भारत में भूजल का उपयोग
भूजल भारत की घरेलू और कृषि जरूरतों के लिए महत्वपूर्ण है, जो 85% से अधिक ग्रामीण पेयजल और 65% सिंचाई जल उपलब्ध कराता है।
भूजल प्रदूषण संकट
भूजल, जिसे कभी शुद्ध माना जाता था, अब नाइट्रेट, भारी धातुओं, औद्योगिक विषाक्त पदार्थों और रोगजनक रोगाणुओं से दूषित हो गया है।इससे स्वास्थ्य के लिए गंभीर खतरा पैदा हो गया है।
- 440 जिलों से लिए गए नमूनों में से 20% से अधिक में नाइट्रेट संदूषण पाया गया, जो मुख्य रूप से रासायनिक उर्वरकों और सेप्टिक प्रणाली के रिसाव के कारण था।
- 9% से अधिक नमूनों में फ्लोराइड की अधिकता पाई गई, जिससे दाँत एवं स्केलेटल फ्लोरोसिस की समस्या उत्पन्न हुई। यह विशेष रूप से राजस्थान, आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में पाया गया।
- पंजाब और बिहार में आर्सेनिक का स्तर विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा निर्धारित सीमा से अधिक हो गया है, जिससे कैंसर और तंत्रिका संबंधी विकार का खतरा बढ़ गया है।
- पंजाब, आंध्र प्रदेश और राजस्थान में फॉस्फेट उर्वरकों और भूजल का दोहन यूरेनियम की सांद्रता का कारण बताया गया है।
- 13% से अधिक नमूनों में सुरक्षित आयरन की सीमा पार हो गई, जिससे जठरांत्र संबंधी और विकास संबंधी विकार उत्पन्न हो गए।
स्वास्थ्य पर प्रभाव और घटनाएँ
- फ्लोराइड प्रदूषण से 230 जिले प्रभावित हैं तथा 66 मिलियन लोग स्केलेटल फ्लोरोसिस से पीड़ित हैं।
- झबुआ (मध्य प्रदेश) में फ्लोराइड का स्तर 5 मिलीग्राम/लीटर से अधिक है, जिससे 40% आदिवासी बच्चे प्रभावित हैं।
- गंगा क्षेत्र में आर्सेनिक के कारण त्वचा पर घाव, गैंग्रीन, श्वसन संबंधी समस्याएं और कैंसर होता है।
- नाइट्रेट संदूषण के कारण "ब्लू बेबी सिंड्रोम" उत्पन्न होता है, जिसके कारण पिछले पांच वर्षों में अस्पताल में भर्ती होने वालों की संख्या में 28% की वृद्धि हुई है।
- पंजाब के मालवा क्षेत्र में यूरेनियम का स्तर विश्व स्वास्थ्य संगठन की सीमा से अधिक है, जिससे अंग क्षति का खतरा पैदा हो रहा है।
- औद्योगिक उत्सर्जन से भारी धातु संदूषण के कारण विकासात्मक और तंत्रिका संबंधी समस्याएं उत्पन्न होती हैं।
- हैजा, पेचिश और हेपेटाइटिस के प्रकोप मल-दूषित भूजल से जुड़े हैं।
केस स्टडी
- बुधपुर, जालौन और पैकरापुर की घटनाएं भू-जल प्रदूषण से जुड़े सार्वजनिक स्वास्थ्य संकट को उजागर करती हैं।
संरचनात्मक मुद्दे और नियामक चुनौतियाँ
- संस्थागत विखंडन: CGWB, CPCB, SPCBs और जल शक्ति मंत्रालय जैसी एजेंसियों में समन्वय की कमी है।
- कमजोर कानूनी प्रवर्तन: जल अधिनियम का अपर्याप्त प्रवर्तन प्रदूषण को जारी रहने देता है।
- रियल टाइम डेटा का अभाव: अनियमित निगरानी और खराब डेटा प्रसार के कारण शीघ्र पता लगाने में बाधा आती है।
- अत्यधिक निष्कर्षण: अत्यधिक पम्पिंग से जल स्तर कम हो जाता है, जिससे विषाक्त पदार्थों के प्रति संवेदनशीलता बढ़ जाती है।
प्रस्तावित सुधार और समाधान
भारत के भूजल संकट के लिए एक बहुआयामी रणनीति की आवश्यकता है, जिसमें विनियमन, प्रौद्योगिकी, स्वास्थ्य और जन भागीदारी को एकीकृत किया जाए। प्रमुख सुधारों पर ध्यान केंद्रित किया जाना चाहिए:
- प्रभावी विनियमन और अनुपालन।
- संदूषण का पता लगाने में तकनीकी प्रगति।
- सार्वजनिक स्वास्थ्य एकीकरण और निगरानी।
- सामुदायिक भागीदारी और जागरूकता कार्यक्रम।
निष्कर्ष
भूजल प्रदूषण भारत में एक गंभीर जन स्वास्थ्य आपातकाल का कारण बन रहा है, जिससे लाखों लोगों की सुरक्षा और अस्तित्व को खतरा है। अपरिवर्तनीय क्षति को रोकने और देश के भविष्य को सुरक्षित करने के लिए सामूहिक और तत्काल कार्रवाई आवश्यक है।