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भारतीय समाज को पुनर्परिभाषित करने में प्रौद्योगिकी की भूमिका (Technology's Role in Redefining Indian Society) | Current Affairs | Vision IAS
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भारतीय समाज को पुनर्परिभाषित करने में प्रौद्योगिकी की भूमिका (Technology's Role in Redefining Indian Society)

Posted 24 Dec 2024

7 min read

भूमिका

भारत में तीव्र तकनीकी प्रगति ने समाज को गहराई से प्रभावित किया है और लोगों की रोजमर्रा की जिंदगी को नई दिशा दी है। स्मार्टफोन को व्यापक रूप से अपनाने और इंटरनेट कनेक्टिविटी के विस्तार ने सूचना, शिक्षा और आर्थिक अवसरों की प्राप्ति को लोकतांत्रिक बना दिया है। 

PIB पर प्रकाशित एक डेटा के अनुसार मार्च 2024 तक, भारत में 954.40 मिलियन इंटरनेट सब्सक्राइबर्स थे, जो विश्व में इंटरनेट से जुड़ी विश्व की दूसरी सबसे बड़ी आबादी है। इस डिजिटल क्रांति ने खासतौर पर सूचना-प्रौद्योगिकी (IT), ई-कॉमर्स और फिनटेक जैसे क्षेत्रकों में महत्वपूर्ण आर्थिक संवृद्धि को बढ़ावा दिया है। हालांकि, प्रौद्योगिकी विकास का प्रभाव अर्थव्यवस्था के अलावा अन्य क्षेत्रकों पर भी पड़ा है। 

प्रौद्योगिकी ने भारत की सामाजिक संरचनाओं को प्रभावित किया है, सांस्कृतिक प्रथाओं में परिवर्तन लाया है तथा सामाजिक संस्थाओं और मूल्य प्रणालियों को नई दिशा दी है। इसमें कोई दो राय नहीं कि, प्रौद्योगिकी के विस्तार ने सामाजिक गतिशीलता को बढ़ाया है और पहले से हाशिए पर मौजूद समूहों को सशक्त बनाया है। लेकिन यह भी सही है कि प्रौद्योगिकी ने डिजिटल डिवाइड की खाई को बढ़ा दिया है तथा पारिवारिक संरचना और सांस्कृतिक मानदंडों में बदलाव जैसी चुनौतियां भी पैदा की हैं। 

इस तरह देखें तो, प्रौद्योगिकी एक ओर भारत में प्रगति का वाहक बनी है तो दूसरी ओर व्यापक सामाजिक बदलाव का जरिया भी बनी है।

1. पारंपरिक भारतीय समाज की विशेषताएं क्या हैं?

  • बहु-धार्मिक समाज: भारत में कई धर्मों के लोग रहते हैं जिनमें हिंदू, मुस्लिम, ईसाई, सिख, बौद्ध, जैन सहित कई अन्य धर्मावलम्बी शामिल हैं। 2011 की जनगणना के अनुसार, भारत में 79.8% आबादी हिंदू, 14.2% मुस्लिम, 2.3% ईसाई, और 1.7% सिख है, शेष 2% आबादी अन्य धर्मों को मानने वाले लोगों की है।
  • बहुभाषी समाज: विश्व में भारत सबसे अधिक भाषाई विविधता वाले देशों में शामिल है। भारत की 22 भाषाएं संविधान की आठवीं अनुसूची के तहत सूचीबद्ध हैं। इन अनुसूचित भाषाओं के अलावा, भारत की जनगणना में 1,796 अन्य भाषाओं का उल्लेख हैं जिनके बोलने वाले मौजूद हैं। साथ ही जनगणना में 1796 मातृभाषाओं का भी उल्लेख है। 
  • जाति व्यवस्था: विभिन्न कानूनी सुधारों के बावजूद, पारंपरिक भारतीय समाज में जाति व्यवस्था सामाजिक संगठन का एक महत्वपूर्ण पहलू बनी हुई है। 2011 की जनगणना के मुताबिक भारत में 16.6% आबादी अनुसूचित जातियों (SCs) की है, जबकि 8.6% आबादी अनुसूचित जनजातियों (STs) की है।
  • जनजातीय समुदाय: भारत में बड़ी संख्या में जनजातीय आबादी निवास करती हैं। भारत में आधिकारिक तौर पर मान्यता प्राप्त 705 जनजातियां मौजूद हैं। 2011 की जनगणना के अनुसार, देश में जनजातीय लोगों की आबादी लगभग 104 मिलियन है, जो राष्ट्रीय जनसंख्या का लगभग 8.6% है।
  • पारिवारिक संरचना: भारतीय समाज पारंपरिक रूप से संयुक्त परिवार को महत्व देता है, परन्तु मौजूदा दौर में एकल परिवार (न्यूक्लियर फैमिली) तेजी से प्रचलित हो रहे हैं। 2011 की जनगणना में 70% भारतीय घर एकल परिवार थे, सबसे ज्यादा संयुक्त परिवार ग्रामीण क्षेत्रों में हैं। 
  • विवाह अनुष्ठान: पारंपरिक भारतीय समाज में विवाह काफी हद तक धार्मिक और सांस्कृतिक मानदंडों द्वारा शासित होते हैं। भारतीय मानव विकास सर्वेक्षण की 2018 की रिपोर्ट के अनुसार, भारत में लगभग 90% शादियां अरेंज्ड होती हैं।

2. भारतीय समाज में कौन-कौन से तकनीकी विकास हुए हैं?

भारत की तकनीकी प्रगति ने इसके आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक आयामों को प्रभावित करते हुए अलग-अलग क्षेत्रकों को प्रभावित किया है। इसमें शामिल हैं:

  • सूचना और संचार प्रौद्योगिकी (ICT): इसमें इंटरनेट, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, क्लाउड कंप्यूटिंग, बिग डेटा, इंटरनेट ऑफ थिंग्स, ऑगमेंटेड रियलिटी, वर्चुअल रियलिटी जैसी प्रौद्योगिकियां शामिल हैं। हाई-स्पीड इंटरनेट, डिजिटल अवसंरचना और मोबाइल ने इस तकनीकी विकास को गति प्रदान करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
  • फिनटेक (वित्तीय प्रौद्योगिकी): इसमें वित्तीय समावेशन, डिजिटल पेमेंट, डिजिटल ऋण प्लेटफार्म, बैंकिंग और रिकॉर्ड-कीपिंग में ब्लॉकचेन का उपयोग आदि के लिए मोबाइल बैंकिंग को अपनाना शामिल है।
  • मेडटेक (चिकित्सा प्रौद्योगिकी): इसमें टेलीमेडिसिन और दूरस्थ चिकित्सा परामर्श (ऑनलाइन परामर्श के लिए सरकार की ई-संजीवनी पहल), इलेक्ट्रॉनिक स्वास्थ्य रिकॉर्ड प्रबंधन, डायग्नोस्टिक्स में AI का उपयोग आदि शामिल है।
  • एडटेक (शिक्षा प्रौद्योगिकी): इसमें ऑनलाइन लर्निंग प्लेटफॉर्म्स (SWAYAM/ स्वयं प्लेटफॉर्म), डिजिटल क्लासरूम और वर्चुअल लैब, AI-संचालित वैयक्तिकृत शिक्षण आदि को अपनाना शामिल हैं।
  • ई-गवर्नेंस: इसमें नागरिकों को सेवाएं प्रदान करने, नागरिक सेवा पोर्टल (उदाहरण के लिए, MyGov), भूमि रिकॉर्ड का डिजिटलीकरण आदि में आधार कार्ड का उपयोग शामिल है।

3. भारतीय समाज पर प्रौद्योगिकी के क्या प्रभाव हैं?

प्रौद्योगिकी ने भारतीय समाज पर कई तरह से प्रभाव डाला है। इसके आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक आयामों को प्रभावित किया है। जहां एक तरफ इसने प्रगति और विकास को प्रेरित किया है, वहीं दूसरी तरफ इसने कुछ चुनौतियां भी पेश की हैं।

3.1. समाज में अलग-अलग हितधारकों पर प्रभाव

3.2. समाज की अलग-अलग सामाजिक संस्थाओं पर प्रभाव

3.2.1. परिवार

प्रौद्योगिकी ने भारत में पारिवारिक संरचनाओं की गतिशीलता में व्यापक बदलाव किया है। कुछ प्रमुख बदलाव इस प्रकार हैं:

  • एकल परिवार: बढ़ते शहरीकरण, वैश्वीकरण और बदलते करियर अवसरों के कारण एकल परिवारों का प्रचलन अधिक हो गया है। 
  • विवाह में देरी: प्रौद्योगिकी ने सामाजिक मानदंडों और अपेक्षाओं को प्रभावित किया है, जिसके कारण लोग देर से विवाह करने लगे हैं। 
  • महिलाओं की भूमिका में बदलाव: प्रौद्योगिकी ने परिवार और समाज में महिलाओं की भूमिकाओं में बड़े स्तर पर बदलाव किया है। अब महिलाएं पारंपरिक घरेलू कार्यों से निकलकर कार्यबल का हिस्सा बन रही हैं। 
  • नई पारिवारिक संरचनाएं: नई पारिवारिक संरचनाएं, जैसे कि सिंगल पैरेंट परिवार, समलैंगिक जोड़े और मिश्रित परिवार, अधिक प्रचलित और स्वीकृत होते जा रहे हैं।

3.2.2. जाति प्रथा

प्रौद्योगिकी ने भारत की जाति व्यवस्था के भीतर सेतु और एक बाधा, दोनों के रूप में कार्य किया है। हालांकि प्रौद्योगिकी ने ऐसे टूल्स प्रदान किए हैं जिसने ऐतिहासिक जाति विभाजन को चुनौती दी है, लेकिन कई बार ये प्रौद्योगिकियां पारंपरिक संरचनाओं को मजबूत करने के लिए नए रास्ते भी बनाती हैं।

प्रौद्योगिकी जाति व्यवस्था को कमजोर कर रही है

  • जजमानी प्रणाली का टूटना: प्रौद्योगिकी ने हाशिए पर रहने वाले समूहों को सेवा करने की जाति-आधारित पारंपरिक भूमिकाओं से निकलकर बाहर कार्य खोजने में सक्षम बनाया है। इसके चलते जाति से बंधी जजमानी व्यवस्था  (संरक्षक-सेवक) काफी कमजोर हो गई है।
    • उदाहरण: ‘नौकरी डॉट कॉम’ जैसे ऑनलाइन जॉब प्लेटफॉर्म्स और अर्बनक्लैप जैसे गिग ऐप्स ने सेवा कर्मियों को जाति-आधारित बिचौलियों की आवश्यकता को खत्म करते हुए ग्राहकों तक सीधी पहुंच प्रदान की है।
  • डिजिटल संस्कृतिकरण (Sanskritization): ऑनलाइन शिक्षा, कौशल-निर्माण और आर्थिक अवसरों तक पहुंच ने पारंपरिक रूप से निचली जाति के समूहों को उच्च जाति की जीवन-शैली और मूल्यों का अनुकरण करने की अनुमति दी है। यह संस्कृतिकरण का एक आधुनिक रूप है।
  • अंतर-जातीय विवाह: डेटिंग ऐप्स और सोशल नेटवर्क्स ने जातिगत सीमाओं को तोड़कर अंतर-जातीय विवाह को बढ़ावा दिया है। इसने खासकर शहरी क्षेत्रों में अंतर-जातीय विवाह की दर को बढ़ा दिया है।
    • उदाहरण: बम्बल और टिंडर जैसे ऐप्स ने लोगों को पारंपरिक विवाह मानदंडों को चुनौती देने में मदद की है। अब लोग जातिगत रूढ़ियों के बाहर जाकर अन्य जाति के व्यक्ति को डेट कर सकते हैं, अपने मनपसंद साथी से विवाह कर सकते हैं।
  • सोशल मीडिया आंदोलन: सोशल मीडिया हाशिए पर रहने वाले समूहों को जातिगत भेदभाव के खिलाफ आवाज़ उठाने और उससे लड़ने का अवसर देता है। इस प्रकार सोशल मीडिया ने लोगों को जागरूक और एकजुट करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
    • उदाहरण: #DalitLivesMatter जैसे आंदोलन।  
  • पारंपरिक सामाजिक प्रथाओं का क्षरण: समाजशास्त्री एम.एन. श्रीनिवास ने पश्चिमीकरण की अपनी अवधारणा में चर्चा की है कि कैसे मीडिया के माध्यम से पश्चिमी विचारों के संपर्क से पारंपरिक भारतीय प्रथाओं, खासकर पारिवारिक संरचना और सामाजिक पदानुक्रम से संबंधित प्रथाएं धीरे-धीरे कमजोर हो रही हैं।

जाति व्यवस्था को मजबूत करने वाली प्रौद्योगिकी

  • इको-चेंबर इफ़ेक्ट: सोशल मीडिया एल्गोरिदम अक्सर यूजर्स को ऐसा कंटेंट दिखाते हैं जो उनके मौजूदा हितों के साथ मेल खाता है। इस तरह के एल्गोरिदम ने जाति-आधारित इको चैंबर बनाए हैं जिसने जातिगत पहचान और मान्यताओं को और रूढ़ बना दिया है।
    • उदाहरण: फेसबुक पर जाति-आधारित समूहों में शामिल होने वाले लोग बार-बार ऐसे पोस्ट देखते हैं जो उनकी जाति की पहचान को मजबूत करते हैं, तथा उन्हें अलग-अलग दृष्टिकोणों के संपर्क में आने से रोकते हैं।
  • जाति-आधारित सोशल मीडिया समूह: सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स जाति-विशिष्ट समूहों के गठन की सुविधा प्रदान करते हैं, जाति की पहचान को मजबूत करते हैं और कभी-कभी बहिष्कार को बढ़ावा देते हैं।
    • उदाहरण: जाति समुदायों द्वारा निर्मित फेसबुक और व्हाट्सएप ग्रुप्स अंतर्जातीय एकजुटता को कायम रख सकते हैं और सामाजिक मिश्रण को हतोत्साहित कर सकते हैं।
  • जाति-आधारित मेट्रीमोनियल वेबसाइट्स: मेट्रीमोनियल वेबसाइट्स यूजर्स को जाति के आधार पर अपने लिए लाइफ पार्टनर खोजने की अनुमति देती हैं। इस प्रकार प्रौद्योगिकी कई बार जातीय अंतर्विवाह और पारंपरिक विवाह प्रथाओं को कायम रख सकती हैं।
    • उदाहरण: Shaadi.com और जीवनसाथी जैसी साइट्स में जाति-आधारित सर्च फ़िल्टर हैं, जो जाति-आधारित विवाह की प्रथा को बढ़ावा देते हैं।
  • डेटा पूर्वाग्रह और प्रोफाइलिंग: सोशल मीडिया और ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म्स पर एल्गोरिदम यूजर्स को जाति-संबंधी डेटा के आधार पर प्रोफाइल कर सकते हैं, जिससे रूढ़िवादिता और पूर्वाग्रह के बने रहने की संभावना रहती है।
    • उदाहरण: प्लेटफॉर्म्स पर टार्गेटेड विज्ञापन जाति-विशिष्ट कंटेंट को आगे बढ़ाने के लिए स्पेस और समुदाय आधारित डेटा का उपयोग कर सकते हैं, जिससे यूजर्स में विभाजन उत्पन्न होता है।

4. प्रौद्योगिकी शहरीकरण और ग्रामीणीकरण की प्रक्रिया को कैसे प्रभावित कर रही है?

प्रौद्योगिकी शहरीकरण (शहरों की ओर लोगों और संसाधनों की आवाजाही) और ग्रामीणीकरण (ग्रामीण क्षेत्रों में शहर जैसा विकास और सेवाएं लाना) दोनों के संचालन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। नीचे स्पष्ट किया गया है कि यह दोनों प्रक्रियाओं को कैसे बढ़ावा देती है:

4.1. प्रौद्योगिकी शहरीकरण को बढ़ावा देती है

  • रोजगार के अवसर और आर्थिक संवृद्धि: आई.टी., ई-कॉमर्स और फिनटेक जैसे प्रौद्योगिकी-संचालित उद्योग मुख्य रूप से शहरों में स्थित हैं, जो रोजगार के बेहतर और अधिक पारिश्रमिक की तलाश में ग्रामीण क्षेत्रों के लोगों को आकर्षित करते हैं।
    • उदाहरण: बेंगलुरु, हैदराबाद और मुंबई प्रमुख तकनीकी केंद्र बन गए हैं, जो आई.टी. और तकनीकी क्षेत्र की नौकरियों के लिए ग्रामीण प्रतिभाओं को आकर्षित कर रहे हैं।
  • शिक्षा और कौशल विकास: शहरी क्षेत्रों में उच्च-गुणवत्ता वाले और तकनीक-आधारित अधिक शैक्षणिक संस्थान मौजूद हैं। इस प्रकार के संस्थान ग्रामीण क्षेत्रों के ऐसे स्टूडेंट्स को अपनी तरफ आकर्षित करते हैं जो आधुनिक शिक्षा और कौशल-आधारित प्रशिक्षण चाहते हैं।
    • उदाहरण: शहरों में स्थित आई.आई.टी. और आई.आई.एम. जैसे संस्थान देश भर के स्टूडेंट्स को आकर्षित करते हैं। अधिकतर छात्र ग्रेजुएशन के बाद शहरों में ही रहने लग जाते हैं।
  • स्वास्थ्य देखभाल और अवसंरचना: कई बार ग्रामीण जन शहरों में मौजूद बेहतर स्वास्थ्य देखभाल सुविधाओं का लाभ उठाने के लिए भी शहरों की तरफ पलायन करते हैं।
    • उदाहरण: टेलीमेडिसिन सेवाओं वाले शहरी अस्पताल गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य देखभाल सेवाएं प्रदान करते हैं। इस प्रकार की सेवाएं ग्रामीण परिवारों को शहरों की तरफ आकर्षित करती हैं।
  • सामाजिक कनेक्टिविटी और जीवन-शैली: सोशल मीडिया और शहरी डिजिटल सेवाओं तक पहुंच ग्रामीण आबादी को शहरी जीवन-शैली से परिचित कराती है, जिससे उनमें भी शहरी जीवन-शैली अपनाने की इच्छा उत्पन्न होती हैं।
    • उदाहरण: सोशल मीडिया और ओ.टी.टी. प्लेटफॉर्म्स शहरी जीवन-शैली और अवसरों को प्रदर्शित करते हैं। जब ग्रामीण युवा इन्हें देखता है तो उसका मन शहरों की ओर पलायन करने का करता है।

4.2. प्रौद्योगिकी ग्रामीणीकरण को बढ़ावा दे रही है

  • डिजिटल सेवाएं और ई-गवर्नेंस: प्रौद्योगिकी ने बैंकिंग, शिक्षा और सरकारी योजनाओं जैसी आवश्यक सेवाओं को ग्रामीण क्षेत्रों तक पहुंचाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। इसने ग्रामीण आबादी की शहरों की ओर पलायन करने की दर में गिरावट लायी है।
    • उदाहरण: भारत में कॉमन सर्विस सेंटर्स (CSCs) जैसे प्लेटफॉर्म्स ग्रामीण क्षेत्रों में ई-गवर्नेंस और डिजिटल वित्तीय सेवाएं प्रदान कर रहे हैं।
  • टेलीमेडिसिन और हेल्थकेयर एक्सेस: टेलीमेडिसिन जैसे प्लेटफॉर्म्स ने ग्रामीण क्षेत्रों में शहरी-गुणवत्ता वाली स्वास्थ्य देखभाल सुविधाएं लाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। ग्रामीण क्षेत्रों में रहते हुए शहरों में स्थित डॉक्टर्स से चिकित्सा परामर्श प्राप्त करना संभव हो पाया है। इससे स्वास्थ्य देखभाल के मामले में ग्रामीण-शहरी असमानता में कमी आई है।
    • उदाहरण: टेलीमेडिसिन के तहत प्रैक्टो जैसे प्लेटफॉर्म्स और कुछ सरकारी पहलें ग्रामीण आबादी को विशिष्ट स्वास्थ्य देखभाल सेवाओं तक पहुंच प्रदान करते हैं।
  • कृषि-तकनीक और स्मार्ट फार्मिंग: कृषि-तकनीक समाधान ग्रामीण किसानों को मौसम की स्थिति, फसल स्वास्थ्य और बाजार की कीमतों पर रियल टाइम डेटा प्रदान करते हैं, तथा उत्पादकता एवं आय में बढ़ोतरी करते हैं। इससे  ग्रामीण जीवन अधिक संधारणीय हो रहा है।
    • उदाहरण: किसान सुविधा जैसे ऐप्स ग्रामीण किसानों को डेटा के आधार पर निर्णय लेने में मदद करने के लिए रियल टाइम डेटा प्रदान करते हैं। इसने कृषि प्रणाली में मौजूद चुनौतियों को कम करके ग्रामीणों के प्रवासन की दर में गिरावट लाने में मदद की है।
  • ई-लर्निंग और कौशल विकास: ई-लर्निंग प्लेटफॉर्म्स ग्रामीण युवाओं को बिना दूसरी जगह गए शहरी-गुणवत्ता वाली शिक्षा और कौशल तक पहुंच बनाने में सक्षम बनाते हैं, जो स्थानीय रोजगार और अवसरों का समर्थन करता है।
  • स्वास्थ्य देखभाल और बुनियादी ढांचा: शहरों में स्पेशलाइज्ड अस्पतालों के साथ-साथ उन्नत स्वास्थ्य देखभाल सुविधाएं ग्रामीण क्षेत्र की ऐसी आबादी को आकर्षित करती हैं, जो गुणवत्तापूर्ण चिकित्सा सेवा और बेहतर बुनियादी ढांचे की मांग करते हैं।
    • उदाहरण: टेलीमेडिसिन सेवाओं वाले शहरी अस्पताल गुणवत्तापूर्ण देखभाल प्रदान करते हैं, जिससे शहर उन्नत स्वास्थ्य देखभाल की जरूरत वाले ग्रामीण परिवारों के लिए एक आकर्षक विकल्प बन जाते हैं।
  • सामाजिक संपर्क और जीवनशैली: सोशल मीडिया और शहरी डिजिटल सेवाओं तक पहुँच ग्रामीण आबादी को शहरी जीवनशैली से परिचित कराती है। इससे भी ग्रामीण लोगों में शहरी जीवन स्तर के प्रति आकांक्षाएं बढ़ रही हैं।
    • उदाहरण: सोशल मीडिया और OTT प्लेटफॉर्म शहरी जीवनशैली एवं अवसरों तक पहुँच को बढ़ावा देते हैं। इससे ग्रामीण युवाओं को शहरों की ओर पलायन करने के लिए प्रोत्साहन मिलता है।

5. भारतीय समाज परंपरा के साथ प्रौद्योगिकी का संतुलन कैसे बना रहा है?

प्राचीन परंपराओं और सांस्कृतिक विरासत से समृद्ध भारतीय भूमि भी तेजी से तकनीकी प्रगति को अपना रही है। इस अनूठे मेलजोल ने पुराने और नए के बीच एक आकर्षक संपर्क को जन्म दिया है। जैसे-जैसे प्रौद्योगिकी जीवन के हर पहलू में प्रवेश कर रही है, भारतीय समाज इस जटिल परिदृश्य से आगे की तरफ बढ़ रहा है और परंपरा को आधुनिकता के साथ संतुलित करने की कोशिश कर रहा है। यह नाजुक संतुलन कार्य व्यक्तिगत, सामाजिक और सरकारी स्तरों पर सामने आता है, जो देश की उभरती पहचान को दिशा देता है।   

व्यक्तिगत स्तर पर

  • अपनाने में चयनात्मकता: लोग ऐसी तकनीक का चयन करते हैं जो उनके मूल्यों और परंपराओं के अनुरूप हो। उदाहरण के लिए, कोई व्यक्ति परिवार और दोस्तों से जुड़ने के लिए सोशल मीडिया का उपयोग कर सकता है, जबकि ऐसे कंटेंट को नजरअंदाज कर सकता है जो उसकी मान्यताओं के विपरीत हो। 
  • डिजिटल डिटॉक्स: बहुत से लोग डिजिटल डिटॉक्स का अभ्यास करते हैं। इसके तहत प्रौद्योगिकी से दूर रहने के लिए ध्यान, योग करते हैं या परिवार के साथ समय बिताते हैं।   
  • पारंपरिक कौशल वृद्धि: लोग शिल्प, संगीत या नृत्य जैसे पारंपरिक कौशल सीखते हैं और उनका अभ्यास करते हैं। साथ ही, अक्सर इन कौशलों को डॉक्यूमेंट करने, शेयर करने और प्रमोट करने के लिए प्रौद्योगिकी का उपयोग करते हैं।   
  • प्रौद्योगिकी का नैतिक उपयोग: लोग साइबर बुलिंग, फेक न्यूज फैलाने और हानिकारक ऑनलाइन गतिविधियों में सम्मिलित होने से बचकर प्रौद्योगिकी का नैतिक रूप से उपयोग करने का प्रयास करते हैं। 
  • सोच-समझकर उपभोग: लोग अपने द्वारा उपयोग की जाने वाली तकनीक के बारे में सचेत विकल्प चुनते हैं तथा ऐसे कंटेंट को प्राथमिकता देते हैं जो उनके जीवन को समृद्ध बनाता है और अत्यधिक स्क्रीन टाइम से उन्हें बचाता हो। उदाहरण: यूट्यूब पर टाइम रिमाइंडर सेट करना।

सामाजिक स्तर पर

  • डिजिटल धार्मिक प्रथाएं: आज-कल भारतीय मंदिरों और धार्मिक संस्थाओं द्वारा ऑनलाइन पूजा और लाइव-स्ट्रीम आरती समारोह की सुविधा दी जा रही हैं। उदाहरण: पीटर बर्जर का तर्क है कि प्रौद्योगिकी ने वर्चुअल धार्मिक समुदायों और डिजिटल धार्मिक कंटेंट के निर्माण को सक्षम बनाया है, जिससे व्यक्तिगत रूप से धार्मिक संस्थानों में उपस्थित हुए बिना धार्मिक अनुष्ठानों में शामिल हुआ जा सकता है।
  • डिजिटल आर्काइव्स और पुस्तकालयों के माध्यम से संस्कृति का संरक्षण: सामाजिक समूह और गैर-सरकारी संगठन संस्कृति के संरक्षण को बढ़ावा देने के लिए लोक गीतों, नृत्य रूपों और क्षेत्रीय भाषाओं से जुड़े ऑनलाइन आर्काइव्स बनाते हैं।  उदाहरण: पीपुल्स लिंग्विस्टिक सर्वे ऑफ इंडिया भारतीय भाषाओं का ऑनलाइन रिकॉर्ड रखता है।
  • तकनीक-सक्षम परंपरा: आजकल प्रौद्योगिकी का उपयोग पारंपरिक प्रथाओं को आधुनिक बनाने के लिए किया जा रहा है, जैसे ऑनलाइन योग कक्षाएं, वर्चुअल टेम्पल विजिट और प्राचीन ग्रंथों का डिजिटल संरक्षण।   
  • डिजिटल साक्षरता: इसके तहत डिजिटल साक्षरता को बढ़ावा देने, व्यक्तियों को प्रौद्योगिकी का जिम्मेदारीपूर्वक और विवेकपूर्ण उपयोग करने के लिए सशक्त बनाने के प्रयास किए जाते हैं।   
  • सामुदायिक जुड़ाव: ऑनलाइन प्लेटफॉर्म्स का उपयोग सामुदायिक संपर्क को बढ़ावा देने, साझा हितों वाले लोगों को जोड़ने और ज्ञान साझा करने की सुविधा के लिए किया जाता है।

गवर्नेंस स्तर पर

  • सांस्कृतिक विरासत के संरक्षण के लिए डिजिटल इंडिया: इस पहल के तहत सरकार स्मारकों, पांडुलिपियों और कलाकृति जैसी सांस्कृतिक विरासत को संरक्षित करने के लिए डिजिटलीकरण का प्रयास कर रही है। 

योजना: राष्ट्रीय पुस्तकालय मिशन तथा विरासत के लिए डिजिटल इंडिया कार्यक्रम

  • पारंपरिक शिल्प और हथकरघा संवर्धन के लिए कौशल भारत पहल: यह पारंपरिक शिल्प के कारीगरों का कौशल बढ़ाने और डिजिटल कौशल को एकीकृत करने के लिए कार्यक्रम है। 

योजना: प्रधान मंत्री कौशल विकास योजना (PMKVY) के तहत हस्तशिल्प और बुनकरों के लिए कोर्स।

  • पारंपरिक ज्ञान के लिए ई-लर्निंग प्लेटफॉर्म: SWAYAM/ स्वयं जैसे सरकारी ई-लर्निंग प्लेटफॉर्म संस्कृति, शास्त्रीय कला और पारंपरिक ज्ञान पर कोर्स संचालित करते हैं। 
  • स्वास्थ्य देखभाल की मुख्यधारा के साथ आयुष का एकीकरण: इस पहल का उद्देश्य आधुनिक चिकित्सा के साथ-साथ आयुर्वेद और योग जैसी पारंपरिक स्वास्थ्य पद्धतियों को बढ़ावा देना है। 

योजना: आयुष मिशन और आयुष हेल्थ एंड वेलनेस सेंटर।

  • शिल्पी (आर्टिसन) अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देने के लिए ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म्स के लिए समर्थन: शिल्पकारों को अपने उत्पाद डिजिटल रूप से बेचने की सुविधा देने के लिए सरकार ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म्स के साथ सहयोग कर रही है। 

योजना: GeM (गवर्नमेंट ई-मार्केटप्लेस) शिल्पकारों को अपने उत्पादों की ऑनलाइन बिक्री की सुविधा प्रदान करता है।

  • डिजिटल विरासत की सुरक्षा के लिए साइबर सुरक्षा उपाय: सरकार ने सांस्कृतिक विरासत के डिजिटल आर्काइव्स की सुरक्षा, डेटा उल्लंघनों और सांस्कृतिक रूप से संवेदनशील जानकारी तक अनधिकृत पहुंच को रोकने के लिए साइबर सुरक्षा प्रोटोकॉल लागू किया है। इसके लिए सरकार ने डिजिटल व्यक्तिगत डेटा संरक्षण अधिनियम, 2023 जैसे कानून और अलग-अलग नीतियां बनाई हैं। 

6. भारतीय समाज तकनीकी प्रगति को बेहतर ढंग से कैसे अपना सकता है?

भारतीय समाज पर प्रौद्योगिकी का प्रभाव गहरा और बहुआयामी है। इसने संचार, शिक्षा, स्वास्थ्य देखभाल और गवर्नेंस जैसे अलग-अलग पहलुओं को दिशा दी है। इससे जुड़ी कमियों को दूर करते हुए तकनीकी प्रगति का अधिकतम लाभ प्राप्त करने के लिए, कई विशिष्ट रणनीतियों और सर्वोत्तम कार्य-प्रणालियों को अपनाया जा सकता है:

  • डिजिटल डिवाइड को समाप्त करना: इस समस्या के समाधान के लिए वंचित क्षेत्रों में ब्रॉडबैंड कनेक्टिविटी का विस्तार करना होगा; किफायती डिजिटल उपकरणों के उत्पादन और वितरण सुनिश्चित करने के लिए सब्सिडी या प्रोत्साहन देना होगा; तथा डिजिटल साक्षरता पर समुदाय-आधारित अभियान और कार्यशालाएं आयोजित करनी होंगी।
  • प्रौद्योगिकी के नैतिक उपयोग को बढ़ावा देना: प्रौद्योगिकी के जिम्मेदार उपयोग के लिए एक फ्रेमवर्क बनाना होगा; डेटा गोपनीयता और डिजिटल अधिकारों पर ध्यान केंद्रित करना होगा; एल्गोरिदम निर्णय लेने को कैसे प्रभावित करते हैं, इसका पब्लिक डिस्क्लोजर करना होगा; भ्रामक सूचनाओं पर अंकुश लगाने के लिए फैक्ट-चेक मैकेनिज्म को मजबूत करना होगा आदि।
    • उदाहरण: OECD ने पारदर्शिता, जवाबदेही और मानव-केंद्रित डिजाइन पर ध्यान केंद्रित करते हुए AI के नैतिक उपयोग के लिए सिद्धांत विकसित किए हैं।
  • ऑटोमेशन और नौकरियां ख़त्म होने की समस्या को दूर करना होगा: AI, रोबोटिक्स और नवीकरणीय ऊर्जा जैसे उभरते क्षेत्रों में कौशल विकास के लिए सरकारी और कॉर्पोरेट पहलों को मजबूत करना चाहिए; विस्थापित श्रमिकों के लिए सार्वभौमिक सामाजिक सुरक्षा कवरेज प्रदान करने के विकल्प पर विचार करना चाहिए; मानव-केंद्रित ऐसे AI विकास को बढ़ावा देने की आवश्यकता है जो मानव क्षमता की जगह लेने की बजाय उन्हें बढ़ाने में मददगार हो, आदि।
  • स्टार्ट-अप्स और इनोवेशन हब्स का समर्थन करना: हेल्थ टेक या एग्री-टेक जैसे सोशल इम्पैक्ट पर ध्यान केंद्रित करने वाले स्टार्ट-अप्स का समर्थन करने के लिए सरकारी और निजी क्षेत्रक की साझेदारी के माध्यम से सलाह और वित्त-पोषण की व्यवस्था की जानी चाहिए।
  • मानसिक-स्वास्थ्य और सामाजिक कल्याण सुनिश्चित करना: इसमें शामिल हैं; स्वस्थ स्क्रीन-टाइम आदतों को बढ़ावा देने के लिए डिजिटल डिटॉक्स अभियान; एडिक्टिव फीचर्स को कम करना, एंडलेस स्क्रॉलिंग जैसे शोषणकारी ऑनलाइन डिज़ाइन को प्रतिबंधित करना तथा मानसिक स्वास्थ्य देखभाल हेतु प्रौद्योगिकी का लाभ उठाना (जैसे, टेलीमेडिसिन और ऐप्स)।
  • स्मार्ट गवर्नेंस को लागू करना: दक्षतापूर्वक सेवा वितरण के लिए प्रौद्योगिकी का उपयोग किया जाना चाहिए ; जैसे- ई-गवर्नेंस प्लेटफॉर्म्स जो लाइसेंसिंग, परमिट और लोक शिकायत निवारण जैसी प्रक्रियाओं को सुविधाजनक बनाते हों।
    • उदाहरण: डिजिटल सेवाओं के लिए नागरिक-केंद्रित डिजाइन को अपनाना, विविध आबादी की जरूरतों को पूरा करने के लिए यूजर्स के अनुकूल इंटरफेस और कई भाषाओं में उपलब्धता सुनिश्चित करना।
  • संधारणीय प्रौद्योगिकी पद्धतियां: ऊर्जा-दक्ष उपकरणों और नवीकरणीय ऊर्जा समाधानों को अपनाने को प्रोत्साहित करना चाहिए; तथा प्रौद्योगिकी विनिर्माण में रीयूज, रिफर्बिश और रीसायकल के माध्यम से सर्कुलर इकॉनमी को बढ़ावा देने का प्रयास करना चाहिए।

निष्कर्ष

विश्व बैंक ने प्रौद्योगिकी के भविष्य पर जोर दिया है, हालांकि व्यापक सामाजिक कल्याण वास्तव में प्रौद्योगिकी का उपयोग करने की सामूहिक प्रतिबद्धता पर निर्भर करता है। समावेशन, नैतिक मानक और संधारणीयता को प्राथमिकता देकर, हम एक ऐसा तकनीकी परिवेश बना सकते हैं जो न केवल आर्थिक संवृद्धि को बढ़ावा देता हो बल्कि सामाजिक मूल्यों को भी संरक्षित करे और सभी व्यक्तियों के लिए बेहतर जीवन सुनिश्चित करे।

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  • डिजिटल डिटॉक्स
  • भारतीय समाज
  • परिवारों पर प्रौद्योगिकी का प्रभाव
  • शहरीकरण को बढ़ावा देने वाली तकनीक
  • डिजिटल विभाजन
  • प्रौद्योगिकी का नैतिक उपयोग
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