भारत के मुख्य न्यायाधीश ने इस बात पर जोर दिया कि विवेक, समानुभूति और न्यायिक व्याख्या जैसे मूल्यों का स्थान कोई नहीं ले सकता तथा प्रौद्योगिकी का संविधानवाद के आधार पर ही न्याय के क्षेत्र में उपयोग किया जाना चाहिए।
न्यायपालिका में प्रौद्योगिकी के प्रमुख उपयोग
- स्वचालित केस प्रबंधन: स्मार्ट शेड्यूलिंग, केस प्राथमिकता, तथा डीप लर्निंग एवं मशीन लर्निंग एल्गोरिदम का उपयोग करके तीव्र न्याय सुनिश्चित किया जा सकता है।
- पूर्वानुमानात्मक विश्लेषण: पूर्वानुमानित अंतर्दृष्टि प्रदान करने के लिए प्रौद्योगिकी का ऐतिहासिक निर्णयों और केस डेटा का विश्लेषण करने में उपयोग किया जा सकता है।
- ऑप्टिकल कैरेक्टर रिकॉग्निशन (OCR) और नेचुरल लैंग्वेज प्रोसेसिंग (NLP): इनसे दस्तावेजों का डिजिटलीकरण व तीव्र प्रोसेसिंग सुनिश्चित की जा सकती है। साथ ही, त्रुटियों को भी कम किया जा सकता है।
- ब्लॉकचेन तकनीक: यह तकनीक न्यायिक जमा रजिस्टर्स के रखरखाव, न्यायिक रिकॉर्ड में हेर-फेर रोकने आदि में मददगार साबित हो सकती है।
- AI-चैटबॉट्स: लोगों को मामलों की रियल टाइम जानकारी, प्रक्रियात्मक मार्गदर्शन और आवश्यक कानूनी अपडेट प्रदान करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं।

न्यायपालिका के साथ प्रौद्योगिकी को एकीकृत करने से संबंधित प्रमुख पहलें
- राष्ट्रीय न्यायिक डेटा ग्रिड (NJDG): यह ई-कोर्ट्स परियोजना के तहत आदेशों, निर्णयों और मामलों का डेटाबेस तैयार करता है।
- कस्टमाइज्ड फ्री एंड ओपन-सोर्स सॉफ्टवेयर (FOSS) पर आधारित केस इंफॉर्मेशन सॉफ्टवेयर (CIS): इसे जिला अदालतों और हाई कोर्ट्स में लागू किया गया है।
- ई-कोर्ट्स मिशन मोड परियोजना: यह परियोजना राष्ट्रीय ई-गवर्नेंस योजना के तहत शुरू की गई है। इसमें सुप्रीम कोर्ट की ई-कमेटी और न्याय विभाग शामिल हैं। इसे तीन चरणों में लागू किया गया है:
- चरण-I (2011-2015): जिला अदालतों को कंप्यूटरीकृत किया गया।
- चरण II (2015-23): हाई कोर्ट्स को अपने अधिकार क्षेत्र की परियोजनाओं को लागू करने की जिम्मेदारी दी गई।
- चरण III: केंद्रीय बजट (2023-2024) में इसके कार्यान्वयन के लिए 7000 करोड़ रुपये की घोषणा की गई।