कोल इंडिया लिमिटेड की अंतरिम कोयला नीति पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला
सुप्रीम कोर्ट ने कोल इंडिया लिमिटेड की 2006 की अंतरिम कोयला नीति की वैधता को बरकरार रखा, जिसके तहत गैर-प्रमुख क्षेत्र के उद्योगों को आपूर्ति किए जाने वाले कोयले की कीमत में 20% की वृद्धि अनिवार्य थी। यह निर्णय सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनी, कोल इंडिया लिमिटेड के लिए एक महत्वपूर्ण जीत है।
फैसले के मुख्य बिंदु
- सुप्रीम कोर्ट ने कलकत्ता उच्च न्यायालय के 2012 के फैसले को पलट दिया है, जिसने नीति को अवैध करार दिया था।
- न्यायमूर्ति जे.बी. पारदीवाला और न्यायमूर्ति आर. महादेवन की पीठ ने कहा कि उच्च न्यायालय ने अपने फैसले में "गंभीर त्रुटि" की है।
- न्यायालय ने पुष्टि की है कि अंतरिम कोयला नीति का उद्देश्य कोयले की आपूर्ति और उपलब्धता को बनाए रखना था, न कि केवल लाभ की भावना से प्रेरित होना।
फैसले में संबोधित मुद्दे
- अंतरिम कोयला नीति अधिसूचित करने का अधिकार: सुप्रीम कोर्ट ने पाया कि कोल इंडिया को CCO, 2000 के तहत अंतरिम कोयला नीति के माध्यम से कीमतों को विनियमित करने का अधिकार है।
- अनुच्छेद 14 के तहत मूल्य वृद्धि की वैधता: न्यायालय ने गैर-कोर लिंक्ड उपभोक्ताओं के लिए 20% मूल्य वृद्धि को बरकरार रखा तथा कोर और गैर-कोर क्षेत्रों के बीच वर्गीकरण की पुष्टि की।
- धन वापसी का अधिकार: प्रतिवादियों द्वारा 20% मूल्य वृद्धि की वापसी का अनुरोध खारिज कर दिया गया। न्यायालय ने संकेत दिया कि अमान्य होने पर भी धन वापसी का अधिकार नहीं होता।
न्यायमूर्ति पारदीवाला ने इस बात पर जोर दिया कि नीति का उद्देश्य लाभ कमाने के बजाय बाजार में आपूर्ति बनाए रखना है।