परमाणु क्षेत्र पर राज्य के एकाधिकार को समाप्त करना
केंद्र सरकार यूरेनियम खनन, आयात, प्रसंस्करण और परमाणु ऊर्जा उत्पादन को निजी कंपनियों के लिए खोलने की योजना बना रही है, जिससे दशकों से चला आ रहा सरकारी एकाधिकार समाप्त हो जाएगा। यह कदम भारत की परमाणु ऊर्जा क्षमता को बढ़ाने के व्यापक लक्ष्य का हिस्सा है। केंद्रीय बजट में घोषणा की गई है कि भारत का लक्ष्य है कि वर्ष 2047 तक परमाणु ऊर्जा क्षमता को 100 गीगावॉट (GW) तक बढ़ाया जाए।
परमाणु ऊर्जा मिशन
- केंद्रीय वित्त मंत्री ने परमाणु ऊर्जा मिशन के लिए 20,000 करोड़ रुपये आवंटित किए।
- वर्तमान में भारत की परमाणु ऊर्जा क्षमता 8.18 गीगावाट है।
- जलवायु संबंधी अनिवार्यताओं को दूर करने और जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता को कम करने में परमाणु ऊर्जा की भूमिका को मान्यता दी गई।
ऐतिहासिक संदर्भ
- इससे पहले परमाणु क्षेत्र पर पूर्ण राज्य नियंत्रण रखा गया था। इसका मुख्य कारण विकिरण सुरक्षा की चिंता, परमाणु सामग्री के दुरुपयोग का जोखिम और सामरिक सुरक्षा की आवश्कता था। इसी कारण न्यूक्लियर पावर कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड (NPCIL) को एकमात्र ऑपरेटर के रूप में कार्य करने की अनुमति दी गई थी।
चुनौतियाँ और कानूनी संशोधन
- भारत के पास लगभग 76,000 टन का यूरेनियम का भंडार है, जो भविष्य की माँगों के लिए पर्याप्त नहीं है। इसलिए आयात और प्रसंस्करण क्षमता का विस्तार आवश्यक हो गया है।
- NPCIL के एकाधिकार को समाप्त करने के लिए परमाणु ऊर्जा अधिनियम में कानूनी संशोधन की आवश्यकता है।
- आपूर्तिकर्ता-दायित्व मुद्दों का समाधान करके वैश्विक कम्पनियों को आकर्षित करने के लिए सिविल लाइबिलिटी फॉर न्यूक्लियर डैमेज एक्ट में बदलाव जरूरी है।
स्मॉल मॉड्यूलर रिएक्टर्स (SMRs) और भारत स्मॉल रिएक्टर्स (BSRs)
- भारत का लक्ष्य 2033 तक कम से कम पाँच स्वदेशी डिज़ाइन किए गए SMRs को संचालित किया जाए।
- BSRs (भारत स्मॉल रिएक्टर्स), जिनकी क्षमता 220 मेगावाट है, को इस तरह अपग्रेड किया गया है कि उन्हें कम भूमि की आवश्यकता हो। इससे वे उद्योगों के लिए उपयुक्त बन गए हैं।
- SMRs और BSRs, बड़े परमाणु संयंत्रों के लिए अनुपयुक्त क्षेत्रों में सेवा प्रदान करके नवीकरणीय ऊर्जा के पूरक बन सकते हैं।
निवेश और जोखिम प्रबंधन
- परमाणु परियोजनाओं की निर्माण अवधि लंबी होती है और इसके लिए पर्याप्त अग्रिम पूंजी की आवश्यकता होती है।
- नवीन वित्तपोषण संरचनाएं और तंत्र जैसे वायबिलिटी-गैप फंडिंग और सॉवरेन गारंटी निवेश जोखिमों को कम कर सकते हैं।
- सामुदायिक सहभागिता तथा पर्यावरणीय देखभाल और उचित मुआवजा देना अत्यंत महत्वपूर्ण है, विशेष रूप से जैतापुर और कुडनकुलम जैसे स्थलों पर पूर्व में हुए भारी विरोध को देखते हुए।