ICRA की एक रिपोर्ट के अनुसार सरकारी प्रोत्साहनों के कारण वित्त वर्ष 2018 से म्युनिसिपल बॉण्ड्स में मजबूत वृद्धि देखी गई है | Current Affairs | Vision IAS
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रिपोर्ट के अनुसार, वित्त वर्ष 2018 से अब तक म्युनिसिपल बॉण्ड्स के माध्यम से 2,600 करोड़ रुपये से अधिक राशि जुटाई गई है। यह आंकड़ा वित्त वर्ष 1998-2005 के दौरान 1,000 करोड़ रुपये था।

  • वित्त वर्ष 2025-26 के लिए, लगभग 1,500 करोड़ रुपये से अधिक के म्युनिसिपल बॉण्ड्स जारी करने की संभावना है।

म्युनिसिपल बॉण्ड के बारे में

  • म्युनिसिपल बॉण्ड एक डेब्ट इंस्ट्रूमेंट है, जो नगर निगमों द्वारा संबंधित राज्य सरकारों की अनुमति से जारी किया जाता है।
    • भारत में पहली बार बेंगलुरु ने 1997 में म्युनिसिपल बॉण्ड जारी किया था। इसके बाद 1998 में अहमदाबाद नगर निगम ने म्युनिसिपल बॉण्ड जारी किया था।
  • ये बॉण्ड्स शहरी स्थानीय निकायों (ULBs) को वित्तीय स्वायत्तता प्राप्त करने में मदद करते हैं। इससे राज्य और केंद्रीय वित्तीय सहायता पर निर्भरता कम होती है।

भारत में म्युनिसिपल बॉण्ड जारी करने के समक्ष चुनौतियां

  • अनुदान पर निर्भरता: RBI की एक रिपोर्ट के अनुसार शहरी स्थानीय निकाय अपने राजस्व के लगभग 38% के लिए संबंधित राज्य द्वारा अनुदान पर निर्भर हैं।
  • लेखांकन संबंधी मुद्दे: कोई मानकीकृत मानदंड नहीं होने के कारण असंगतताएं उत्पन्न हो रही हैं।
  • कम तरलता: कोई द्वितीयक बाजार नहीं होने के कारण इनमें निवेशकों की रुचि कम हो रही है।
  • उच्च अनुपालन लागत और कमजोर क्रेडिट प्रोफ़ाइल बाजार पहुंच को सीमित करते हैं।

म्युनिसिपल बॉण्ड मार्केट को मजबूत करने हेतु उपाय:

  • कर-मुक्त बॉण्ड जारी करके खुदरा निवेशकों को आकर्षित किया जा सकता है, जबकि ग्रीन बॉण्ड अंतर्राष्ट्रीय फंडिंग को आकर्षित कर सकता है। 
  • RBI के नए मानदंडों के तहत उच्च प्रतिफल की पेशकश इसमें वाणिज्यिक बैंकों को भाग लेने के लिए प्रोत्साहित कर सकती है।

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