा मैग्मा प्रणालियों के साथ अंतःक्रिया कर सकता है, जिससे संभावित रूप से विस्फोट हो सकता है।

केस स्टडी: मोचो चोशुएंको ज्वालामुखी

चिली के मोचो चोशुएन्को ज्वालामुखी पर किए गए शोध में ज्वालामुखीय चट्टानों की संरचनाओं की जाँच की गई ताकि हिमयुग के सापेक्ष विस्फोट के समय का अनुमान लगाया जा सके। निष्कर्षों से पता चला कि मोटी बर्फ की चादरों ने शुरुआत में विस्फोटों को दबा दिया था। हालांकि, 13,000 साल पहले पिघलने के कारण विस्फोटक ज्वालामुखी गतिविधि शुरू हो गई। 

ज्वालामुखी विस्फोट के परिणाम 

  • विस्फोटों से राख और सल्फर डाइऑक्साइड निकलते हैं, जिससे अस्थायी रूप से वैश्विक शीतलन हो सकता है। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि, राख और सल्फर डाइऑक्साइड सूर्य के प्रकाश को अवरुद्ध करते हैं और समताप मंडल में सल्फ्यूरिक एसिड एरोसोल बनाते हैं।
  • सल्फ्यूरिक एरोसोल सौर विकिरण को परावर्तित करते हैं, जिससे पृथ्वी की सतह तीन वर्षों तक ठंडी रहती है।
  • हालाँकि, लगातार विस्फोटों से कार्बन डाइऑक्साइड और मीथेन जैसी ग्रीनहाउस गैसें निकल सकती हैं, जो वैश्विक तापमान में और वृद्धि कर सकती हैं। 
  • इससे एक संभावित चक्र बनता है, जिसमें बढ़ते तापमान के कारण बर्फ अधिक पिघलती है, जिसके परिणामस्वरूप विस्फोटों की संख्या तथा तापमान में वृद्धि होती है।
  • Tags :
  • Melting Glaciers
  • Volcanic Eruptions
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