युद्ध का युग: स्थायी शांति का मार्ग तैयार करना | Current Affairs | Vision IAS
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युद्ध का युग: स्थायी शांति का मार्ग तैयार करना

Posted 16 Sep 2025

Updated 20 Sep 2025

9 min read

भूमिका

भारतीय प्रधानमंत्री ने अनेक अवसरों पर और स्पष्ट रूप से ये कहा है कि "यह युद्ध का युग नहीं हैयह निःसंदेह विश्वभर के अरबों लोगों की साझी भावना है। फिर भी, रूस-यूक्रेन युद्ध और इजरायल-हमास युद्ध जैसे हालिया संघर्षों ने हिंसा की वेदी पर अनगिनत जानें ले ली हैं

इस लेख में युद्ध की अवधारणा का गहन विश्लेषण प्रस्तुत किया गया है तथा इसके ऐतिहासिक विकास की जांच करते हुए मानवता पर इसके प्रभाव की समीक्षा की गई है। इसके साथ ही युद्ध की पुनरावृत्ति के पीछे उत्तरदायी कारकों की पड़ताल और संस्थागत प्रतिक्रियाओं का विश्लेषण किया गया है। इसमें एक स्थाई और समावेशी शांति के सृजन के लिए महत्वपूर्ण सबक भी प्रस्तुत किया गया है।

1. युद्ध क्या है और इतिहास में युद्ध की परंपरा कैसे विकसित हुई है?

युद्ध एक संगठित सामूहिक हिंसा की प्रक्रिया है, यह दो या दो से अधिक समाजों के बीच संबंधों को प्रभावित करती है, या किसी समाज के भीतर शक्ति-संतुलन को प्रभावित करती है।

युद्ध के प्रकार

इवान लुआर्ड ने अपनी पुस्तक वार इन इंटरनेशनल सोसाइटी: ए स्टडी इन इंटरनेशनल सोसाइटी (1986) में "आक्रामक युद्धों" को चार श्रेणियों में विभाजित किया है:

  • विस्तारवादी युद्ध (Expansive Wars): ऐसे युद्ध जिनका उद्देश्य उन विदेशी भू-भागों पर विजय प्राप्त करना होता है जो पहले उनके नियंत्रण में नहीं थे।
    • उदाहरण: मंचूरिया और चीन पर जापानी आक्रमण तथा अंतर्युद्ध काल (Interwar Period) में जर्मनी और सोवियत संघ द्वारा विभिन्न यूरोपीय देशों पर आक्रमण।
  • समुद्धरणवादी युद्ध (Irredentist Wars): ऐसे युद्ध जो उन क्षेत्रों के खिलाफ लड़े जाते हैं जहां की आबादी मुख्यतः आक्रमणकारियों के ही नस्लीय समूह की होती है।
    • उदाहरण: नाज़ी जर्मनी द्वारा ऑस्ट्रिया और सूडेटेनलैंड पर कब्जा।
  • रणनीतिक युद्ध (Strategic Wars): ऐसे युद्ध जो किसी राष्ट्र द्वारा किसी वास्तविक या संभावित खतरे का मुकाबला करने के लिए सैन्य या लॉजिस्टिक बढ़त हासिल करने के उद्देश्य से लड़े जाते हैं।
    • उदाहरण: 1939 में फिनलैंड पर सोवियत हमला और स्वेज नहर संकट के कारण उत्पन्न संघर्ष में इजराइल का शामिल होना। 
  • दमनकारी युद्ध (Coercive Wars): ऐसे युद्ध जिनका उद्देश्य किसी संप्रभु सरकार की गतिविधियों पर नियंत्रण करना होता है।
  • उदाहरण: 1948 में इजरायल पर अरब राष्ट्रों का हमला और 1956 में हंगरी में हुए विद्रोह का दमन करने के लिए सोवियत हस्तक्षेप।

 

युद्ध की परंपरा का विकास (Evolution of Warfare)

इतिहास में युद्ध की परंपरा समाज में हुए परिवर्तनों और तकनीकी विकास के साथ निरंतर विकसित होती रही है (विस्तृत जानकारी के लिए इन्फोग्राफिक देखें)। कई संघर्ष ऐसे रहे हैं जिन्होंने वैश्विक युद्ध इतिहास को निर्णायक रूप से प्रभावित किया है। नीचे कुछ प्रमुख घटनाएं, उनकी विशेषताएं और परिणाम दिए गए हैं:

  • प्रथम विश्व युद्ध (1914–1918): 
    • राष्ट्रवाद, साम्राज्यवादी प्रतिस्पर्धा और सैन्य गठबंधनों के कारण यह युद्ध प्रारंभ हुआ।
    • इस युद्ध ने यूरोपीय वर्चस्व के कई शताब्दियों के युग का अंत कर दिया।
    • इसके परिणामस्वरूप रूस, जर्मनी और ऑस्ट्रिया-हंगरी जैसे देशों में राजशाही का अंत हुआ।
  • द्वितीय विश्व युद्ध (1939–1945): 
    • यह युद्ध फासीवाद, विस्तारवाद और वैचारिक अतिवाद से प्रेरित था।
    • इससे परमाणु युद्ध, होलोकॉस्ट और अभूतपूर्व नागरिक हानि हुई।
    • इसके बाद संयुक्त राष्ट्र की स्थापना हुई और विऔपनिवेशीकरण (Decolonization) की प्रक्रिया को गति मिली।
  • शीत युद्ध (1947–1991): 
    • यह द्विध्रुवीय संघर्ष था जिसका कारण अमेरिका और सोवियत संघ (USSR) के बीच वैचारिक टकराव था — पूंजीवाद बनाम साम्यवाद
    • यह संघर्ष कोरिया, वियतनाम, अफगानिस्तान और अफ्रीका में परोक्ष (प्रॉक्सी) युद्धों के रूप में सामने आया।
    • परमाणु हथियारों के रोकथाम की नीति ने प्रत्यक्ष टकराव को रोका, किंतु अंतर्राष्ट्रीय राजनीति का सैन्यीकरण कर दिया
  •  विऔपनिवेशीकरण के लिए संघर्ष: 
    • एशियाई और अफ्रीकी देशों ने औपनिवेशिक शक्तियों के विरुद्ध स्वतंत्रता के लिए युद्ध लड़े, जैसे- अल्जीरियाई स्वतंत्रता संग्राम और वियतनाम युद्ध।
    • इन संघर्षों ने उत्तर-औपनिवेशिक पहचान और विदेश नीति की दिशा को आकार दिया।
  • शीत युद्ध के बाद के संघर्ष: 
    • बाल्कन क्षेत्र में नृजातीय युद्ध, रवांडा में नरसंहार, मध्य-पूर्व में सैन्य हस्तक्षेप और रूस-यूक्रेन के बीच चल रहा संघर्ष — ये सभी शीत युद्ध के बाद की विश्व व्यवस्था में उभरे प्रमुख संघर्ष हैं।

2. युद्ध मानवता को कैसे प्रभावित करता है?

युद्ध समाज, अर्थव्यवस्था और पर्यावरण पर अत्यंत विनाशकारी और दीर्घकालिक प्रभाव डालता है, जिनमें मुख्य रूप से निम्नलिखित शामिल हैं:

  • आर्थिक प्रभाव: 
    • आपूर्ति श्रृंखला में बाधा: उदाहरण के लिए, रूस-यूक्रेन युद्ध ने वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला को बाधित किया, जिससे महत्वपूर्ण व्यापार मार्ग अवरुद्ध हुए, ऊर्जा और अनाज जैसी आवश्यक वस्तुओं की भारी कमी हो गई और इसके चलते लॉजिस्टिक लागत और मुद्रास्फीति में तीव्र वृद्धि हुई।
    • राष्ट्रीय अर्थव्यवस्थाओं पर प्रभाव: उदाहरण के लिए, रूस-यूक्रेन संघर्ष के पहले ही वर्ष में यूक्रेन को GDP के 30–35% तक का नुकसान हुआ, जिससे यूक्रेन के इतिहास की सबसे बड़ी आर्थिक मंदी आई।
  • सांस्कृतिक क्षरण: युद्ध और टकराव संस्कृति को गहराई से प्रभावित करते हैं — विरासत स्थलों और कलाकृतियों का नुकसानसांस्कृतिक विमर्श का दुरुपयोग और भय का वातावरण उत्पन्न होता है, जो सामाजिक संबंधों को कमजोर करता है।
  • राजनीतिक बदलाव: कुछ युद्धोत्तर समाजों में युद्ध के कारण तानाशाही शासन का उदय हुआ है और लोकतांत्रिक मूल्यों में गिरावट देखी गई है।
    • वैश्विक शांति सूचकांक के अनुसार, 2014 से प्रतिवर्ष वर्ष वैश्विक शांति में गिरावट आई है।
  • मानवीय संकट: युद्ध के कारण जन हानि, विस्थापन और शरणार्थियों का बड़ी संख्या में पलायन होता है, जिससे जनसांख्यिकीय ढांचे में बदलाव होता है और संसाधनों (प्राकृतिक और आर्थिक) पर भारी दबाव पड़ता है।
    • संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी उच्चायोग (UNHCR) के अनुसार, अप्रैल 2025 के अंत तक 12.2 करोड़ से अधिक लोग पूरी दुनिया में उत्पीड़न, संघर्ष, हिंसा या मानवाधिकार हनन के कारण जबरन विस्थापित हो चुके थे। 
  • पर्यावरण का विनाश: युद्ध और सैन्य गतिविधियां जलवायु परिवर्तन को गंभीर रूप से बढ़ावा देती हैं — भूमि, जल और वायु में संदूषण और प्रदूषण फैलता है।
    • उदाहरण के लिए, इराक युद्ध के दौरान मात्र चार वर्षों में लगभग 14.1 करोड़ टन CO₂ उत्सर्जित हुआ।
  • मनोवैज्ञानिक आघात: युद्ध क्षेत्रों के संपर्क में आए लोगों को PTSD (पोस्ट ट्रॉमेटिक स्ट्रेस डिसऑर्डर), गंभीर अवसादग्रस्तता विकार और सामान्यीकृत चिंता संबंधी विकार (एंग्जायटी डिसऑर्डर) जैसी मानसिक बीमारियों का गंभीर खतरा रहता है।
  • कमजोर वर्गों पर असमान प्रभाव: सशस्त्र संघर्ष पहले से मौजूद असमानताओं को गंभीर रूप से बढ़ा देता है, क्योंकि यह व्यापक विस्थापन, मृत्यु दर में वृद्धि, यौन और लिंग आधारित हिंसा, गंभीर कुपोषण और स्वास्थ्य सेवाओं सहित आवश्यक सेवाओं में अत्यधिक बाधा उत्पन्न करता है।
    • उदाहरण के लिए, 2023 में संघर्ष के कारण मरने वाले प्रत्येक दस लोगों में से चार महिलाएं थीं।
  • मानवाधिकारों का उल्लंघन: नागरिकों पर बमबारी (यूक्रेन में), बंधकों पर अत्याचार (हमास द्वारा) और ड्रोन हमले (अज़रबैजान द्वारा घातक स्वायत्त हथियार प्रणाली (LAWS) का उपयोग) — ये सभी न्यायसंगत युद्ध सिद्धांत और अंतर्राष्ट्रीय मानवीय कानून (IHL) का उल्लंघन करते हैं।

न्यायसंगत युद्ध सिद्धांत और अंतर्राष्ट्रीय मानवीय कानून क्या हैं?

न्यायसंगत युद्ध सिद्धांत:

  • ये सिद्धांत, युद्ध के दौरान ‘नैतिक संयम’ बरतने का आधार प्रदान करते हैं।
  • इसकी शास्त्रीय जड़ें यूनानी और रोमन विचारों में मिलती हैं और इसे व्यवस्थित रूप से ईसाई धर्मगुरुओं जैसे संत ऑगस्टिन और थॉमस एक्विनास ने विकसित किया था।
    • भारतीय दर्शन और धार्मिक ग्रंथों में भी न्यायसंगत युद्ध की अवधारणाएं मौजूद हैं — विशेष रूप से वैदिक साहित्य और महाभारत में, जहां धर्मयुद्ध के माध्यम से न्यायपूर्ण युद्ध के सिद्धांतों पर बल दिया गया है।
  • यह तीन श्रेणियों में विभाजित है, जिनमें प्रत्येक की अपनी नैतिक सिद्धांतों की एक श्रृंखला है: युद्ध के प्रति न्याय (jus ad bellum), युद्ध के दौरान न्याय (jus in bello) और युद्ध के बाद न्याय (justice after war)।
  • अंतर्राष्ट्रीय मानवीय कानून (IHL):
    • IHL, जिसे युद्ध का कानून भी कहा जाता है,यह  युद्ध के कारण होने वाले मानवीय कष्टों को कम करने के लिए बनाए गए नियमों का एक समूह है।
    • मुख्य उद्देश्य: उन लोगों की सुरक्षा करना जो युद्ध में भाग नहीं ले रहे हैं (जैसे आम नागरिक) और युद्ध में प्रयुक्त हथियारों और तरीकों को नियंत्रित करना।
    • IHL की नींव जेनेवा और हेग सम्मेलन और प्रथागत अंतर्राष्ट्रीय कानूनों में निहित है।
    • IHL के प्रमुख सिद्धांत:
      • विशिष्टता (युद्ध में सैनिकों और आम नागरिकों के बीच स्पष्ट अंतर बनाए रखना),
      • अनुपातिकता (कोई भी सैन्य कार्रवाई तब उचित मानी जाती है जब उससे होने वाली नागरिक हानि सैन्य लाभ से अधिक न हो) और
      • मानवता (अनावश्यक पीड़ा पर रोक)।
    • यह कानून अंतर्राष्ट्रीय और गैर-अंतर्राष्ट्रीय दोनों प्रकार के संघर्षों पर लागू होता है।
    • विशेष ध्यान देने योग्य बात यह है कि IHL यह निर्धारित नहीं करता है, कि युद्ध वैध है या नहीं — बल्कि यह केवल यह निर्धारित करता है कि युद्ध लड़ा कैसे जा रहा है

3. युद्ध को नियंत्रित और विनियमित करने के लिए वर्तमान अंतर्राष्ट्रीय प्रयास क्या हैं?

द्वितीय विश्व युद्ध के बाद, संघर्षों को शांतिपूर्ण तरीके से सुलझाने और भविष्य में युद्धों को रोकने के लिए कई प्रयास किए गए।

  • संस्थागत संरचना: 1945 के बाद, विभिन्न उद्देश्यों के साथ कई अंतर्राष्ट्रीय संस्थाएं स्थापित की गईं:
    • संयुक्त राष्ट्र (United Nations) और उससे संबंधित संस्थाएं: वैश्विक समन्वय के माध्यम से भविष्य में युद्धों को रोकने के लिए।
      • संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC): यह परिषद् शांति के लिए मौजूद खतरों की पहचान करती है, शांतिपूर्ण समाधान का आह्वान करती है, प्रतिबंध लगाती है और अन्य उपाय करती है ताकि युद्ध को रोका जा सके।
      • संयुक्त राष्ट्र शांति सेना: संयुक्त राष्ट्र द्वारा किए गए अन्य प्रयासों के साथ कार्य करते हुए संघर्ष रोकथाम, शांतिवार्ता, शांति बनाए रखने और शांति की स्थापना में भूमिका निभाती है।
    • अंतर्राष्ट्रीय आपराधिक न्यायालय (ICC): रोम संविधि (Rome Statute, 1998) के तहत स्थापित यह अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय, ऐसे व्यक्तियों का न्याय करता है जिन्होंने अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर गंभीर अपराध किए हों।
    • बहुपक्षीय समन्वय: उदाहरण-
      • NATO और वारसा संधि (Warsaw Pact): सैन्य गठबंधन जिनका उद्देश्य युद्ध की रोकथाम करना था।
      • गुट निरपेक्ष आंदोलन (NAM): यह दक्षिण-दक्षिण सहयोग को बढ़ावा देने वाला एक मंच है।
    • क्षेत्रीय संगठन: जैसे कि आसियान (ASEAN)अफ्रीकी संघ (African Union)सार्क (SAARC) आदि — जो स्थानीय सुरक्षा और विकास संबंधी चुनौतियों का समाधान करते हैं।
  • कानून और सम्मलेन (कन्वेंशन): युद्ध संबंधी कानून और अंतर्राष्ट्रीय मानवीय कानून (IHL) से संबंधित कुछ प्रमुख अंतर्राष्ट्रीय सम्मलेन (कन्वेंशन) हैं—
    • जेनेवा सम्मेलन: यह युद्ध के दौरान मानवीय व्यवहार के मानक निर्धारित करने वाली संधियों का एक समूह है। इसका उद्देश्य उन लोगों की रक्षा करना है जो युद्ध में सक्रिय रूप से सहभागी नहीं हैं।
    • हेग सम्मेलन: युद्ध में प्रयुक्त तरीकों और हथियारों को विनियमित करने वाली अंतर्राष्ट्रीय संधियां, जिनमें हथियारों का उपयोग और क्षेत्र पर कब्जा भी शामिल है।
    • नरसंहार पर सम्मेलन: नरसंहार को अपराध के रूप में परिभाषित करता है और राष्ट्रों को इसे रोकने के लिए बाध्य करता है।
  • हथियारों को नियंत्रित करने के लिए बहुपक्षीय संधियां: अनेक संधियां ऐसी हैं जो विनाशकारी हथियारों की विभिन्न श्रेणियों को प्रतिबंधित करती हैं:
    • नाभिकीय निरस्त्रीकरण और अप्रसार के लिए संधियां: नाभिकीय हथियारों के अप्रसार पर संधि (NPT),नाभिकीय हथियारों पर प्रतिबंध संबंधी संधि (TPNW), आंशिक परीक्षण प्रतिबंध संधि (PTBT) और व्यापक नाभिकीय परीक्षण प्रतिबंध संधि (CTBT)
    • मिसाइल और संबंधित तकनीकों के प्रसार को रोकने के लिए: हेग आचार संहिता (HCOC); मिसाइल प्रौद्योगिकी नियंत्रण व्यवस्था (MTCR) आदि।
    • अन्य संधियां: जैविक हथियार सम्मलेन (BWC); रासायनिक हथियार सम्मलेन आदि।

मौजूदा प्रयासों के बावजूद, हाल के वर्षों में कई बड़े संघर्ष हुए हैं। 

4. विश्वभर में युद्धों के पुनरुत्थान के लिए कौन से कारक जिम्मेदार हैं?

कार्ल वॉन क्लाजविट्ज़ की प्रसिद्ध पुस्तक “ऑन वार (On War) (1832)” से उनका सबसे मशहूर सिद्धांत है — “स्ट्रेंज ट्रिनिटी” (Strange Trinity), जो युद्ध को तीन मूलभूत शक्तियों के संयोजन के रूप में परिभाषित करता है (इन्फोग्राफिक देखें)। इस ट्रिनिटी के अनुसार युद्ध स्वभाव से ही राजनीतिक होता है, जिसमें तर्कसंगत उद्देश्य होते हैं, किंतु यह अव्यवहारिक भावनाओं और अप्रत्याशित अराजकता से भी भरा होता है और यह नीतिगत निरंतरता का एक अन्य माध्यम है। निम्नलिखित कारक हाल के संघर्षों के लिए प्रमुख रूप से जिम्मेदार रहे हैं:

  • अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं की असफलता: उदाहरण के लिए, संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) की निर्णय-निर्माण की प्रक्रिया अक्सर गतिरोध में समाप्त हो जाती है क्योंकि पांच स्थायी सदस्यों के पास वीटो शक्ति होती है।
  • कार्यान्वयन की समस्याएं: अंतर्राष्ट्रीय कानून घरेलू कानून की तुलना में कम लागू किया जाता है क्योंकि कोई वैश्विक शासी संस्था या पुलिस बल उपलब्ध नहीं है। इसकी प्रभावशीलता इस बात पर निर्भर करती है कि राष्ट्र किन-किन संधियों को स्वीकार करते हैं और उनका पालन करते हैं।
  • सीमा विवाद: सीमावर्ती देशों के बीच जटिल और अक्सर विवादास्पद संबंध होते हैं, जो यूक्रेन, अजरबैजान-अर्मेनिया जैसे संघर्षों का कारण बन सकते हैं।
  • बदलती विश्व व्यवस्था: ऐसा माना जाता है कि अमेरिका जैसे देशों द्वारा वैश्विक नेतृत्व में बनाए गए सत्ता शून्य (पॉवर वैक्यूम) अन्य शक्तियों को अपना प्रभाव क्षेत्र बढ़ाने का अवसर देते हैं, जिससे क्षेत्रीय प्रतिद्वंद्विताएं और संघर्ष बढ़ सकते हैं।
  • नृजातीय और धार्मिक विविधता: गहरे और अनसुलझे सामाजिक विभाजन और वैमनस्यता संघर्ष को बढ़ावा देते हैं, जैसे कि रवांडा नरसंहार, म्यांमार का गृह युद्ध और कांगो लोकतांत्रिक गणराज्य के संघर्ष।
  • संसाधनों से संबंधित कारक: जल (सीरिया, यमन) और भूमि (सूडान) जैसे संसाधनों की कमी संघर्ष को बढ़ावा दे सकती है, जबकि मूल्यवान संसाधनों की उपस्थिति (सिएरा लियोन, कांगो लोकतांत्रिक गणराज्य, अंगोला) सामाजिक तनाव को और बढ़ा सकती है।
  • महाशक्तियों द्वारा रणनीतिक और राजनीतिक निर्णय: शीत युद्ध के परोक्ष (प्रॉक्सी) टकराव और शीत युद्ध के बाद के आतंकवाद के खिलाफ युद्ध बड़े पैमाने पर सैन्य संघर्ष और प्रौद्योगिकी एवं हथियारों की दौड़ का कारण बने।
  • घरेलू और विदेशी संघर्ष के बीच संबंध: "सेफ्टी वाल्व" और "स्पिल-ओवर" प्रभाव इस बात से जुड़े हैं कि आंतरिक तनाव कैसे विदेशों में संघर्ष की ओर बढ़ सकते हैं या उनका कारण बन सकते हैं, जैसे- यूक्रेन संघर्ष।
  • नई युद्ध तकनीकों का उद्भव: युद्ध के कानून पारंपरिक राष्ट्र-राष्ट्र संघर्षों के लिए बनाए गए थे, जिससे आधुनिक संघर्षों में जैसे कि मिलिशिया, गैर-राज्य समूह, हाइब्रिड युद्ध आदि में उनका पालन करना कठिन हो जाता है।

आधुनिक तकनीकों के हस्तक्षेप ने युद्ध को कैसे बदल दिया है?

आधुनिक तकनीकों जैसे ड्रोन, घातक स्वायत्त हथियार प्रणालियां (LAWS), लेज़र हथियार आदि का युद्ध में प्रयोग होने से युद्ध अधिक जटिल और घातक बन गया है। इनसे जुड़े मुद्दे अब वास्तविक दुनिया के संघर्षों में स्पष्ट रूप से सामने आ रहे हैं और इसके गंभीर परिणाम देखने को मिल रहे हैं:

  • बल प्रयोग पर पारंपरिक प्रतिबंधों का क्षरण: उदाहरण के लिए, सशस्त्र ड्रोन जैसे MQ-9 रीपर (Reaper) का उपयोग, बिना अपने सैनिकों को खतरे में डालेकिसी देश को यह अनुमति देता है कि वह संघर्ष क्षेत्र में हमले कर सके। 
  • स्वचालित युद्ध में जवाबदेही का संकट: स्वचालित हथियार हत्या को अमानवीय बना देते हैं, जिससे मानवीय गरिमा और "नैतिक एवं कानूनी जवाबदेही का अंतर" जैसे गंभीर प्रश्न उठते हैं।
  • हाइब्रिड (असममित) युद्ध: यह एक ऐसी रणनीति है जो पारंपरिक सैन्य तरीकों को अपारंपरिक उपायों के साथ मिलाकर राजनीतिक या रणनीतिक लक्ष्यों को बिना पूर्ण युद्ध के हासिल करने का प्रयास करती है।
    • उदाहरण: रूस-यूक्रेन संघर्ष के दौरान साइबर हमलों, अफवाहों और प्रचार अभियानों का व्यापक उपयोग।
  • साइबर युद्ध की आर्थिक लागत: उदाहरण: 2017 में यूक्रेन में हुए रैनसमवेयर हमले ने वैश्विक कंपनियों और कई देशों की सार्वजनिक सेवाओं को बंद कर दिया, जिसमें यूक्रेन के अस्पताल भी शामिल थे।
  • "एट्रीब्यूशन प्रॉब्लम" (जिम्मेदार की पहचान की कठिनाई) यानी हमलावर की पहचान निश्चित रूप से करना बेहद कठिन होता है, जिससे अंतर्राष्ट्रीय कानून लागू करना या दोषियों को जवाबदेह ठहराना और भी जटिल हो जाता है।

5. हम समावेशी शांति कैसे स्थापित कर सकते हैं?

सून त्ज़ू की रणनीतिक तनाव-न्यूनता (strategic de-escalation), चाणक्य की बहुआयामी राजनयिक नीतियां और मैकियावेली की नैतिकता-रहित यथार्थवादी सोच — ये तीनों ही इस बात की सीख देते हैं कि सबसे चिरस्थायी विजय वह होती है, जो बुद्धिमत्ता, गठबंधनों और कूटनीति की कला में निपुणता के माध्यम से प्राप्त होती है। इनका सामूहिक तर्क है कि युद्ध, राजनीति का ही एक विस्तार है और इसलिए भविष्य की दिशा तय करने के लिए हमें एक दूरदर्शी दृष्टिकोण अपनाना होगा — जो प्रमुख पक्षकारों की भूमिका पर केंद्रित हो।

  • अंतर्राष्ट्रीय संगठनों की भूमिका: संयुक्त राष्ट्र (UN), रेड क्रॉस की अंतर्राष्ट्रीय समिति (ICRC) और विभिन्न गैर-सरकारी संगठन (NGOs) भविष्य के संघर्षों के मानवीय प्रभाव को कम करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
    • संयुक्त राष्ट्र में सुधार: सुरक्षा परिषद की सदस्यता का विस्तार करना, वीटो शक्तियों के दुरुपयोग को रोकना और संयुक्त राष्ट्र की कार्यप्रणाली में पारदर्शिता सुनिश्चित करना, ताकि नई प्रकार की चुनौतियों का बेहतर ढंग से सामना किया जा सके।
    • अंतर्राष्ट्रीय मानवीय कानून (IHL) को बनाए रखना और लागू करना: संयुक्त राष्ट्र को निगरानी संस्था के रूप में कार्य करना चाहिए, IHL के उल्लंघनों का दस्तावेजीकरण करना और राज्यों तथा गैर-राज्य कारकों को उनके कृत्यों के लिए जवाबदेह ठहराना चाहिए।
    • मानवीय सहायता प्रदान करना: संघर्ष के नए रूपों के अनुसार, अपनी मानवीय प्रतिक्रिया को अपनाना, प्रौद्योगिकी का उपयोग करके विस्थापित आबादी तक पहुंचना और खतरनाक परिस्थितियों में सहायता पहुंचाना।
    • परिवर्तन की वकालत करना: कुछ स्वायत्त हथियारों पर पूर्ण प्रतिबंध और साइबर युद्ध पर कड़े नियमों के लिए सक्रिय रूप से अभियान चलाना, वैश्विक जनचेतना को आकार देना और सरकारों पर कार्रवाई के लिए दबाव बनाना।
  • सरकारों की भूमिका:
    • नियमन और नियंत्रण: नई तकनीकों जैसे कि घातक स्वायत्त हथियार प्रणालियों (LAWS) के उपयोग को नियंत्रित करने के लिए सक्रिय रूप से राष्ट्रीय नीतियां बनाना और उन्हें लागू करना, ताकि जीवन और मृत्यु से जुड़े सभी निर्णयों में मानवीय निगरानी और जवाबदेही सुनिश्चित की जा सके।
    • सहनशीलता को बढ़ाना: महत्वपूर्ण अवसंरचना पर साइबर हमलों और भ्रामक प्रचार अभियानों जैसे हाइब्रिड खतरों के विरुद्ध नागरिक तैयारी और राष्ट्रीय क्षमता में निवेश करना।
    • रणनीति का एकीकरण: सुरक्षा के लिए "समग्र-सरकारी" दृष्टिकोण अपनाना, जिसमें सैन्य, आर्थिक, कूटनीतिक और सूचना संबंधी साधनों को मिलाकर बहुआयामी खतरों का मुकाबला किया जा सके।
  • राजनयिकों की भूमिका: 
    • संवादहीनता को कम करना: ऐसी नई अंतर्राष्ट्रीय संधियों और कानूनी ढांचे के लिए वार्ता की शुरुआत करना, जो युद्ध में AI जैसी तकनीकों को नियंत्रित करें और मौजूदा अंतर्राष्ट्रीय मानवीय कानून (IHL) की खामियों को दूर करें।
    • नई तकनीकों में दक्षता हासिल करना: "डेटा कूटनीति" में निपुण बनना, जिसमें डेटा विश्लेषण और ओपन सोर्स बुद्धिमत्ता का उपयोग कर संघर्ष संभावित क्षेत्रों की पहचान करना और भ्रामक सूचनाओं का पर्दाफाश करना शामिल है।
    • सक्रिय मध्यस्थता करना: तनाव को पूर्ण युद्ध में बदलने से पहले उसे कम करने के लिए निरंतर और कम प्रचार वाले मध्यस्थता प्रयासों में संलग्न रहना, जो "ग्रे ज़ोन" संघर्षों के युग में एक महत्वपूर्ण कार्य है।

5.1 युद्ध और शांति पर दार्शनिक पहलू

युद्ध और शांति पर दार्शनिक पहलू

विचारकसून त्ज़ूचाणक्यमैकियावेली
प्रमुख कृति

द आर्ट ऑफ वॉर

  • यह एक प्राचीन चीनी सैन्य मार्गदर्शिका है, यह विजय प्राप्त करने के लिए, सीधे संघर्ष के स्थान पर रणनीति, छल और बुद्धिमत्ता का उपयोग करने पर जोर देती है।

अर्थशास्त्र

  • राजनीति, आर्थिक नीति, सैन्य रणनीति और राज्य प्रशासन पर एक व्यापक ग्रंथ।

द प्रिंस 

  • यह एक राजनीतिक ग्रंथ है जो बताता है कि एक शासक राजनीतिक सत्ता को कैसे प्राप्त कर सकता है और उसे बनाए रख सकता है।
युद्ध और कूटनीति पर विचार
  • यह ग्रंथ स्वयं को और अपने शत्रुओं को समझने के महत्व को रेखांकित करता है, साथ ही जासूसों और मनोवैज्ञानिक युद्ध के उपयोग पर जोर देता है।
  • यह भौतिक संघर्ष की बजाय चालाकी और रणनीति को प्राथमिकता देता है, जैसे दुश्मन के गठजोड़ को तोड़ना और उनकी सेनाओं को एकजुट होने से रोकना। 
  • एक परिष्कृत कूटनीतिक अभियानों की स्पष्ट और सटीक पहुंच पर जोर देता है, जिसका उपयोग किसी एकल युद्ध से पहले विरोधी को अलग-थलग और कमजोर करने के लिए अनुनय, छल एवं सहयोगियों को तैयार करने के लिए किया जाता है।
  • यह ग्रंथ सत्ता और स्थिरता बनाए रखने के लिए शासन और कूटनीति में व्यावहारिक और कभी-कभी कठोर दृष्टिकोण की वकालत करता है।
  • इसमें युद्ध और शांति को राजनीतिक उद्देश्य के लिए परस्पर बदलने योग्य साधन माना गया है।
  • यह विदेश नीति के लिए एक व्यापक ढांचा प्रदान करता है जिसे षाड्गुण्य नीति या छःगुण नीति के रूप में जाना जाता है।
  • रणनीतिक यथार्थवाद को बढ़ावा देता है, जो इस समझ पर आधारित है कि एक शक्तिशाली राज्य को जटिल संबंधों के जाल में सफलतापूर्वक संचालन करना आना चाहिए और अपने हितों को सुरक्षित करने तथा अपनी शक्ति बढ़ाने के लिए कूटनीति का उपयोग करना चाहिए
  • इस ग्रंथ के अनुसार, एक नेतृत्वकर्ता को लोगों के मन में अपने प्रति सम्मान के साथ-साथ भय भी पैदा करना चाहिए और राजनीति में साध्य ही साधन को उचित ठहराता है।
  • कूटनीतिक चालबाजी की आवश्यकता को स्वीकार करता है।
  • यह ग्रंथ गठबंधनों के महत्व पर जोर देता है और एक शासक को "लोमड़ी" की तरह होना चाहिए जो जाल पहचान सके (कूटनीतिक चतुराई का रूप) और "सिंह" होना चाहिए जो भेड़ों को डराए
  • कूटनीति कोई नैतिक संहिता नहीं है, बल्कि अपनी सत्ता को सुरक्षित करने और उसे बनाए रखने के लिए एक व्यावहारिक साधन है।
उनकी प्रमुख कृतियों से उद्धरण

“युद्ध की सर्वोच्च कला है बिना लड़े दुश्मन को पराजित करना।”

“प्रत्येक युद्ध छल पर आधारित होता है।”

“यदि तुम शत्रु को और स्वयं को समझते हो, तो सौ युद्धों के परिणाम से भी डरने की जरूरत नहीं है।”

“कोई भी राष्ट्र लंबे समय तक चले युद्ध से लाभान्वित नहीं हुआ है।”

“बुद्धिमान योद्धा युद्ध से बचता है।”

“वही विजयी होता है जो जानता है कि कब लड़ना है और कब नहीं।”

“अपने सैनिकों को अपने प्रिय पुत्रों जैसा मानो और वे आपके साथ गहरी से गहरी घाटी में भी उतर जाएंगे।”

”जब आप किसी सेना की घेराबंदी करो, तो उसे निकलने का रास्ता भी दो। हताश शत्रु को बहुत अधिक प्रताणित मत करो।”

 

 

“व्यक्ति को अत्यधिक ईमानदार नहीं होना चाहिए। सीधे पेड़ पहले काटे जाते हैं और सीधे (ईमानदार) लोग पहले सताए जाते हैं।”

“प्रत्येक पड़ोसी राज्य शत्रु होता है और शत्रु का शत्रु मित्र होता है।”

“कोई भी कार्य शुरू करने से पहले तीन प्रश्न स्वयं से पूछो — मैं यह क्यों कर रहा हूँ, इसके परिणाम क्या होंगे और क्या मैं इसमें सफल हो पाऊंगा? जब इन तीनों का संतोषजनक उत्तर मिल जाए तभी आगे बढ़ें।”

“धनुर्धर द्वारा छोड़ा गया बाण एक व्यक्ति को मार भी सकता है और नहीं भी, परंतु बुद्धिमान लोगों द्वारा रची गई व्यूह-रचना गर्भ में पल रहे शिशुओं को भी मार सकती है।”

“शत्रु का विनाश मनुष्यों, संसाधनों और धन की भारी हानि के मूल्य पर भी किया जाना चाहिए।”

“जब तक शत्रु की कमजोरी ज्ञात न हो, तब तक उससे मैत्रीपूर्ण संबंध बनाए रखने चाहिए।”

 

“यदि आप दोनों नहीं कर सकते हैं, तो लोगों के मन में सम्मान के बजाय भय पैदा करना बेहतर है।”

“हर कोई देखता है कि तुम बाहर से कैसे हो, पर बहुत कम लोग जानते हैं कि वास्तव में आप कैसे हो।”

“चापलूसी से खुद को बचाने का और कोई तरीका नहीं है सिवाय इसके कि लोगों को यह समझा दिया जाए कि सच बोलने से आपको बुरा नहीं लगेगा।”

“किसी शासक की बुद्धिमत्ता का पहला मूल्यांकन उसके आस-पास के लोगों को देखकर किया जा सकता है।”

“जिसे छल से जीता जा सकता है, उसे बल से जीतने का प्रयास कभी मत करो।”

“यदि किसी व्यक्ति को चोट पहुंचानी हो, तो इतनी गंभीर पहुंचाओ कि वह बदला लेने की स्थिति में न रहे।”

 

 

 

6. भारत युद्ध के युग का कैसे मुकाबला कर रहा है?

भारत संघर्षों के समाधान के लिए मुख्यतः संवाद और कूटनीति में विश्वास रखता है। वह इस विचार का मजबूत पक्षधर है कि वैश्विक व्यवस्था अंतर्राष्ट्रीय कानून, संयुक्त राष्ट्र चार्टर और राष्ट्रों की क्षेत्रीय अखंडता और संप्रभुता के सम्मान पर आधारित होनी चाहिए। वर्तमान में, भारत अपनी रणनीतिक स्थिति को कूटनीति, आधुनिकीकरण और क्षेत्रीय सहयोग के संयोजन के साथ अनुकूलित कर रहा है।

  • कूटनीतिक रणनीति: 
    • कूटनीतिक संतुलन का प्रयास: उदाहरण के लिए, भारत की गुट-निरपेक्ष स्थिति और यूक्रेन तथा रूस दोनों के साथ स्थापित राजनयिक संबंध उसे
  •  क्षेत्र में शांति की वकालत करने के लिए एक मजबूत आधार प्रदान करते हैं।
  • 5-S दृष्टिकोण (सम्मान, संवाद, सहयोग, शांति, समृद्धि): यह भारत की स्वतंत्र विदेश नीति को दर्शाता है और उसे एक संभावित शांति मध्यस्थ के रूप में स्थापित करता है।
  • संयुक्त राष्ट्र शांति अभियानों में सक्रिय भागीदारी: वर्तमान में 9 सक्रिय शांति मिशनों में 5,000 से अधिक भारतीय शांति सैनिक तैनात हैं, जो कठिन परिस्थितियों में अंतर्राष्ट्रीय शांति को बढ़ावा देने का कार्य कर रहे हैं।
  • बहु-संरेखण: भारत सभी प्रमुख वैश्विक शक्तियों — जैसे रूस, अमेरिका, इजरायल, ईरान, जापान (QUAD, SCO, I2U2) और वैश्विक दक्षिण (ग्लोबल साउथ) के साथ निरंतर सहभागिता के माध्यम से एक सेतु शक्ति के रूप में कार्य करता है।
  • सांस्कृतिक कूटनीति: भारत का दर्शन ‘वसुधैव कुटुंबकम’ (संपूर्ण विश्व एक परिवार है) वैश्विक स्तर पर गूंजता है और सौहार्द को बढ़ावा देता है।
  • सक्रिय मध्यस्थ: उदाहरण के लिए, 2018 में भारत ने सऊदी अरब के 70 वर्ष पुराने इजराइल के लिए हवाई क्षेत्र प्रतिबंध को समाप्त कराने में मदद की थी।
  • रक्षा क्षेत्रक में आत्मनिर्भरता: भारत में ‘आत्मनिर्भर भारत’ और घरेलू विनिर्माण को बढ़ावा देने वाली प्रभावी नीतियों के तहत, अब भारत के 65% रक्षा उपकरण देश में ही निर्मित हो रहे हैं।
    • इस प्रयास की दिशा में कुछ प्रमुख उपायों में शामिल हैं: इनोवेशन फॉर डिफेंस एक्सीलेंस (iDEX), संयुक्त कार्रवाई के माध्यम से आत्मनिर्भर पहल (सृजन) (SRIJAN), सकारात्मक स्वदेशीकरण सूची (जो रक्षा आयातों को सीमित करती है), रक्षा अधिग्रहण प्रक्रिया (DAP) 2020, जो घरेलू खरीद को प्राथमिकता देती है, उदारीकृत प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) नीतियां तथा रक्षा औद्योगिक गलियारों की स्थापना आदि।
  • सुरक्षा सिद्धांत: 
    • परमाणु सिद्धांत: भारत की नीति विश्वसनीय न्यूनतम निवारण और पहले उपयोग नहीं करने पर आधारित है।
    • ऑपरेशन सिंदूर के बाद नया सुरक्षा सिद्धांत: इसने भारत की आतंकवाद विरोधी नीति में बदलाव को दर्शाया, जिसमें निर्णायक प्रतिकार, परमाणु ब्लैकमेल के प्रति असहनशीलता और आतंकियों व आतंक के प्रायोजकों के बीच कोई भेद न करने जैसे तत्व शामिल हैं।

इस दृष्टिकोण के माध्यम से भारत रणनीतिक स्वायत्तता को पुनर्परिभाषित कर रहा है और रक्षा, कूटनीति तथा घरेलू नवाचार के संतुलन के माध्यम से आज के युद्ध के जटिल युग में सफलतापूर्वक अपने हितों की रक्षा कर रहा है।

निष्कर्ष (Conclusion)

आधुनिक युग में संघर्षों की निरंतरता हमें यह याद दिलाती है कि युद्ध भले ही सीमाओं को बदल दें, लेकिन अंततः वे समाजों, अर्थव्यवस्थाओं और मानवीय गरिमा को भी नष्ट कर देता है। स्थाई शांति केवल हिंसा की समाप्ति से हासिल नहीं की जा सकती है, अपितु — इसके लिए न्यायसमावेशिता और राष्ट्रों के बीच सहयोग की आवश्यकता होती है। वैश्विक संस्थाओं को सशक्त बनाना, प्रौद्योगिकी का जिम्मेदारीपूर्ण प्रबंधन करना और भारत के 'वसुधैव कुटुम्बकम' जैसे दर्शन को अपनाना, मानवता को युद्ध के चक्र से बाहर निकालने में सहायक हो सकते हैं।

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  • न्यायसंगत युद्ध सिद्धांत
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