भूमिका
भारतीय प्रधानमंत्री ने अनेक अवसरों पर और स्पष्ट रूप से ये कहा है कि "यह युद्ध का युग नहीं है।" यह निःसंदेह विश्वभर के अरबों लोगों की साझी भावना है। फिर भी, रूस-यूक्रेन युद्ध और इजरायल-हमास युद्ध जैसे हालिया संघर्षों ने हिंसा की वेदी पर अनगिनत जानें ले ली हैं।
इस लेख में युद्ध की अवधारणा का गहन विश्लेषण प्रस्तुत किया गया है तथा इसके ऐतिहासिक विकास की जांच करते हुए मानवता पर इसके प्रभाव की समीक्षा की गई है। इसके साथ ही युद्ध की पुनरावृत्ति के पीछे उत्तरदायी कारकों की पड़ताल और संस्थागत प्रतिक्रियाओं का विश्लेषण किया गया है। इसमें एक स्थाई और समावेशी शांति के सृजन के लिए महत्वपूर्ण सबक भी प्रस्तुत किया गया है।
1. युद्ध क्या है और इतिहास में युद्ध की परंपरा कैसे विकसित हुई है?
युद्ध एक संगठित सामूहिक हिंसा की प्रक्रिया है, यह दो या दो से अधिक समाजों के बीच संबंधों को प्रभावित करती है, या किसी समाज के भीतर शक्ति-संतुलन को प्रभावित करती है।
युद्ध के प्रकारइवान लुआर्ड ने अपनी पुस्तक वार इन इंटरनेशनल सोसाइटी: ए स्टडी इन इंटरनेशनल सोसाइटी (1986) में "आक्रामक युद्धों" को चार श्रेणियों में विभाजित किया है:
|
युद्ध की परंपरा का विकास (Evolution of Warfare)

इतिहास में युद्ध की परंपरा समाज में हुए परिवर्तनों और तकनीकी विकास के साथ निरंतर विकसित होती रही है (विस्तृत जानकारी के लिए इन्फोग्राफिक देखें)। कई संघर्ष ऐसे रहे हैं जिन्होंने वैश्विक युद्ध इतिहास को निर्णायक रूप से प्रभावित किया है। नीचे कुछ प्रमुख घटनाएं, उनकी विशेषताएं और परिणाम दिए गए हैं:
- प्रथम विश्व युद्ध (1914–1918):
- राष्ट्रवाद, साम्राज्यवादी प्रतिस्पर्धा और सैन्य गठबंधनों के कारण यह युद्ध प्रारंभ हुआ।
- इस युद्ध ने यूरोपीय वर्चस्व के कई शताब्दियों के युग का अंत कर दिया।
- इसके परिणामस्वरूप रूस, जर्मनी और ऑस्ट्रिया-हंगरी जैसे देशों में राजशाही का अंत हुआ।
- द्वितीय विश्व युद्ध (1939–1945):
- यह युद्ध फासीवाद, विस्तारवाद और वैचारिक अतिवाद से प्रेरित था।
- इससे परमाणु युद्ध, होलोकॉस्ट और अभूतपूर्व नागरिक हानि हुई।
- इसके बाद संयुक्त राष्ट्र की स्थापना हुई और विऔपनिवेशीकरण (Decolonization) की प्रक्रिया को गति मिली।
- शीत युद्ध (1947–1991):
- यह द्विध्रुवीय संघर्ष था जिसका कारण अमेरिका और सोवियत संघ (USSR) के बीच वैचारिक टकराव था — पूंजीवाद बनाम साम्यवाद।
- यह संघर्ष कोरिया, वियतनाम, अफगानिस्तान और अफ्रीका में परोक्ष (प्रॉक्सी) युद्धों के रूप में सामने आया।
- परमाणु हथियारों के रोकथाम की नीति ने प्रत्यक्ष टकराव को रोका, किंतु अंतर्राष्ट्रीय राजनीति का सैन्यीकरण कर दिया।
- विऔपनिवेशीकरण के लिए संघर्ष:
- एशियाई और अफ्रीकी देशों ने औपनिवेशिक शक्तियों के विरुद्ध स्वतंत्रता के लिए युद्ध लड़े, जैसे- अल्जीरियाई स्वतंत्रता संग्राम और वियतनाम युद्ध।
- इन संघर्षों ने उत्तर-औपनिवेशिक पहचान और विदेश नीति की दिशा को आकार दिया।
- शीत युद्ध के बाद के संघर्ष:
- बाल्कन क्षेत्र में नृजातीय युद्ध, रवांडा में नरसंहार, मध्य-पूर्व में सैन्य हस्तक्षेप और रूस-यूक्रेन के बीच चल रहा संघर्ष — ये सभी शीत युद्ध के बाद की विश्व व्यवस्था में उभरे प्रमुख संघर्ष हैं।
3. युद्ध को नियंत्रित और विनियमित करने के लिए वर्तमान अंतर्राष्ट्रीय प्रयास क्या हैं?
द्वितीय विश्व युद्ध के बाद, संघर्षों को शांतिपूर्ण तरीके से सुलझाने और भविष्य में युद्धों को रोकने के लिए कई प्रयास किए गए।
- संस्थागत संरचना: 1945 के बाद, विभिन्न उद्देश्यों के साथ कई अंतर्राष्ट्रीय संस्थाएं स्थापित की गईं:
- संयुक्त राष्ट्र (United Nations) और उससे संबंधित संस्थाएं: वैश्विक समन्वय के माध्यम से भविष्य में युद्धों को रोकने के लिए।
- संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC): यह परिषद् शांति के लिए मौजूद खतरों की पहचान करती है, शांतिपूर्ण समाधान का आह्वान करती है, प्रतिबंध लगाती है और अन्य उपाय करती है ताकि युद्ध को रोका जा सके।
- संयुक्त राष्ट्र शांति सेना: संयुक्त राष्ट्र द्वारा किए गए अन्य प्रयासों के साथ कार्य करते हुए संघर्ष रोकथाम, शांतिवार्ता, शांति बनाए रखने और शांति की स्थापना में भूमिका निभाती है।
- अंतर्राष्ट्रीय आपराधिक न्यायालय (ICC): रोम संविधि (Rome Statute, 1998) के तहत स्थापित यह अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय, ऐसे व्यक्तियों का न्याय करता है जिन्होंने अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर गंभीर अपराध किए हों।
- बहुपक्षीय समन्वय: उदाहरण-
- NATO और वारसा संधि (Warsaw Pact): सैन्य गठबंधन जिनका उद्देश्य युद्ध की रोकथाम करना था।
- गुट निरपेक्ष आंदोलन (NAM): यह दक्षिण-दक्षिण सहयोग को बढ़ावा देने वाला एक मंच है।
- क्षेत्रीय संगठन: जैसे कि आसियान (ASEAN), अफ्रीकी संघ (African Union), सार्क (SAARC) आदि — जो स्थानीय सुरक्षा और विकास संबंधी चुनौतियों का समाधान करते हैं।
- संयुक्त राष्ट्र (United Nations) और उससे संबंधित संस्थाएं: वैश्विक समन्वय के माध्यम से भविष्य में युद्धों को रोकने के लिए।
- कानून और सम्मलेन (कन्वेंशन): युद्ध संबंधी कानून और अंतर्राष्ट्रीय मानवीय कानून (IHL) से संबंधित कुछ प्रमुख अंतर्राष्ट्रीय सम्मलेन (कन्वेंशन) हैं—
- जेनेवा सम्मेलन: यह युद्ध के दौरान मानवीय व्यवहार के मानक निर्धारित करने वाली संधियों का एक समूह है। इसका उद्देश्य उन लोगों की रक्षा करना है जो युद्ध में सक्रिय रूप से सहभागी नहीं हैं।
- हेग सम्मेलन: युद्ध में प्रयुक्त तरीकों और हथियारों को विनियमित करने वाली अंतर्राष्ट्रीय संधियां, जिनमें हथियारों का उपयोग और क्षेत्र पर कब्जा भी शामिल है।
- नरसंहार पर सम्मेलन: नरसंहार को अपराध के रूप में परिभाषित करता है और राष्ट्रों को इसे रोकने के लिए बाध्य करता है।
- हथियारों को नियंत्रित करने के लिए बहुपक्षीय संधियां: अनेक संधियां ऐसी हैं जो विनाशकारी हथियारों की विभिन्न श्रेणियों को प्रतिबंधित करती हैं:
- नाभिकीय निरस्त्रीकरण और अप्रसार के लिए संधियां: नाभिकीय हथियारों के अप्रसार पर संधि (NPT),नाभिकीय हथियारों पर प्रतिबंध संबंधी संधि (TPNW), आंशिक परीक्षण प्रतिबंध संधि (PTBT) और व्यापक नाभिकीय परीक्षण प्रतिबंध संधि (CTBT)।
- मिसाइल और संबंधित तकनीकों के प्रसार को रोकने के लिए: हेग आचार संहिता (HCOC); मिसाइल प्रौद्योगिकी नियंत्रण व्यवस्था (MTCR) आदि।
- अन्य संधियां: जैविक हथियार सम्मलेन (BWC); रासायनिक हथियार सम्मलेन आदि।
मौजूदा प्रयासों के बावजूद, हाल के वर्षों में कई बड़े संघर्ष हुए हैं।
4. विश्वभर में युद्धों के पुनरुत्थान के लिए कौन से कारक जिम्मेदार हैं?
कार्ल वॉन क्लाजविट्ज़ की प्रसिद्ध पुस्तक “ऑन वार (On War) (1832)” से उनका सबसे मशहूर सिद्धांत है — “स्ट्रेंज ट्रिनिटी” (Strange Trinity), जो युद्ध को तीन मूलभूत शक्तियों के संयोजन के रूप में परिभाषित करता है (इन्फोग्राफिक देखें)। इस ट्रिनिटी के अनुसार युद्ध स्वभाव से ही राजनीतिक होता है, जिसमें तर्कसंगत उद्देश्य होते हैं, किंतु यह अव्यवहारिक भावनाओं और अप्रत्याशित अराजकता से भी भरा होता है और यह नीतिगत निरंतरता का एक अन्य माध्यम है। निम्नलिखित कारक हाल के संघर्षों के लिए प्रमुख रूप से जिम्मेदार रहे हैं:
- अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं की असफलता: उदाहरण के लिए, संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) की निर्णय-निर्माण की प्रक्रिया अक्सर गतिरोध में समाप्त हो जाती है क्योंकि पांच स्थायी सदस्यों के पास वीटो शक्ति होती है।

- कार्यान्वयन की समस्याएं: अंतर्राष्ट्रीय कानून घरेलू कानून की तुलना में कम लागू किया जाता है क्योंकि कोई वैश्विक शासी संस्था या पुलिस बल उपलब्ध नहीं है। इसकी प्रभावशीलता इस बात पर निर्भर करती है कि राष्ट्र किन-किन संधियों को स्वीकार करते हैं और उनका पालन करते हैं।
- सीमा विवाद: सीमावर्ती देशों के बीच जटिल और अक्सर विवादास्पद संबंध होते हैं, जो यूक्रेन, अजरबैजान-अर्मेनिया जैसे संघर्षों का कारण बन सकते हैं।
- बदलती विश्व व्यवस्था: ऐसा माना जाता है कि अमेरिका जैसे देशों द्वारा वैश्विक नेतृत्व में बनाए गए सत्ता शून्य (पॉवर वैक्यूम) अन्य शक्तियों को अपना प्रभाव क्षेत्र बढ़ाने का अवसर देते हैं, जिससे क्षेत्रीय प्रतिद्वंद्विताएं और संघर्ष बढ़ सकते हैं।
- नृजातीय और धार्मिक विविधता: गहरे और अनसुलझे सामाजिक विभाजन और वैमनस्यता संघर्ष को बढ़ावा देते हैं, जैसे कि रवांडा नरसंहार, म्यांमार का गृह युद्ध और कांगो लोकतांत्रिक गणराज्य के संघर्ष।
- संसाधनों से संबंधित कारक: जल (सीरिया, यमन) और भूमि (सूडान) जैसे संसाधनों की कमी संघर्ष को बढ़ावा दे सकती है, जबकि मूल्यवान संसाधनों की उपस्थिति (सिएरा लियोन, कांगो लोकतांत्रिक गणराज्य, अंगोला) सामाजिक तनाव को और बढ़ा सकती है।
- महाशक्तियों द्वारा रणनीतिक और राजनीतिक निर्णय: शीत युद्ध के परोक्ष (प्रॉक्सी) टकराव और शीत युद्ध के बाद के आतंकवाद के खिलाफ युद्ध बड़े पैमाने पर सैन्य संघर्ष और प्रौद्योगिकी एवं हथियारों की दौड़ का कारण बने।
- घरेलू और विदेशी संघर्ष के बीच संबंध: "सेफ्टी वाल्व" और "स्पिल-ओवर" प्रभाव इस बात से जुड़े हैं कि आंतरिक तनाव कैसे विदेशों में संघर्ष की ओर बढ़ सकते हैं या उनका कारण बन सकते हैं, जैसे- यूक्रेन संघर्ष।
- नई युद्ध तकनीकों का उद्भव: युद्ध के कानून पारंपरिक राष्ट्र-राष्ट्र संघर्षों के लिए बनाए गए थे, जिससे आधुनिक संघर्षों में जैसे कि मिलिशिया, गैर-राज्य समूह, हाइब्रिड युद्ध आदि में उनका पालन करना कठिन हो जाता है।
आधुनिक तकनीकों के हस्तक्षेप ने युद्ध को कैसे बदल दिया है?आधुनिक तकनीकों जैसे ड्रोन, घातक स्वायत्त हथियार प्रणालियां (LAWS), लेज़र हथियार आदि का युद्ध में प्रयोग होने से युद्ध अधिक जटिल और घातक बन गया है। इनसे जुड़े मुद्दे अब वास्तविक दुनिया के संघर्षों में स्पष्ट रूप से सामने आ रहे हैं और इसके गंभीर परिणाम देखने को मिल रहे हैं:
|
5. हम समावेशी शांति कैसे स्थापित कर सकते हैं?
सून त्ज़ू की रणनीतिक तनाव-न्यूनता (strategic de-escalation), चाणक्य की बहुआयामी राजनयिक नीतियां और मैकियावेली की नैतिकता-रहित यथार्थवादी सोच — ये तीनों ही इस बात की सीख देते हैं कि सबसे चिरस्थायी विजय वह होती है, जो बुद्धिमत्ता, गठबंधनों और कूटनीति की कला में निपुणता के माध्यम से प्राप्त होती है। इनका सामूहिक तर्क है कि युद्ध, राजनीति का ही एक विस्तार है और इसलिए भविष्य की दिशा तय करने के लिए हमें एक दूरदर्शी दृष्टिकोण अपनाना होगा — जो प्रमुख पक्षकारों की भूमिका पर केंद्रित हो।
- अंतर्राष्ट्रीय संगठनों की भूमिका: संयुक्त राष्ट्र (UN), रेड क्रॉस की अंतर्राष्ट्रीय समिति (ICRC) और विभिन्न गैर-सरकारी संगठन (NGOs) भविष्य के संघर्षों के मानवीय प्रभाव को कम करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
- संयुक्त राष्ट्र में सुधार: सुरक्षा परिषद की सदस्यता का विस्तार करना, वीटो शक्तियों के दुरुपयोग को रोकना और संयुक्त राष्ट्र की कार्यप्रणाली में पारदर्शिता सुनिश्चित करना, ताकि नई प्रकार की चुनौतियों का बेहतर ढंग से सामना किया जा सके।
- अंतर्राष्ट्रीय मानवीय कानून (IHL) को बनाए रखना और लागू करना: संयुक्त राष्ट्र को निगरानी संस्था के रूप में कार्य करना चाहिए, IHL के उल्लंघनों का दस्तावेजीकरण करना और राज्यों तथा गैर-राज्य कारकों को उनके कृत्यों के लिए जवाबदेह ठहराना चाहिए।
- मानवीय सहायता प्रदान करना: संघर्ष के नए रूपों के अनुसार, अपनी मानवीय प्रतिक्रिया को अपनाना, प्रौद्योगिकी का उपयोग करके विस्थापित आबादी तक पहुंचना और खतरनाक परिस्थितियों में सहायता पहुंचाना।
- परिवर्तन की वकालत करना: कुछ स्वायत्त हथियारों पर पूर्ण प्रतिबंध और साइबर युद्ध पर कड़े नियमों के लिए सक्रिय रूप से अभियान चलाना, वैश्विक जनचेतना को आकार देना और सरकारों पर कार्रवाई के लिए दबाव बनाना।
- सरकारों की भूमिका:
- नियमन और नियंत्रण: नई तकनीकों जैसे कि घातक स्वायत्त हथियार प्रणालियों (LAWS) के उपयोग को नियंत्रित करने के लिए सक्रिय रूप से राष्ट्रीय नीतियां बनाना और उन्हें लागू करना, ताकि जीवन और मृत्यु से जुड़े सभी निर्णयों में मानवीय निगरानी और जवाबदेही सुनिश्चित की जा सके।
- सहनशीलता को बढ़ाना: महत्वपूर्ण अवसंरचना पर साइबर हमलों और भ्रामक प्रचार अभियानों जैसे हाइब्रिड खतरों के विरुद्ध नागरिक तैयारी और राष्ट्रीय क्षमता में निवेश करना।
- रणनीति का एकीकरण: सुरक्षा के लिए "समग्र-सरकारी" दृष्टिकोण अपनाना, जिसमें सैन्य, आर्थिक, कूटनीतिक और सूचना संबंधी साधनों को मिलाकर बहुआयामी खतरों का मुकाबला किया जा सके।
- राजनयिकों की भूमिका:
- संवादहीनता को कम करना: ऐसी नई अंतर्राष्ट्रीय संधियों और कानूनी ढांचे के लिए वार्ता की शुरुआत करना, जो युद्ध में AI जैसी तकनीकों को नियंत्रित करें और मौजूदा अंतर्राष्ट्रीय मानवीय कानून (IHL) की खामियों को दूर करें।
- नई तकनीकों में दक्षता हासिल करना: "डेटा कूटनीति" में निपुण बनना, जिसमें डेटा विश्लेषण और ओपन सोर्स बुद्धिमत्ता का उपयोग कर संघर्ष संभावित क्षेत्रों की पहचान करना और भ्रामक सूचनाओं का पर्दाफाश करना शामिल है।
- सक्रिय मध्यस्थता करना: तनाव को पूर्ण युद्ध में बदलने से पहले उसे कम करने के लिए निरंतर और कम प्रचार वाले मध्यस्थता प्रयासों में संलग्न रहना, जो "ग्रे ज़ोन" संघर्षों के युग में एक महत्वपूर्ण कार्य है।
5.1 युद्ध और शांति पर दार्शनिक पहलू
युद्ध और शांति पर दार्शनिक पहलू
|
6. भारत युद्ध के युग का कैसे मुकाबला कर रहा है?
भारत संघर्षों के समाधान के लिए मुख्यतः संवाद और कूटनीति में विश्वास रखता है। वह इस विचार का मजबूत पक्षधर है कि वैश्विक व्यवस्था अंतर्राष्ट्रीय कानून, संयुक्त राष्ट्र चार्टर और राष्ट्रों की क्षेत्रीय अखंडता और संप्रभुता के सम्मान पर आधारित होनी चाहिए। वर्तमान में, भारत अपनी रणनीतिक स्थिति को कूटनीति, आधुनिकीकरण और क्षेत्रीय सहयोग के संयोजन के साथ अनुकूलित कर रहा है।
- कूटनीतिक रणनीति:
- कूटनीतिक संतुलन का प्रयास: उदाहरण के लिए, भारत की गुट-निरपेक्ष स्थिति और यूक्रेन तथा रूस दोनों के साथ स्थापित राजनयिक संबंध उसे

- क्षेत्र में शांति की वकालत करने के लिए एक मजबूत आधार प्रदान करते हैं।
- 5-S दृष्टिकोण (सम्मान, संवाद, सहयोग, शांति, समृद्धि): यह भारत की स्वतंत्र विदेश नीति को दर्शाता है और उसे एक संभावित शांति मध्यस्थ के रूप में स्थापित करता है।
- संयुक्त राष्ट्र शांति अभियानों में सक्रिय भागीदारी: वर्तमान में 9 सक्रिय शांति मिशनों में 5,000 से अधिक भारतीय शांति सैनिक तैनात हैं, जो कठिन परिस्थितियों में अंतर्राष्ट्रीय शांति को बढ़ावा देने का कार्य कर रहे हैं।
- बहु-संरेखण: भारत सभी प्रमुख वैश्विक शक्तियों — जैसे रूस, अमेरिका, इजरायल, ईरान, जापान (QUAD, SCO, I2U2) और वैश्विक दक्षिण (ग्लोबल साउथ) के साथ निरंतर सहभागिता के माध्यम से एक सेतु शक्ति के रूप में कार्य करता है।
- सांस्कृतिक कूटनीति: भारत का दर्शन ‘वसुधैव कुटुंबकम’ (संपूर्ण विश्व एक परिवार है) वैश्विक स्तर पर गूंजता है और सौहार्द को बढ़ावा देता है।
- सक्रिय मध्यस्थ: उदाहरण के लिए, 2018 में भारत ने सऊदी अरब के 70 वर्ष पुराने इजराइल के लिए हवाई क्षेत्र प्रतिबंध को समाप्त कराने में मदद की थी।
- रक्षा क्षेत्रक में आत्मनिर्भरता: भारत में ‘आत्मनिर्भर भारत’ और घरेलू विनिर्माण को बढ़ावा देने वाली प्रभावी नीतियों के तहत, अब भारत के 65% रक्षा उपकरण देश में ही निर्मित हो रहे हैं।
- इस प्रयास की दिशा में कुछ प्रमुख उपायों में शामिल हैं: इनोवेशन फॉर डिफेंस एक्सीलेंस (iDEX), संयुक्त कार्रवाई के माध्यम से आत्मनिर्भर पहल (सृजन) (SRIJAN), सकारात्मक स्वदेशीकरण सूची (जो रक्षा आयातों को सीमित करती है), रक्षा अधिग्रहण प्रक्रिया (DAP) 2020, जो घरेलू खरीद को प्राथमिकता देती है, उदारीकृत प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) नीतियां तथा रक्षा औद्योगिक गलियारों की स्थापना आदि।
- सुरक्षा सिद्धांत:
- परमाणु सिद्धांत: भारत की नीति विश्वसनीय न्यूनतम निवारण और पहले उपयोग नहीं करने पर आधारित है।
- ऑपरेशन सिंदूर के बाद नया सुरक्षा सिद्धांत: इसने भारत की आतंकवाद विरोधी नीति में बदलाव को दर्शाया, जिसमें निर्णायक प्रतिकार, परमाणु ब्लैकमेल के प्रति असहनशीलता और आतंकियों व आतंक के प्रायोजकों के बीच कोई भेद न करने जैसे तत्व शामिल हैं।
इस दृष्टिकोण के माध्यम से भारत रणनीतिक स्वायत्तता को पुनर्परिभाषित कर रहा है और रक्षा, कूटनीति तथा घरेलू नवाचार के संतुलन के माध्यम से आज के युद्ध के जटिल युग में सफलतापूर्वक अपने हितों की रक्षा कर रहा है।
निष्कर्ष (Conclusion)
आधुनिक युग में संघर्षों की निरंतरता हमें यह याद दिलाती है कि युद्ध भले ही सीमाओं को बदल दें, लेकिन अंततः वे समाजों, अर्थव्यवस्थाओं और मानवीय गरिमा को भी नष्ट कर देता है। स्थाई शांति केवल हिंसा की समाप्ति से हासिल नहीं की जा सकती है, अपितु — इसके लिए न्याय, समावेशिता और राष्ट्रों के बीच सहयोग की आवश्यकता होती है। वैश्विक संस्थाओं को सशक्त बनाना, प्रौद्योगिकी का जिम्मेदारीपूर्ण प्रबंधन करना और भारत के 'वसुधैव कुटुम्बकम' जैसे दर्शन को अपनाना, मानवता को युद्ध के चक्र से बाहर निकालने में सहायक हो सकते हैं।
- Tags :
- युद्ध का युग
- सामूहिक हिंसा
- युद्ध की परंपरा
- विऔपनिवेशीकरण के लिए संघर्ष
- न्यायसंगत युद्ध सिद्धांत