भारत के बैंकिंग क्षेत्र का अवलोकन
भारत का बैंकिंग क्षेत्र वर्तमान में उल्लेखनीय मजबूती और स्थायित्व प्रदर्शित कर रहा है, जो विभिन्न वित्तीय स्वास्थ्य मानकों में परिलक्षित होता है। इनमें पूंजी पर्याप्तता, प्रोविजन कवरेज रेश्यो, तरलता कवरेज रेश्यो, परिसंपत्तियों पर प्रतिफल (RoA) और ऋणों के अनुपात के रूप में सकल गैर-निष्पादित परिसंपत्तियाँ (GNPAs) शामिल हैं।
पूंजी पर्याप्तता और लाभप्रदता
- बैंकिंग प्रणाली के लिए समग्र पूंजी पर्याप्तता 17.3% है, जिसमें सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों (PSBs) की हिस्सेदारी 16.2% है।
- सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों ने परिसंपत्तियों पर प्रतिफल (RoA) 1.1% दर्शाया है, जो 1% के बेंचमार्क से अधिक है।
- सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों की बाजार से पूंजी प्राप्त करने की क्षमता यह सुनिश्चित करती है कि उन्हें पूंजीगत सहायता के लिए सरकारी सहायता की आवश्यकता नहीं होगी।
ऋण वृद्धि की गतिशीलता
- सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों (PSBs) ने निजी बैंकों की तुलना में अधिक ऋण वृद्धि (क्रेडिट ग्रोथ) दर्ज की है, जिससे उनके घटते बाजार हिस्सेदारी (मार्केट शेयर) के रुझान में उलटफेर देखा गया है।
नियामकीय उपाय और क्षेत्रीय वृद्धि
- RBI ने दो प्राथमिक चिंताओं को दूर करने के लिए जानबूझकर ऋण वृद्धि को धीमा कर दिया:
- ऋण वृद्धि, जमा वृद्धि से अधिक हो गई थी, जिसके कारण उच्च लागत वाले, अस्थिर फंडों पर निर्भरता बढ़ गई।
- व्यक्तिगत ऋण (पर्सनल लोन) और NBFCs के क्षेत्रों में अत्यधिक वृद्धि को जोखिमपूर्ण माना गया।
- मंदी के बावजूद, सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों की लाभप्रदता 0.9% से बढ़कर 1.1% हो गई तथा कर-पश्चात लाभ (Profit After Tax) में 32% की वृद्धि हुई।
क्षेत्रीय ऋण वितरण
- सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यमों (MSMEs) को ऋण में 14.1% की वृद्धि हुई, जो सेवाओं और खुदरा ऋण से अधिक है।
गैर-निष्पादित परिसंपत्तियाँ (NPAs)
- MSMEs के लिए NPAs में उल्लेखनीय कमी आई है, जो दो वर्षों में 6.8% से घटकर 3.6% हो गई है।
- व्यापार प्राप्य छूट प्रणाली (TReDS) और आपातकालीन क्रेडिट लाइन गारंटी योजना (ECLGS) ने MSME वित्तपोषण में भूमिका निभाई।
भविष्य के निहितार्थ
MSME को ऋण देने में वृद्धि की ओर रुझान भविष्य की परिसंपत्ति गुणवत्ता पर सवाल खड़े करता है। असली चुनौती निजी निवेश गतिविधियों के साथ तालमेल बिठाते हुए सावधि ऋण और परियोजना वित्त विकास को बढ़ाना होगा।