भारतीय बैंकिंग में तरलता की स्थिति
हाल की तिमाहियों में भारतीय बैंकिंग क्षेत्र में तरलता की स्थिति में काफ़ी बदलाव आया है। यह घाटे की स्थिति से निकलकर अब लगातार अधिशेष (सरप्लस) की स्थिति में पहुँच गई है। 2024 तक, प्रणाली में प्रतिदिन का तरलता अधिशेष कभी-कभी ₹4 ट्रिलियन से भी अधिक दर्ज किया गया।
केंद्रीय बैंक का तरलता प्रबंधन
- भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) को एक समय तरलता की कमी के लिए आलोचना का सामना करना पड़ा, जिसका मुख्य कारण रुपये को समर्थन देने के लिए मुद्रा बाज़ार में हस्तक्षेप था।
- जैसे ही रुपये पर दबाव कम हुआ और मुद्रास्फीति की दरें अनुकूल हुईं, स्थिति में सुधार हुआ।
- RBI ने चार चरणों में नकद आरक्षित अनुपात (CRR) को 100 बेसिस पॉइंट्स तक घटाया, जिससे 2.5 ट्रिलियन रुपये की तरलता बढ़ गई।
तरलता का अर्थव्यवस्था पर प्रभाव
- अधिशेष तरलता:
- मुद्रास्फीति संबंधी जोखिम बढ़ सकता है, हालांकि मुद्रास्फीति वर्तमान में नियंत्रण में है।
- बैंक जब बचत पर ब्याज दरें घटाते हैं, तो इससे संपत्ति की कीमतों में बढ़ोतरी (एसेट प्राइस इनफ्लेशन) हो सकती है।
- ऋण प्रोत्साहन:
- तरलता बढ़ने से बैंक कम ब्याज दरों पर ऋण देने को प्रोत्साहित हो सकते हैं।
- आसान धनराशि के कारण अयोग्य उधारकर्ताओं को ऋण मिलने का खतरा भी बढ़ा सकता है।
- निवेश की प्रवृत्ति:
- वैश्विक अनिश्चितता निजी क्षेत्र के निवेश संबंधी निर्णयों को प्रभावित करती है।
- निगम पूंजी बाजार से तेजी से धन जुटा रहे हैं। 2024-25 में इसमें 32.9% की वृद्धि हुई।
- इस वर्ष लगभग 10 ट्रिलियन रुपये मूल्य के कॉर्पोरेट बांड जारी किये गये।
RBI का मौद्रिक नीति दृष्टिकोण
- RBI तरलता प्रबंधन के लिए वेरिएबल रेट रिवर्स रेपो ऑक्शन आयोजित कर रहा है।
- वेटेड एवरेज कॉल रेट अभी भी नीतिगत दर से नीचे बनी हुई है, ताकि नीति का प्रभाव बेहतर तरीके से अर्थव्यवस्था तक पहुँच सके।
- RBI को CRR में कटौती के कारण प्रत्याशित अतिरिक्त तरलता का प्रबंधन करने तथा बाजार को अपने तरलता लक्ष्यों के बारे में स्पष्ट रूप से बताने की आवश्यकता है।