परिचय
आर्थिक नीतियों और व्यापार नीति में अनिश्चितताओं को लेकर वैश्विक चिंताओं के बावजूद भारत का बाह्य क्षेत्र (एक्सटर्नल सेक्टर) मजबूती से प्रदर्शन करता रहा।
वैश्विक व्यापार गतिशीलता
- नवंबर 2023 में लाल सागर में शुरू हुए व्यवधानों की वजह से अन्य व्यापार मार्गों को अपनाने के लिए मजबूर होना पड़ा। इससे नौपरिवहन लागत बढ़ गई और गंतव्य तक वस्तुओं को पहुंचाने में भी देरी हुई।

- होर्मुज स्ट्रेट में जारी संघर्ष ने ऊर्जा व्यापार को बाधित किया, और इससे ऊर्जा की कीमतों में वृद्धि दर्ज की गई। गौरतलब है कि 21 प्रतिशत वैश्विक पेट्रोलियम लिक्विड की आपूर्ति होर्मुज स्ट्रेट से गुजरती है।
- जलवायु परिवर्तन की वजह से अनिश्चितताओं का बढ़ना: उदाहरण के लिए, हाल में सूखा की वजह से पनामा नहर में जल की कमी हो गई। इस वजह से अंतर्राष्ट्रीय व्यापार प्रभावित हुआ। गौरतलब है कि 5 प्रतिशत वैश्विक समुद्री व्यापार पनामा नहर से होकर गुजरता है।
- वर्ष 2022 के अंत से समान राजनीतिक सोच वाले देशों के बीच व्यापार (Political proximity of trade) में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है। यह समान भू-राजनीतिक रुख वाले देशों के बीच द्विपक्षीय व्यापार को प्राथमिकता देने की बढ़ती प्रवृत्ति को दर्शाता है।
2024 में वैश्विक व्यापार का प्रदर्शन

- विश्व व्यापार संगठन (WTO) के अनुसार 2024 की तीसरी तिमाही में विगत वर्ष की समान अवधि (YoY) से वैश्विक माल/पण्य निर्यात (Merchandise export) और पण्य आयात में क्रमशः 3.5 प्रतिशत और 3 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई (मौसमी रूप से समायोजित, 2005 की प्रथम तिमाही को 100 मानते हुए) ।
- समान अवधि (YoY) में वैश्विक सेवा निर्यात और आयात में क्रमशः 7.9 प्रतिशत और 6.7 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई।
टैरिफ नीतियां
- मुक्त व्यापार पर बढ़ते जोर और WTO के तहत अंतरराष्ट्रीय व्यापार नीतियों में बढ़ते सहयोग से देशों के बीच सीमा शुल्क में कमी आई है।
- उदाहरण के लिए, 2000 से 2024 के बीच भारत में शुल्क योग्य मदों पर औसत टैरिफ दरें 48.9 प्रतिशत से घटकर 17.3 प्रतिशत हो गई, जबकि चीन में वे 16.4 प्रतिशत से घटकर 8.3 प्रतिशत हो गई।
गैर-टैरिफ उपाय (NTMs)
- ग्लोबल ट्रेड अलर्ट डेटाबेस से पता चलता है कि 2020 और 2024 के बीच व्यापार और निवेश से संबंधित 26,000 से अधिक नए प्रतिबंध वैश्विक स्तर पर लगाए गए हैं।
- NTMs से सबसे अधिक प्रभावित होने वाले क्षेत्रकों में कृषि, विनिर्माण और प्राकृतिक संसाधन शामिल हैं।
भारत के व्यापार प्रदर्शन का रुझान
- भारत के कुल निर्यात (माल+ सेवाएँ) ने वित्त वर्ष 25 के पहले नौ महीनों में विगत वित्त वर्ष की समान अवधि की तुलना में 6 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की है।
- इसी दौरान सेवा क्षेत्रक में 11.6% की वृद्धि दर्ज की गई है।
- इसी अवधि के दौरान सतत घरेलू मांग के कारण कुल आयात 6.9 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज करते हुए 682.2 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुंच गया।
- भारत 'दूरसंचार, कंप्यूटर और सूचना सेवाओं' के वैश्विक निर्यात बाजार में 10.2% की हिस्सेदारी रखता है और इस मामले में विश्व में दूसरा सबसे बड़ा निर्यातक है (UNCTAD)।
भारत का भुगतान संतुलन: चुनौतियों के बीच बेहतर प्रदर्शन
- चालू खाता: चालू खाता घाटा (Current account deficit: CAD) वित्त वर्ष 2025 की दूसरी तिमाही में थोड़ा कम होकर जीडीपी के 1.2 प्रतिशत हो गया, जो बढ़ती निवल सेवा क्षेत्रक आय और निजी धन-अंतरण आय में वृद्धि द्वारा समर्थित था।
- पूंजी और वित्तीय खाता: वित्त वर्ष 23 की पहली तिमाही से वित्त वर्ष 25 की दूसरी तिमाही तक की अवधि में, भारत ने आम तौर पर पूंजी खाते में अधिशेष दर्ज किया, जो मुख्य रूप से अधिक FDI, FPI और विदेशी ऋण प्राप्ति की वजह से है।
भारत में FDI प्राप्ति का प्रदर्शन
- वित्त वर्ष 24 की तुलना में वित्त वर्ष 25 में सकल विदेशी प्रत्यक्ष निवेश (FDI) प्राप्ति में 17.9% की वृद्धि हुई।
- यदि लंबी अवधि की बात करें तो, भारत में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश प्राप्ति अप्रैल 2000 से सितंबर 2024 तक 1 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर के आंकड़े को पार कर गया।
विदेशी मुद्रा आरक्षित निधि (Foreign Exchange Reserves of India)
- भारत की विदेशी मुद्रा आरक्षित निधि में विदेशी मुद्रा परिसंपत्तियां (FCA), सोना, विशेष आहरण अधिकार (SDRs) और IMF में रिजर्व ट्रेंच स्थिति (RTP) शामिल हैं।
- दिसंबर 2024 के अंत तक यह 640.3 बिलियन अमरीकी डॉलर था, जो 10.9 महीने के आयात और विदेशी ऋण के लगभग 90 प्रतिशत को कवर करने के लिए पर्याप्त है।
भारत की विदेशी ऋण की स्थिति
- भारत का विदेशी ऋण पिछले कुछ वर्षों में स्थिर रहा और सितंबर 2024 के अंत में विदेशी ऋण-GDP का अनुपात 19.4 प्रतिशत हो गया।
भावी परिदृश्य
- हाल के वर्षों में वैश्विक व्यापार की गतिशीलता में काफी बदलाव आया है। यह वैश्वीकरण से व्यापार संरक्षणवाद की ओर बढ़ रही है, जिसके साथ अनिश्चितता भी बढ़ी है।
- प्रतिस्पर्धी बने रहने और वैश्विक आपूर्ति श्रृंखलाओं में अपनी भागीदारी बढ़ाने के लिए, भारत को निर्यात प्रतिस्पर्धा को बढ़ावा देने के लिए व्यापार लागत को कम करना और व्यापार सुविधा में सुधार करना जारी रखना चाहिए।
एक-पंक्ति में सारांशनिरंतर FDI अंतर्वाह, बढ़ते सेवा निर्यात और संतुलित व्यापार रणनीति के साथ भारत का बाह्य क्षेत्रक मजबूत बना हुआ है; हालांकि व्यापार प्रतिबंध, आपूर्ति श्रृंखला की कमजोरियों और वैश्विक मंदी जैसी चुनौतियों से निपटने के लिए रणनीतिक व नीतिगत कदम उठाने की आवश्यकता है। |
UPSC के लिए प्रासंगिकता
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