प्रस्तावित संशोधन मानव-वन्यजीव संघर्ष की बढ़ती समस्या, विशेष रूप से जंगली सूअरों से जुड़ी घटनाओं पर केंद्र सरकार की धीमी प्रतिक्रिया को लेकर केरल राज्य की निराशा के कारण लाए गए हैं। राज्य ने कई बार जंगली सूअर को वर्मिन' (पीड़क जंतु) घोषित करने की मांग की है।
विधेयक के मुख्य प्रावधानों पर एक नजर
- इसमें मुख्य वन्यजीव वार्डन (CWW) को तत्काल कार्रवाई करने का यह अधिकार दिया गया है कि वह किसी भी वन्यजीव को मारने, बेहोश करने, पकड़ने या स्थानांतरित करने का आदेश दे सके, जो मानव आबादी वाले क्षेत्रों में किसी व्यक्ति पर हमला करता है।
- यह विधेयक राज्य सरकार को अनुसूची 2 में शामिल किसी भी वन्यजीव को “वर्मिन यानी पीड़क” घोषित करने का अधिकार देता है।
- उन जंगली जानवरों को वर्मिन यानी पीड़क घोषित किया जाता है, जो फसलों व पालतू जानवरों को नुकसान पहुंचाते हैं या बीमारियां फैलाते हैं।
- वर्तमान में, वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972 की धारा 62 केंद्र सरकार को यह अधिकार देती है कि वह अनुसूची I और अनुसूची II के भाग II में शामिल वन्यजीवों को छोड़कर, किसी भी वन्यजीव को वर्मिन घोषित कर सके तथा उन्हें अनुसूची V में शामिल कर सके।
संघीय पर्यावरणीय गवर्नेंस से संबंधित संवैधानिक प्रावधान
- संविधान की सातवीं अनुसूची के तहत सूची III यानी समवर्ती सूची में 'वन' और 'वन्यजीवों एवं पक्षियों का संरक्षण' विषय सूचीबद्ध हैं।
- इसी के अनुसरण में, संसद ने वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972 अधिनियमित किया है।
- समवर्ती सूची की स्थिति के परिणामस्वरूप, कोई भी राज्य कानून जो केंद्रीय अधिनियम के प्रतिकूल है, उसे राष्ट्रपति की सहमति की आवश्यकता होती है।