परिचय

- भारत को 2047 तक विकसित भारत बनने की अपनी आर्थिक आकांक्षाओं को साकार करने के लिए आगामी एक या दो दशक तक स्थिर मूल्यों पर औसतन 8% की संवृद्धि दर प्राप्त करने की आवश्यकता है।
- IMF के वर्ल्ड इकोनॉमिक आउटलुक का अनुमान है कि भारत वित्त वर्ष 2028 तक 5 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर की अर्थव्यवस्था बन जाएगा। वहीं, यह वित्त वर्ष 2030 तक 6.307 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर की अर्थव्यवस्था बन जाएगा।
- भारत के मध्यम अवधि के विकास परिदृश्य का मूल्यांकन बदलती वैश्विक परिस्थितियों के संदर्भ में किया जाना चाहिए, जिसमें भू-आर्थिक विखंडन या बिखराव, चीन की बढ़ती विनिर्माण क्षमता और एनर्जी ट्रांजिशन प्रयासों में उस पर निर्भरता जैसे कारक शामिल हैं।
भू-आर्थिक विखंडन (Geo-Economic Fragmentation: GEF)

- वैश्विक आर्थिक एकीकरण में नीति-संचालित बदलाव (reversal) को भू-आर्थिक विखंडन (GEF) कहा जाता है। यह अक्सर रणनीतिक विचारों द्वारा निर्देशित होता है।
- इस प्रक्रिया में व्यापार, पूंजी और प्रवासन प्रवाह सहित विभिन्न चैनल शामिल हैं, जिनके माध्यम से विखंडन वैश्विक अर्थव्यवस्था को नया आकार दे रहा है।
- GEF वैश्वीकरण का स्थान ले रहा है, जिससे आसन्न आर्थिक पुनर्गठन और पुनः समायोजन हो रहा है।
- UNIDO (United Nations Industrial Development Organization) ने अनुमान लगाया है कि 2030 तक वैश्विक विनिर्माण का 45% हिस्सा चीन के पास होगा और यह अमेरिका तथा उसके सहयोगियों से आगे निकल जाएगा।
- चीन सोलर पैनल्स (पॉलीसिलिकॉन, सिल्लियां, वेफर्स, सेल और मॉड्यूल) और दुनिया की बैटरी विनिर्माण क्षमता में लगभग 80% हिस्सेदारी के साथ एनर्जी ट्रांजिशन प्रौद्योगिकियों पर हावी है।
- GEF के निहितार्थ:
- व्यापार और निवेश संबंधी प्रतिबंधों में वृद्धि: 2020 और 2024 के बीच, वैश्विक स्तर पर व्यापार और निवेश से संबंधित 24000 से अधिक नए प्रतिबंध लागू किए गए हैं।
- संकेंद्रित FDI प्रवाह: वैश्विक FDI प्रवाह भू-राजनीतिक रूप से संरेखित देशों के बीच तेजी से केंद्रित हो रहा है। इससे उभरते बाजारों और विकासशील अर्थव्यवस्थाओं की सुभेद्यता बढ़ रही है।
अविनियमन और आर्थिक स्वतंत्रता: विकास के लिए उत्प्रेरक
- राज्य निम्नलिखित तीन-चरणीय प्रक्रिया का पालन करके अपनी लागत-प्रभावशीलता के लिए नियमों की समीक्षा करके व्यवस्थित विनियमन अपना सकते हैं:
- ईज ऑफ डूइंग बिजनेस (EODB) 2.0 के तहत विनियमन के लिए क्षेत्रकों की पहचान करना और एक व्यवहार्य मित्तलस्टैंड यानी भारत के SME क्षेत्रक का निर्माण करना।
- अन्य राज्यों और देशों के साथ नियमों की तुलना करना।
- प्रत्येक उद्यमों पर इनमें से प्रत्येक विनियम की लागत का अनुमान लगाना।
एक-पंक्ति में सारांशभारत का मध्यम अवधि का विकास दृष्टिकोण विनियमन, निवेश-आधारित विकास और कौशल विकास से प्रेरित होकर मजबूत बना हुआ है, हालांकि, वैश्विक आर्थिक जोखिमों के साथ-साथ रोजगार और बुनियादी ढांचे से जुड़ी घरेलू चुनौतियों पर निरंतर नीतिगत माध्यमों से ध्यान देने की आवश्यकता है। |
UPSC के लिए प्रासंगिकता
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