अमेरिकी टैरिफ खतरों के सामने भारत का संतुलनकारी कदम
भारत के सामने एक चुनौतीपूर्ण स्थिति है क्योंकि राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के नेतृत्व में अमेरिका डिजिटल कर लगाने वाले देशों पर नए टैरिफ और निर्यात प्रतिबंध लगाने की धमकी दे रहा है। इस कदम से भारत में महत्वपूर्ण परिचालन वाली अमेरिकी टेक कंपनियों पर असर पड़ सकता है।
प्रमुख चुनौतियाँ
- डिजिटल सेवा कर: भारत ने हाल ही में वैश्विक मानकों के अनुरूप डिजिटल सेवा कर को समाप्त कर दिया है।
- अमेरिकी व्यापार प्रतिशोध: संभावित अमेरिकी टैरिफ भारत के बाजार पर निर्भर अमेरिकी प्रौद्योगिकी कंपनियों की रणनीतियों को जटिल बना सकते हैं।
- विनियामक तनाव: देशों की विनियामक शक्तियों और अमेरिका द्वारा अपनी प्रौद्योगिकी दिग्गजों को संरक्षण दिए जाने के बीच तनाव उत्पन्न होता है।
तकनीकी दिग्गजों पर प्रभाव
- अमेज़न, मेटा, गूगल और माइक्रोसॉफ्ट जैसी कंपनियों का भारत में पर्याप्त परिचालन है।
- किसी भी प्रतिबंध से परिचालन लागत बढ़ सकती है और एआई चिप निर्यात में बाधा आ सकती है।
भारतीय डिजिटल विनियम
- भारत में समकारी शुल्क और डेटा स्थानीयकरण अधिदेश जैसी व्यवस्थाएं मौजूद हैं।
- ये उपाय अमेरिकी कंपनियों के लिए अनुपालन लागत बढ़ाते हैं। साथ ही, ये उपभोक्ता संरक्षण सुनिश्चित करते हैं और स्थानीय डिजिटल कंपनियों को समर्थन प्रदान करते हैं।
अमेरिकी परिप्रेक्ष्य और प्रतिक्रिया
- अमेरिका भारतीय डिजिटल विनियमों को अमेरिकी नवाचार पर अनुचित रूप से कर लगाने वाला मानता है।
- ट्रम्प के कार्यकारी आदेश से भारतीय वस्तुओं पर 25% अतिरिक्त टैरिफ लगाया गया है, जिससे मौजूदा व्यापार बाधाएं दोगुनी हो जाएंगी।
भारत की सामरिक स्थिति
- भारत ने वैश्विक डिजिटल कराधान मानकों के अनुरूप 1 अप्रैल, 2025 से प्रभावी डिजिटल विज्ञापन कर को समाप्त कर दिया।
- इससे निवेश आकर्षित करने और वैश्विक डिजिटल कराधान चर्चाओं में व्यवधान को कम करने में सहायता मिलती है।
भविष्य की संभावनाएँ
- भारत को अपनी डिजिटल कर व्यवस्था को विश्व व्यापार संगठन के अनुरूप तरीके से उचित ठहराने की आवश्यकता हो सकती है।
- टैरिफ वृद्धि से अमेरिका को भारत के 80 बिलियन डॉलर के वार्षिक निर्यात पर खतरा उत्पन्न हो गया है, जिससे प्रौद्योगिकी और ई-कॉमर्स क्षेत्र प्रभावित होंगे।