उपग्रह से प्राप्त इमेज से पता चला कि ओह-युकुल ग्लेशियर का अस्तित्व समाप्त हो गया है | Current Affairs | Vision IAS
News Today Logo

उपग्रह से प्राप्त इमेज से पता चला कि ओह-युकुल ग्लेशियर का अस्तित्व समाप्त हो गया है

Posted 21 Mar 2025

14 min read

यह पहला ग्लेशियर है, जिसे जलवायु परिवर्तन के कारण आधिकारिक रूप से पूर्णतया विलुप्त घोषित किया गया है। 2014 में आइसलैंड के ओह-युकुल ग्लेशियर को डेड (मृत) घोषित किया गया था। ऐसा इसलिए किया गया था, क्योंकि इसका द्रव्यमान इतना कम हो गया था कि इसकी आगे की और बढ़ने की गति रुक गई थी।

  • ओकजोकुल एक गुंबद के आकार का ग्लेशियर था। यह आइसलैंड की राजधानी रेक्जाविक के उत्तर-पश्चिम में ओक शील्ड ज्वालामुखी के क्रेटर के चारों ओर मौजूद था।
  • अन्य ग्लेशियर जिनका अस्तित्व समाप्त हो गया है: 
    • एंडरसन ग्लेशियर, क्लार्क ग्लेशियर और ग्लिसन ग्लेशियर (संयुक्त राज्य अमेरिका); 
    • बाउमन ग्लेशियर (न्यूजीलैंड);
    • काल्डेरोन ग्लेशियर (इटली); 
    • मार्शल सुर ग्लेशियर (अर्जेंटीना);
    • पिको हम्बोल्ट ग्लेशियर (वेनेजुएला); 
    • पिजोल ग्लेशियर (स्विट्जरलैंड);
    • सारेन ग्लेशियर (फ्रांस) और 
    • श्नीफर्नर ग्लेशियर (जर्मनी)।

ग्लेशियरों (हिमनद) के बारे में

  • ग्लेशियर बर्फ और हिम का एक विशाल व बारहमासी संचय होता है। यह अपने वजन और गुरुत्वाकर्षण के प्रभाव से धीरे-धीरे ढलान की दिशा में आगे बढ़ता रहता है।
  • ग्लेशियर आमतौर पर उन क्षेत्रों में पाए जाते हैं, जहां औसत वार्षिक तापमान हिमांक बिंदु के करीब होता है और शीत ऋतु में वर्षण से अत्यधिक मात्रा में बर्फ गिरती है। इससे उसका पर्याप्त संचय होता रहता है।
  • ग्लेशियरों का महत्त्व:
    • जल भंडार: ग्लेशियरों में पृथ्वी के लगभग तीन-चौथाई ताजे जल का भंडारण मौजूद है। इस प्रकार ये ताजे जल के सबसे बड़े भंडार हैं।
    • कृषि: ग्लेशियर कई क्षेत्रों में सिंचाई का स्रोत हैं। साथ ही, ग्लेशियरों से निकलने वाली नदियां कृषि के लिए भूमि को उपजाऊ भी बनाती हैं।
    • जैव विविधता: ग्लेशियरों के पिघलने से झीलों, नदियों और महासागरों में पोषक तत्व पहुंचते हैं। इससे पादपप्लवकों (Phytoplankton) की संख्या में वृद्धि होती है। पादपप्लवक जलीय खाद्य श्रृंखलाओं का आधार होते हैं।

जलवायु परिवर्तन के कारण ग्लेशियरों के पिघलने के प्रभाव

  • जल चक्र में व्यवधान: इससे ताजे जल की उपलब्धता और पारिस्थितिकी-तंत्र व कृषि के समक्ष खतरा उत्पन्न हो जाता है।
  • प्राकृतिक आपदाएं: इससे हिमनदीय झील के तटबंध टूटने से आने वाली बाढ़ (GLOF) और हिमस्खलन का खतरा बढ़ जाता है।
  • समुद्री जल स्तर में वृद्धि: इससे तटीय कटाव, पर्यावास की क्षति, जैव विविधता हानि आदि हो सकती है।
  • क्लाइमेट फीडबैक लूप: इससे पृथ्वी की सतह का एल्बिडो कम हो जाता है, जिससे वैश्विक तापमान में वृद्धि होने लगती है। 

ग्लेशियरों के संरक्षण के लिए शुरू की गई पहलें

  • वैश्विक स्तर पर: संयुक्त राष्ट्र, यूनेस्को अंतर-सरकारी जल विज्ञान कार्यक्रम आदि द्वारा वर्ष 2025 को ‘ग्लेशियरों के संरक्षण का अंतर्राष्ट्रीय वर्ष’ घोषित किया गया है।
  • भारत में शुरू की गई पहलें: नेटवर्क प्रोग्राम ऑन हिमालयन क्रायोस्फीयर, क्रायोस्फीयर एवं जलवायु परिवर्तन अध्ययन केंद्र, हिमांश (HIMANSH) अनुसंधान केंद्र आदि।
  • Tags :
  • जलवायु परिवर्तन
  • ग्लेशियर
  • क्रायोस्फीयर
  • ओक शील्ड ज्वालामुखी
  • हिमांश (HIMANSH) अनुसंधान केंद्र
Watch News Today
Subscribe for Premium Features