गोरखपुर परियोजना में दो जुड़वा (यानी 4) परमाणु ऊर्जा इकाइयां स्थापित की जाएंगी। इनमें से प्रत्येक में एक दाबयुक्त भारी जल रिएक्टर (Pressurized Heavy Water Reactor: PHWR) होगा। इस परियोजना की कुल क्षमता 2800 MW होगी।
PHWR के बारे में

- PHWR में शीतलक और मंदक दोनों के लिए भारी जल (D₂O) का उपयोग किया जाता है तथा ईंधन के रूप में प्राकृतिक यूरेनियम का उपयोग किया जाता है।
- भारी जल वह जल है, जिसमें सामान्य हाइड्रोजन के स्थान पर भारी हाइड्रोजन होता है। इस भारी हाइड्रोजन को ड्यूटेरियम भी कहा जाता है।
- भारी जल का उपयोग इसलिए किया जाता है, क्योंकि यह अभिक्रिया के दौरान न्यूट्रॉन को प्रभावी ढंग से धीमा कर देता है तथा इसमें न्यूट्रॉन के अवशोषण की संभावना भी कम होती है।
- भारत के PHWR संयंत्र का विकास
- इसके विकास की शुरुआत 1960 के दशक में भारत-कनाडा परमाणु सहयोग के माध्यम से शुरू हुई थी।
- राजस्थान परमाणु ऊर्जा स्टेशन (RAPS-1) में पहला 220 MW का रिएक्टर बनाया गया था।
- पोखरण-1 (1974) के बाद, कनाडा ने भारत को परमाणु ऊर्जा कार्यक्रम में सहयोग देना बंद कर दिया था। इसके बाद भारत ने 220 MW के PHWR डिजाइन को स्वदेशी रूप से विकसित किया था।
भारत में परमाणु ऊर्जा के क्षेत्र में हाल ही में हुए विकास
- परमाणु ऊर्जा मिशन के अंतर्गत 2047 तक देश की परमाणु ऊर्जा क्षमता को 100 गीगावाट (GW) तक बढ़ाने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है।
- वर्तमान में भारत की स्थापित परमाणु ऊर्जा क्षमता लगभग 8.1 GW है।
- भारत की सबसे पुरानी यूरेनियम खदान, झारखंड की जादुगुड़ा माइंस में नए यूरेनियम भंडार की खोज की गई है।
- गुजरात के काकरापार में स्वदेशी रूप से निर्मित 700 MWe के PHWR की पहली दो इकाइयों (KAPS- 3 और 4) ने वित्त वर्ष 2023-24 में वाणिज्यिक परिचालन शुरू कर दिया है।
- देश के पहले प्रोटोटाइप फास्ट ब्रीडर रिएक्टर (PFBR 500 मेगावाट) ने 2024 में महत्वपूर्ण उपलब्धियां हासिल की हैं।
- NPCIL और NTPC ने परमाणु ऊर्जा संयंत्रों के निर्माण एवं संचालन के लिए एक संयुक्त उद्यम अश्विनी (ASHVINI) का गठन किया है। 4x700 मेगावाट PHWR माही-बांसवाड़ा राजस्थान परमाणु ऊर्जा परियोजना इसी के अंतर्गत शुरू की जा रही है।