भूमिका
अवसंरचना किसी भी राष्ट्र के विकास की रीढ़ होती है, लेकिन भारत बार-बार होने वाली अवसंरचना संबंधी विफलताओं से जूझ रहा है। इसका असर न केवल जन-सुरक्षा पर पड़ता है बल्कि आर्थिक विकास और जीवन की गुणवत्ता पर भी होता है। गुजरात में महिसागर पुल (2025) का गिरना और बिहार में कई पुलों का ढहना, निर्माण की गुणवत्ता, खराब रखरखाव और विनियामकीय निगरानी को लेकर गंभीर सवाल खड़े करते हैं। ये घटनाएँ केवल जान-माल की हानि ही नहीं करती हैं, बल्कि गहरे मुद्दों जैसे भ्रष्टाचार, जवाबदेही की कमी, कार्यान्वयन में देरी और सुरक्षा मानकों के साथ समझौते को भी उजागर करती हैं। इसलिए अवसंरचना की खामियों को दूर करना सिर्फ विकास की आवश्यकता ही नहीं, बल्कि नीतिपरक गवर्नेंस, पर्यावरणीय न्याय और मानवीय गरिमा का भी प्रश्न है।
इस आर्टिकल में हम अवसंरचना का अर्थ, आर्थिक विकास में उसके योगदान, अवसंरचना संबंधी विफलता के कारण, भारत के लिए चुनौतियां, इसके नैतिक पहलू, सरकार द्वारा उठाए गए कदम और अवसंरचना को अधिक मजबूत बनाने के समाधान पर चर्चा करेंगे।
1. अवसंरचना (Infrastructure) क्या होती है?
अवसंरचना उन भौतिक ढाँचों और सुविधाओं को कहा जाता है जिनके माध्यम से जनता को वस्तुएं और सेवाएं उपलब्ध कराई जाती हैं।
अवसंरचना के प्रकार
- सामाजिक अवसंरचना: ऐसी सेवाओं की आपूर्ति से संबंधित होती हैं जो समाज की मूलभूत आवश्यकताओं को पूरा करती हैं। उदाहरण के लिए, स्वास्थ्य सेवा, पेयजल, सीवरेज और स्वच्छता सुविधाओं, बिजली, शिक्षा आदि का प्रावधान।
- भौतिक अवसंरचना: इसमें कृषि, उद्योग, व्यापार आदि जैसे उत्पादन क्षेत्रों की आवश्यकताओं की जरूरतें पूरी करने वाली अवसंरचना शामिल होती हैं, उदाहरण के लिए- बिजली, सिंचाई, परिवहन, संचार, भंडारण आदि।
- डिजिटल अवसंरचना: इसमें डिजिटल डेटा और सेवाओं के निर्माण, भंडारण, प्रसंस्करण, ट्रांसमिशन और उपयोग को सक्षम बनाने वाली आधारभूत संसाधनों, प्रणालियों और प्रौद्योगिकियों को शामिल किया जाता है। उदाहरण के लिए- डेटा केंद्र, क्लाउड कंप्यूटिंग फैसिलिटी, साइबर सुरक्षा फ्रेमवर्क, आदि।
1.1. अवसंरचना की विशेषताएं
अवसंरचना की कुछ आर्थिक और संरचनात्मक विशेषताएं होती हैं जो इसे अन्य पूंजीगत संपत्तियों से अलग करती हैं।
- उच्च स्थायी लागत: अवसंरचना परियोजनाओं के लिए शुरुआत में भारी निवेश की जरूरत होती है। अगर इन्हें अधूरा छोड़ दिया जाए तो लागत वापस पाना मुश्किल होता है। ये लंबे समय तक चलने वाली और पूंजी-गहन परियोजनाएँ होती हैं।
- एकाधिकार: अवसंरचना सेवाएँ जैसे रेलमार्ग या राजमार्ग अक्सर किसी एक प्राधिकरण या संस्था के एकाधिकार में संचालित की जाती हैं। इसका मतलब है कि पूरे बाजार को एक ही प्रदाता (जैसे सरकार या कोई बड़ी कंपनी) बाकी कई प्रतिस्पर्धियों की तुलना में ज़्यादा कुशलता और कम खर्च में संचालित कर सकती है।
- गैर-प्रतिस्पर्धी खपत: कई बार अवसंरचना का उपयोग एक व्यक्ति द्वारा करने से दूसरे के लिए उसकी उपलब्धता कम नहीं होती। उदाहरण: सड़क की लाइट। इसलिए अवसंरचना आंशिक रूप से सार्वजनिक वस्तु (public good) होती है।
- मूल्य आधारित उपयोग तय करना: कुछ अवसंरचना सेवाओं तक पहुँच केवल शुल्क चुकाने पर मिलती है। उदाहरण: टोल रोड, बिजली। इससे इनका उपयोग कुछ हद तक सीमित या प्रतिबंधित हो जाता है।
- गैर-व्यापार योग्य: सड़कें, जलापूर्ति और बिजली जैसी अवसंरचना सेवाओं का उपभोग उसी स्थान पर करना पड़ता है जहां वह उपलब्ध होती है। उन्हें भौतिक वस्तुओं की तरह एक जगह से दूसरी जगह भेजना या निर्यात करना संभव नहीं होता है।
- आर्थिक बाह्य प्रभाव (Economic Externalities): जब कोई अवसंरचना संबंधी सुविधा (जैसे- मेट्रो ट्रेन) ट्रैफिक की भीड़ और प्रदूषण कम करती है, तो इसका फायदा न केवल मेट्रो इस्तेमाल करने वालों को होता है बल्कि उन सभी लोगों को भी होता है जो मेट्रो का इस्तेमाल नहीं करते।
2. आर्थिक विकास में अवसंरचना की भूमिका क्या है?
अवसंरचना और आर्थिक विकास का दो-तरफा संबंध होता है – अवसंरचना आर्थिक विकास को बढ़ावा देती है और और आर्थिक विकास, अवसंरचना में बदलाव और विस्तार लाता है।
आर्थिक विकास को बढ़ावा देता अवसंरचना क्षेत्रक | आर्थिक विकास से अवसंरचना को बढ़ावा |
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3. अवसंरचना की विफलता के क्या कारण हैं?
भारत में अवसंरचना संबंधी विफलताएं गवर्नेंस में खामियों, संस्थागत कमजोरियों, वित्तीय सीमाओं और तकनीकी कमियों के जटिल अंतर्संबंध से उत्पन्न होती हैं। ये व्यवस्थागत समस्याएँ गुणवत्ता को प्रभावित करती हैं, कार्यान्वयन में देरी लाती हैं और अक्सर असुरक्षित ढाँचों का निर्माण करती हैं, जिससे समग्र सुधारों की तात्कालिक आवश्यकता स्पष्ट होती है।
- गवर्नेंस से जुड़े मुद्दे
- खराब L1 कॉन्ट्रैक्ट प्रणाली (Flawed L1 Contract System): सबसे कम बोली लगाने वाले को कॉन्ट्रैक्ट देने की प्रणाली से अक्सर गुणवत्ता से समझौता होने की संभावना बनी रहती है।
- उदाहरण: मोरबी पुल हादसा, गुजरात (2022) – ऑरेवा कंपनी ने बिना इंजीनियरिंग विशेषज्ञता के मरम्मत की, जिससे 140 से अधिक लोगों की मौत हुई।
- कॉन्ट्रैक्ट और ऑडिट में पारदर्शिता की कमी: भ्रष्टाचार और कमजोर निगरानी असुरक्षित अवसंरचना का कारण बनती है।
- अकुशल गवर्नेंस और जवाबदेही: अवसंरचना का प्रबंधन कई एजेंसियों द्वारा किया जाता है, जिससे देरी और भ्रम की स्थिति उत्पन्न होती है।
- उदाहरण: दिल्ली में मानसून के दौरान जलभराव के लिए विभिन्न निकायों के बीच समन्वय की कमी जिम्मेदार है।
- खराब L1 कॉन्ट्रैक्ट प्रणाली (Flawed L1 Contract System): सबसे कम बोली लगाने वाले को कॉन्ट्रैक्ट देने की प्रणाली से अक्सर गुणवत्ता से समझौता होने की संभावना बनी रहती है।
- संस्थागत मुद्दे:
- कुशल जनशक्ति और विशेषज्ञता की कमी: प्राधिकरणों, सलाहकारों, वित्त प्रदाताओं, डेवलपर्स, ऑडिट एवं निगरानी से जुड़ी संस्थाओं में क्षमता की कमी के चलते त्रुटियां और भ्रामक जानकारी सामने आती हैं।
- उदाहरण: मोरबी पुल में जटिल कार्यों के लिए अकुशल मजदूर और गैर-इंजीनियरिंग कंपनियों का उपयोग किया गया था।
- कुशल जनशक्ति और विशेषज्ञता की कमी: प्राधिकरणों, सलाहकारों, वित्त प्रदाताओं, डेवलपर्स, ऑडिट एवं निगरानी से जुड़ी संस्थाओं में क्षमता की कमी के चलते त्रुटियां और भ्रामक जानकारी सामने आती हैं।
- कानूनी और विनियामकीय अड़चनें:
- कमजोर विनियामक फ्रेमवर्क: सड़क, हवाई अड्डा और बंदरगाह जैसे क्षेत्रकों में या तो कोई स्वतंत्र विनियामक नहीं है या कई विनियामक हैं (जैसे हवाई अड्डों के मामले में)। इनकी भूमिकाओं में दोहराव से मंजूरी मिलने में ज़्यादा समय लगता है और परियोजना का काम रुक जाता है, जिससे लागत बढ़ जाती है।
- भूमि अधिग्रहण और पर्यावरणीय मंज़ूरी: भूमि अधिग्रहण, मंजूरी मिलने, दैनिक सुविधाओं (जैसे बिजली/ पानी की लाइनें) को हटाने और राईट ऑफ वे या रास्ते का अधिकार जैसी प्रक्रियाओं में देरी होती है। ऐसा इसलिए क्योंकि अलग-अलग विभाग अपना-अपना क्षेत्र देखते हैं, बजाय इसके कि पूरी परियोजना के आर्थिक, सामाजिक और वित्तीय फायदे-नुकसान का समग्र आकलन किया जाए।
- वित्तीय चुनौतियां:
- फंडिंग की कमी: भारत को अपनी अवसंरचना की कमी पूरी करने के लिए लगभग 1.5 ट्रिलियन डॉलर की ज़रूरत है। महँगी उधारी (High Borrowing Costs) पूंजी निर्माण को प्रतिकूल रूप से प्रभावित करती है।
- उदाहरण: भारत की सकल स्थायी पूंजी निर्माण GDP की केवल 30% के आसपास है (आर्थिक सर्वेक्षण 2023–24 के अनुसार)।
- फंडिंग की कमी: भारत को अपनी अवसंरचना की कमी पूरी करने के लिए लगभग 1.5 ट्रिलियन डॉलर की ज़रूरत है। महँगी उधारी (High Borrowing Costs) पूंजी निर्माण को प्रतिकूल रूप से प्रभावित करती है।
- तकनीकी और क्रियान्वयन संबंधी विफलताएं:
- खराब डिज़ाइन और क्रियान्वयन: मिट्टी की जाँच, ड्रेनेज जैसी बुनियादी ज़रूरतों की अनदेखी करने से लंबे समय की समस्याएं पैदा होती हैं।
- उदाहरण: दिल्ली का प्रगति मैदान कॉरिडोर (2022–24) वॉटरप्रूफिंग और ड्रेनेज खराब होने से बार-बार भारी जलभराव का सामना करता है।
- रखरखाव और सुरक्षा ऑडिट की अनदेखी: पूरी हो चुकी परियोजनाओं की ठीक से देखरेख और ईमानदार सुरक्षा जांच नहीं की जाती है।
- उदाहरण: मुंबई का CSMT फुटओवर ब्रिज हादसा (2019) – इस पुल को हादसे से 6 महीने पहले सुरक्षित घोषित किया गया था।
- खराब डिज़ाइन और क्रियान्वयन: मिट्टी की जाँच, ड्रेनेज जैसी बुनियादी ज़रूरतों की अनदेखी करने से लंबे समय की समस्याएं पैदा होती हैं।
4. भारत के लिए विफल/ खराब अवसंरचना एक चुनौती क्यों है?
भारत में अवसंरचना की कमी आर्थिक विकास, जीवन स्तर और सामाजिक प्रगति के लिए एक गंभीर चुनौती पेश करती है। अपर्याप्त अवसंरचना के परिणाम दूरगामी होते हैं, जो विनिर्माण संबंधी उत्पादन और परिवहन लागत से लेकर स्वच्छ जल एवं स्वास्थ्य देखभाल सेवा जैसी आवश्यक सेवाओं तक पहुँच तक, हर चीज़ को प्रभावित करते हैं। भारत के लिए खराब अवसंरचना के कुछ प्रमुख नकारात्मक परिणाम इस प्रकार हैं:
आर्थिक विकास पर असर:
- निवेशकों की भावनाओं का क्षरण: खराब अवसंरचना के कारण व्यवसायों की लागत बढ़ जाती है और घरेलू तथा विदेशी निवेश हतोत्साहित होते हैं, जिससे समग्र आर्थिक विकास पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।
- उदाहरण: विश्व बैंक की 2023 की एक रिपोर्ट में कहा गया था कि लॉजिस्टिक्स की अक्षमताओं के कारण भारत की GDP को लगभग 14% का नुकसान हुआ है, जिससे प्रतिस्पर्धात्मकता प्रभावित हुई है।
- कृषि पर प्रभाव: सिंचाई, सड़कों और भंडारण की कमी से किसानों की आय और उत्पादकता कम हो जाती है।
- उदाहरण: कृषि मंत्रालय की 2024 की एक रिपोर्ट के अनुसार प्रतिवर्ष 92,000 करोड़ रुपये का फसलोत्तर नुकसान हुआ है, विशेष रूप से शीघ्र खराब होने वाली सब्जियों और फलों के मामले में।
- उद्योगों का खराब प्रदर्शन: MSME को अविश्वसनीय लॉजिस्टिक्स और बिजली के कारण संघर्ष करना पड़ रहा है।
- उदाहरण: 2023 में, तिरुपुर टेक्सटाइल क्लस्टर में MSME को बिजली की अनियमित आपूर्ति के कारण उत्पादकता में 20% की हानि उठानी पड़ी।
सामाजिक प्रभाव:
- ग्रामीण-शहरी असमानता में वृद्धि: ग्रामीण क्षेत्र कमजोर अवसंरचना से अधिक पीड़ित हैं, जिससे शहरी-ग्रामीण विभाजन और भी बदतर हो रहा है।
- उदाहरण: नीति आयोग की 2023 की एक रिपोर्ट से पता चला है कि लगभग 25,000 गांवों में बारहमासी सड़कें नहीं हैं, जिनमें से अधिकांश जनजातीय और पिछड़े क्षेत्रों में हैं।
- जीवन की खराब गुणवत्ता: बिजली की कमी, खराब सार्वजनिक परिवहन और खराब सड़कें दैनिक जीवन को प्रभावित करती हैं।
- उदाहरण: 2023 में उत्तर प्रदेश के बुंदेलखंड क्षेत्र में लगातार बिजली कटौती से स्कूली शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाएं काफी बाधित हुई थी।
गवर्नेंस:
- जनता के विश्वास की हानि: अवसंरचना संबंधी विफलताएं अकुशलता को दर्शाती हैं, तथा संस्थाओं में आम जान विश्वास को कम करती हैं।
- उदाहरण: 2023 में, बेंगलुरु में पॉटहोल्स के कारण हुई मौतों (5 वर्षों में 80 से अधिक मौतें) ने आम लोगों में आक्रोश और नागरिक विरोध को जन्म दिया।
आपदा संबंधी सुभेद्यताएं:
- मानवजनित आपदाएं: आपदाओं के दौरान कमजोर अवसंरचनाएं ढह जाती हैं, जिससे जान-माल की हानि हो सकती है।
- उदाहरण: असम में आई बाढ़ (2022) और सिक्किम GLOF (2023) के कारण 500 से अधिक पुलों और सड़कों को नुकसान पहुंचा था, जिसने आपदा-रोधी अवसंरचना में बड़ी खामियों को उजागर किया।
5. अवसंरचना की विफलता के नैतिक आयाम क्या हैं?
सामाजिक अनुबंध सिद्धांत के अनुसार, सरकार की जिम्मेदारी है कि वह नागरिकों को आवश्यक सार्वजनिक सेवाएँ (जैसे सड़क, पुल, बिजली, पानी, स्वास्थ्य आदि) उपलब्ध कराए। जब अवसंरचना संबंधी विफलताएं होती हैं तो यह सिर्फ तकनीकी नहीं बल्कि निम्नलिखित नैतिक मुद्दों को भी उत्पन्न करती है:
- जीवन और गरिमा के अधिकार का उल्लंघन: खराब अवसंरचना के कारण सुरक्षित आवास, स्वास्थ्य देखभाल और स्वच्छता जैसे बुनियादी अधिकारों से समझौता होता है, जो संविधान के अनुच्छेद 21 का उल्लंघन है।
- लापरवाही और जवाबदेही में कमी: बार-बार पुल ढहना या अस्पतालों में आग लगना परियोजना संबंधी नियोजन और क्रियान्वयन में लापरवाही एवं जवाबदेही की कमी को दर्शाता है।
- जनविश्वास की हानि: बार-बार अवसंरचना संबंधी विफलता सार्वजनिक संस्थानों और शासन प्रणालियों में जनता के विश्वास को कमजोर करती है, जिनका उद्देश्य नागरिकों को समान रूप से सेवा प्रदान करना है।
- भ्रष्टाचार और धन का दुरुपयोग: जब परियोजना के लिए आवंटित फंड का गलत इस्तेमाल या गबन हो जाता है, तो इसके परिणामस्वरूप खराब गुणवत्ता वाली या अपूर्ण अवसंरचना का निर्माण होता है।
- जन भागीदारी का अभाव: यदि अधोसंरचना योजना में स्थानीय समुदायों को शामिल नहीं किया जाता, तो यह खराब शासन का संकेत है और समावेशी निर्णय लेने की मूलभूत नैतिकता का उल्लंघन है।
6. भारत में अवसंरचना की विफलताओं को रोकने के लिए सरकार द्वारा क्या कदम उठाए गए हैं?
अवसंरचना की विफलताओं के पीछे प्रणालीगत मुद्दों को पहचानते हुए, भारत सरकार ने अवसंरचना में गुणवत्ता, सुरक्षा और लचीलापन या रेजिलिएंट को बढ़ाने के लिए कई बहुआयामी कदम उठाए हैं।
- गुणवत्ता मानकों को मजबूत करना:
- भारतीय मानक ब्यूरो (BSI) और इंडियन रोड कांग्रेस (IRC) जैसी संस्थाओं ने संरचनात्मक डिजाइन कोड को अपडेट किया है और प्रदर्शन-आधारित मानक प्रस्तुत किए हैं।
- वास्तविक समय में निगरानी के लिए आधुनिक प्रौद्योगिकियों (जैसे- ड्रोन, LiDAR, BIM) के उपयोग को बढ़ावा दिया जा रहा है।
- संस्थागत तंत्र और ऑडिट:
- पुलों, राजमार्गों और इमारतों जैसी महत्वपूर्ण अवसंरचना के लिए नियमित सुरक्षा ऑडिट को अनिवार्य किया गया है।
- अवसंरचना के जीवनचक्र की निगरानी के लिए राष्ट्रीय पुल सूची प्रणाली और भारतीय पुल प्रबंधन प्रणाली शुरू की गई है।
- क्षमता निर्माण और प्रशिक्षण:
- कौशल विकास मंत्रालय द्वारा पूर्व शिक्षा की मान्यता और प्रधान मंत्री कृषि विकास योजना जैसे कार्यक्रमों के माध्यम से इंजीनियरों एवं श्रमिकों के प्रशिक्षण का समर्थन किया जाता है।
- IITs और CPWD जैसे संस्थान संरचनात्मक सुरक्षा और विफलता के बाद फोरेंसिक विश्लेषण के लिए तकनीकी सहायता प्रदान करते हैं।
- वित्तीय निरीक्षण और परियोजना प्रबंधन:
- पी.एम. गति शक्ति राष्ट्रीय मास्टर प्लान के माध्यम बहु-एजेंसी समन्वय सुनिश्चित किया जाता है और प्रयासों के दोहराव से बचा जाता है।
- व्यवहार्यता अंतराल वित्त-पोषण और परिणाम-आधारित कॉन्ट्रैक्ट PPP में पारदर्शिता और जवाबदेही के मामले में सुधार करते हैं।
- अवसंरचना के विकास के लिए मिश्रित वित्त को बढ़ावा दिया जा रहा है।
- पर्यावरण और सुरक्षा संबंधी अनुपालन:
- बड़े पैमाने की परियोजनाओं के लिए पर्यावरण प्रभाव आकलन (EIA को अनिवार्य किया गया है ।
- श्रमिकों की सुरक्षा के लिए कारखाना अधिनियम और निर्माण-कार्य सुरक्षा नियमों के तहत सुरक्षा संबंधी मानदंड लागू किए जाते हैं।
- नागरिक भागीदारी और शिकायत निवारण:
- केन्द्रीकृत लोक शिकायत निवारण एवं निगरानी प्रणाली (CPGRAMS) और सामाजिक लेखा परीक्षा जैसे मंच नागरिकों से फीडबैक लेने और परियोजना की अनियमितताओं को उजागर करने में सहायक होते हैं।
7. अवसंरचना को मजबूत बनाने के लिए आगे की राह/ समाधान क्या हैं?
व्यावसायिक रूप से व्यवहार्य अवसंरचना परियोजनाओं के कार्यान्वयन में केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा सार्वजनिक-निजी भागीदारी (PPP) को एक महत्वपूर्ण नीतिगत साधन के रूप में स्वीकार किया गया है। इसलिए भारत में निजी निवेश को फिर से सक्रिय करने और मौजूदा PPP फ्रेमवर्क की विस्तृत समीक्षा की आवश्यकता है। इस संबंध में, अवसंरचना के लिए PPP मॉडल पर विजय केलकर समिति की सिफारिशें भारत में अवसंरचना को मजबूत बनाने में विशेष महत्व रखती हैं।
- PPP फ्रेमवर्क को फिर से सक्रिय करना (विजय केलकर समिति)
- स्वतंत्र विनियामक: हर उस क्षेत्रक के लिए स्वतंत्र विनियामक बनाए जाए जहाँ PPP लागू है, ताकि सभी का प्रदर्शन एक समान और बेहतर रहे।
- राष्ट्रीय PPP नीति: केंद्र सरकार को एक राष्ट्रीय PPP नीति विकसित और प्रकाशित करना चाहिए, जिसे संसद द्वारा अनुमोदित किया जाना चाहिए, ताकि एक आधिकारिक व्यवस्था को उपलब्ध कराया जा सके।
- परियोजना समीक्षा: विवाद समाधान के लिए एक अवसंरचना संबंधी PPP परियोजना समीक्षा समिति और एक फास्ट ट्रैक ट्रिब्यूनल के साथ संस्थागत क्षमता को मजबूत करना चाहिए।
- गवर्नेंस संबंधी सुधार:
- L1 कॉन्टैक्ट प्रणाली के बजाए बहु-मानदंड के चयन प्रणाली को अपनाना चाहिए। इसमें लागत, तकनीकी विशेषज्ञता, सुरक्षा संबंधी बेहतर ट्रैक रिकॉर्ड और पिछले प्रदर्शन के आधार पर बोलियों का मूल्यांकन किया जाना चाहिए।
- योजना, क्रियान्वयन, लेखा-परीक्षण और उल्लंघनों के लिए दंड के प्रवर्तन की देखरेख के लिए एक केंद्रीय अवसंरचना विनियामक प्राधिकरण का गठन किया जाना चाहिए।
- कानूनी और संस्थागत फ्रेमवर्क:
- प्रमाणित तृतीय पक्ष एजेंसियों के माध्यम से स्वतंत्र सुरक्षा ऑडिट तंत्र स्थापित करना चाहिए, जिसमें विशेष रूप से मानसून से पहले ऑडिट को अनिवार्य रूप से शामिल किया जाए।
- रिपोर्ट और सुरक्षा संबंधी ऑडिट को प्रकाशित करके, शिकायत पोर्टल शुरू करके और सूचना देने वालों को संरक्षण देकर सार्वजनिक भागीदारी एवं पारदर्शिता बढ़ाना चाहिए।
- वित्तीय और जोखिम प्रबंधन:
- यह सुनिश्चित करके जोखिम आवंटन और प्रबंधन को बढ़ावा देना कि PPP कॉन्ट्रैक्ट्स में जोखिम को उन पक्षों को सौंपा जाए जो उन्हें संभालने के लिए सबसे उपयुक्त हैं।
- संपूर्ण परियोजना के जीवनचक्र के लिए एक मानक जोखिम निगरानी फ्रेमवर्क विकसित करना चाहिए।
वैश्विक सर्वोत्तम उदाहरण
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निष्कर्ष
नई तकनीक, कुशल मानव संसाधन और सरकार की पी.एम. गति शक्ति मास्टर प्लान तथा राष्ट्रीय अवसंरचना पाइपलाइन जैसी योजनाओं के माध्यम से एकीकृत योजना के कारण मजबूत और टिकाऊ अवसंरचना पर सही रूप से ज़ोर दिया जा रहा है। पारदर्शी शासन, PPP फ्रेमवर्क को मजबूत करना, और हर परियोजना में सुरक्षा, स्थिरता और समावेशिता को शामिल करके, भारत के पास विश्वस्तरीय अवसंरचना बनाने का अवसर है। यह न सिर्फ आर्थिक विकास में तेजी लाएगा बल्कि करोड़ों लोगों के जीवन को भी बेहतर बनाएगा।
- Tags :
- सार्वजनिक-निजी भागीदारी (PPP)
- विजय केलकर समिति
- पर्यावरणीय प्रभाव आकलन
- डिजिटल अवसंरचना
- पी.एम. गति शक्ति राष्ट्रीय मास्टर प्लान