देहरादून में विनाशकारी बाढ़: एक चेतावनी
2025 के मानसून ने जम्मू-कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, पंजाब और उत्तराखंड सहित भारत के पर्वतीय राज्यों को बुरी तरह प्रभावित किया है। बादल फटने, भूस्खलन और बाढ़ जैसी प्राकृतिक आपदाओं ने सैकड़ों परिवारों को प्रभावित किया, तीर्थयात्राओं में बाधा डाली और फसलों को तबाह कर दिया। इससे जलवायु परिवर्तन और दुर्गम भूभाग से उत्पन्न चुनौतियाँ रेखांकित होती हैं।
कुशल आपदा प्रतिक्रिया
- आपदा प्रबंधन प्रतिक्रिया में सेना, वायु सेना, NDRF और स्थानीय स्वयंसेवकों सहित विभिन्न एजेंसियां शामिल थीं।
- उत्तराखंड में एक डिप्टी कमिश्नर बाढ़ प्रभावित क्षेत्र तक पहुंचने के लिए 36 घंटे पैदल चले।
- जम्मू-कश्मीर में अत्यधिक बारिश के कारण 140 से अधिक लोगों की जान चली गई, जिसके कारण आपातकालीन पुलों और हेलीकॉप्टरों जैसे संसाधनों की त्वरित तैनाती की गई।
- पंजाब में नदियों का जलस्तर उफान पर है तथा NDMA विनाशकारी बाढ़ को रोकने के लिए समन्वय कर रहा है।
- हिमाचल प्रदेश में 10,000 से अधिक फंसे हुए तीर्थयात्रियों को निकाला गया, जिससे प्रभावी समन्वय का प्रदर्शन हुआ।
तकनीकी एकीकरण
आपदा प्रतिक्रिया में प्रौद्योगिकी का उपयोग आवश्यक हो गया है, जिसमें ड्रोन, उपग्रह संचार और डॉप्लर रडार जैसे नवाचार महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं।
- NDMA और गृह मंत्रालय द्वारा अपनाई गई प्रौद्योगिकी को भविष्य की तैयारी के लिए बड़े पैमाने पर बढ़ाने की आवश्यकता है।
- GIS आधारित जोखिम मानचित्रण और ड्रोन का उपयोग करके पूर्वानुमानित निगरानी का विस्तार किया जाना चाहिए।
- कृत्रिम बुद्धिमत्ता से अचानक आने वाली बाढ़ और बादल फटने की भविष्यवाणी की सटीकता बढ़ाई जा सकती है।
जन जागरूकता और तैयारी
- नागरिक प्रायः इस बात से अनभिज्ञ रहते हैं कि अलर्ट का जवाब कैसे दिया जाए, जिससे बेहतर सार्वजनिक जागरूकता की आवश्यकता उजागर होती है।
- NDMA के आपदा मित्र जैसे कार्यक्रमों को समुदायों तक अधिक पहुंच की आवश्यकता है।
- मॉक ड्रिल को सांकेतिक अभ्यास के बजाय आवश्यक प्रशिक्षण माना जाना चाहिए।
पुनर्प्राप्ति और पुनर्निर्माण
आपदा के बाद पुनर्निर्माण के लिए आपदा के प्रति सहनशीलता को ध्यान में रखते हुए पुनर्निर्माण की आवश्यकता होती है, जिसमें टिकाऊ निर्माण प्रथाओं और नियमों के सख्त प्रवर्तन पर ध्यान केंद्रित किया जाता है।
- नदी तटबंधों को मजबूत करना और अवैध खनन पर नियंत्रण करना आवश्यक उपाय हैं।
- डॉप्लर रडार के नेटवर्क को बढ़ाना और प्रारंभिक चेतावनी प्रणालियों को स्थानीय बनाना महत्वपूर्ण कदम हैं।
- जिला आपदा प्रबंधन प्राधिकरणों में नागरिक समाज के स्थानीय ज्ञान का एकीकरण महत्वपूर्ण है।
कुल मिलाकर, 2025 के मानसून ने भारत की आपदा प्रबंधन प्रणाली की खूबियों और खामियों, दोनों को उजागर किया है। सैनिकों, राहतकर्मियों और प्रशासकों का सामूहिक प्रयास सराहनीय रहा है, लेकिन आपदा की तैयारी एक साझा ज़िम्मेदारी है जिसके लिए नागरिकों की सक्रिय भागीदारी ज़रूरी है।