भारत की रेयर अर्थ मैग्नेट चुनौती
भारत के पास थोरियम और नियोडिमियम जैसे दुर्लभ भू-तत्वों (Rare Earth Elements) के विशाल भंडार हैं, जो देश को चीन पर अपनी निर्भरता कम करने का एक सुनहरा अवसर प्रदान करते हैं।
पृष्ठभूमि और महत्व
- भारत के भंडारों में लगभग 11.93 मिलियन टन मोनाज़ाइट शामिल है, जिसमें लगभग 1.07 मिलियन टन थोरियम मौजूद है, जो कि विश्व के ज्ञात थोरियम भंडार का लगभग एक-चौथाई है।
- नियोडिमियम चुम्बक, समैरियम कोबाल्ट चुम्बकों की तुलना में अधिक शक्तिशाली और बहुमुखी होते हैं, जिससे वे विभिन्न क्षेत्रों में लागत प्रभावी होते हैं।
- हालांकि भारत के पास इन संसाधनों की प्रचुरता है, फिर भी वह अब तक नियोडिमियम ऑक्साइड को धातु में प्रसंस्करण और स्थायी मैग्नेट के निर्माण की क्षमता विकसित नहीं कर सका है, जबकि चीन इस क्षेत्र में वैश्विक नेतृत्व कर रहा है।
वर्तमान परिदृश्य
- चीन के पास दुनिया की 94% रेयर अर्थ (RE) मैग्नेट उत्पादन क्षमता है, जबकि जापान ने भारतीय संसाधनों का उपयोग करते हुए 4% हिस्सेदारी विकसित की है।
- भारत, जो कि दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा ऑटोमोबाइल बाजार है, RE मैग्नेट के आयात पर अत्यधिक निर्भरता के कारण गंभीर चुनौतियों का सामना कर रहा है।
- RE मैग्नेट आधुनिक तकनीक और औद्योगिक क्षेत्रों के लिए अनिवार्य हैं, जिनमें इलेक्ट्रिक वाहन, पवन टर्बाइन, स्मार्टफोन आदि शामिल हैं।
चुनौतियां और समाधान
- भारत के लिए सबसे बड़ी बाधा खनन नहीं, बल्कि मूल्य संवर्धन में है, क्योंकि चीन की प्रतिस्पर्धात्मक मूल्य निर्धारण और बड़े पैमाने की अर्थव्यवस्था भारत को पीछे कर देती है।
- संभावित समाधानों में शामिल हैं:
- तत्काल राहत के लिए चीन के साथ कूटनीतिक वार्ता।
- उपलब्ध नियोडिमियम ऑक्साइड का उपयोग करके स्वदेशी मैग्नेट निर्माण क्षमताओं का विकास।
- मध्यवर्ती प्रक्रियाओं को बढ़ाने के लिए खनन क्षेत्र और विनिर्माण उद्योग के बीच बेहतर तालमेल आवश्यक है।
पर्यावरण संबंधी विचार
- रेयर अर्थ (RE) खनन पर्यावरण के लिए हानिकारक होता है और इससे तटीय पारिस्थितिकी तंत्र को गंभीर खतरा उत्पन्न हो सकता है।
- सतत विकास के लिए पारिस्थितिक लागत को तकनीकी और आर्थिक लाभों के साथ संतुलित करना महत्वपूर्ण है।